मंगलवार, अप्रैल 17, 2007

साथ है पर फिर भी नहीं

करवटें बदलते अकेले तुम
जूझ रहे होगे तन्हाई से
पुरानी यादों से
आज के विरह से

चाह्ती हूँ कि सहारा दूँ तुम्हें
अपनी बाँहों का
अपने प्यार का
अपने विश्वास का

कुछ यादों के घेरों में
मेरा प्रवेश नहीं
वहाँ तुम हो
और तुम्हारी आह .

पर अकेले तुम नहीं
एक पीडा सबकी अपनी होती है
नितांत निज.
तुम्हारे पास तो
दो अमानत हैं और मैं

कुछ ऐसे भी हैं
जो घुलते हैं
अव्यक्त भावों में
कल के दर्द हैं
कल का आसरा नहीं

बुधवार, अप्रैल 04, 2007

क्या कहेगा कोइ अपनी पहचान किससे है
पति,बच्चों,या अपने पेशे से है.
हर रूप पहचान है मेरी
बिना एक के दूसरा अधूरा है.

लोग कहते हैं वो ढूँढ रहे हैं खुद को
मैं हर बार टूट कर बनाती हूँ खुद को.
ज़िन्दगी सफर है मंज़िल नहीं
लोहूलुहान पैरों का मरहम यहीं पर है.

यह सुख नहीं कि अपनी झलक दिखे कहीं
यह दुख भी नहीं कि कोई अपना नहीं.
तनहाई थी तो बेइंतहा साथ भी है
खुद पर भरोसा है तो साथी का हाथ भी है.

वो भी सफर के रास्ते थे जो पीछे छूट गये
रास्ता यह भी मखमली नहीं
निश्चित है तो सिर्फ
हर मोड का विस्मय.

मंगलवार, अप्रैल 03, 2007

भोर भ्रमण


दिल्ली स्थित लोधी गार्डेन का यह मनमोहक नज़ारा


यह जो ज़मीन है
न तुम न मै
बहुत विशाल है.

दूर आसमान से
धरती पर
दस्तरख्वान एक

तुम्हारी गुटरगूँ
सीताराम से
बनाए सरगम