गुरुवार, सितंबर 13, 2012

उम्मीद अभी कायम है

उम्मीद की एक किरण सूरज की रोशनी से भी ज्यादा प्रभावी हो सकती है। जीवन को दिशा देने में ,अँधेरे में रास्ता दिखाने में ,या फिर कोई मंजिल को उजागर करने में . नन्हे बच्चों का स्कूल है उम्मीद एक विद्या किरण। यह वो बच्चे हैं जिनके माता पिता की नौकरी हमारे घर में काम काज करना है।
स्कूल चलता है 1 से तीसरी कक्षा तक। यह तय हुआ की हब सब मिलकर हफ्ते में एक दिन कुछ ऐसा करें की इन बच्चों को भी एक बेहतर शिक्षा मिले .जो वह अपनी स्कूल के शिक्षकों से सीखते हैं उसके अलावा उन्हें कुछ  अधिक ज्ञान मिले। 
इसी सिलसिले की एक कड़ी के रूप में मैं भी पहुँची उम्मीद। सोचा क्या सिखाया  जाए। पूछा महाभारत के बारे में सुना   है तो जवाब न में मिला .ऐसा लगा बच्चों को ऐसी कहानी सुनायी जाये जो इन्हें अच्छी भी लगे और कुछ सन्देश भी मिले। अर्जुन और चिड़िया की आँख वाली कहानी याद आयी .सुनाना  शुरू किया। इस स्कूल में एक ख़ास बात है की कक्षा दो के सब बच्चे एक उम्र के हों ऐसा ज़रूरी  नहीं .कक्षा इस बात से तय होती है की  बच्चे ने कब पढाई शुरू की .मैंने दूसरी और तीसरी क्लास के विद्यार्थियों को लेकर यह दास्तानगोई का सिलसिला रखा था . पर उसमें कुछ बच्चे बहुत छोटे थे या फिर अच्छे स्कूलों के हिसाब से सही उम्र के,पर कुछ बच्चे बड़े भी थे। 
कहानी सुनाने में ख़ासा मज़ा आया .पर उससे ज्यादा मज़ा आया उस घटना का नाटय  रूपांतर  करने में।किसको अर्जुन बनाया जाये,किसको द्रोण ,किसको भीम और कौन पेड़ हो इसमें सबने अपना हाथ भी उठाया और किरदार के अनुरूप सुझाव भी दिए।भीम के लिए थोडा हट्टा - कट्टा बच्चा लिया गया तो  दुर्योधन के  लिए बच्चों ने अपने सबसे लड़ने वाले  साथी का नाम सुझाया .पांडवों और कौरवों की विशेषताओं से उनको थोड़ा परिचय हो गया था .एक बच्चा पेड़ भी बन गया .उनके अध्यापक एक छोटी मिट्टी की चिड़िया  भी ले आये .
पूरी कहानी का मंचन हुआ . आशा करती हूँ की इस लघु कथा से कुछ सीख मिली होगी ,जो अभी नहीं तो बड़े हो कर शायद काम आये .वैसे  सिर्फ सीख की ही बात नहीं है। कुछ किताबों के अलावा भी जानने को मिलता है तो हमेशा फायदा ही करता है। 

अब अगली बार के लिए कुछ तैयारी  करनी है।