कौन कहता ह कि
वक़्त रुकता नहीं.
कौन कहता है
वक़्त वापस नहीं आता.
पलकों में छिपाये सपनों में
यादों की कोमल सिहरन में
एकांत की अनमनी मुस्कान में
कुछ पुरानी तस्वीरों के धुधलके में
वक़्त को रोक लिया है मैंने.
चेहरे की हर झुर्री में
सफेद बालों की चमक में
चरमराती हुई हड्डियों में
ढलते शरीर की शिथिलता में
वक़्त को कैद किया है मैंने.
किताब क बीच सूखे गुलाब में
स्कूल की 'स्लैम बुक' में
बचपन के पालने में
पुरानी 'अड्रेस डायरी' मे
छुपा लिया है वक़्त मैंने.
और इन सबसे रूबरू हो
बुला लेती हूँ
वापस
वक़्त को मैं.
3 टिप्पणियां:
पूनम जी कविता बहुत अच्छी लगी । हम सब येन केन प्रकारेण काल को बाँधे रखना चाहते हैं , और जैसा आपने कहा कुछ सीमा तक बाँध भी लेते हैं । किन्तु समय तो अपना आँचल छिटक चला जाता है , जो हमारे हाथ आती हैं वे हैं केवल यादें । अच्छा लगा पढ़कर ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
miredmiragemusings.blogspot.com/
ठीक है, इस विधा से ही सही, वक्त को रोक पाने का आत्म-सुख तो मिलता ही है। क्या यह कम नहीं ?
अरे आप तो रह रह कर प्रकट होती हैं । अचानक ही आपके एक कमेन्ट पर नजर पड़ी तो लगा आप वापस आ गई हैं और इस कविता से तो लगता है पुराना वक्त भी लौट कर आ गया है।
एक टिप्पणी भेजें