शनिवार, सितंबर 29, 2007

नाम से तेरे आवाज़ मैं न दूँगा


नाम से मेरे वो कभी पुकारता न था मुझे


नाम लेने भर से सिहर जाता हूँ मैं


सोचो हाल कैसा होगा जब मिलूँगा तुझे


मिलने के नाम से घबरा जाता हूँ मैं .

मंगलवार, सितंबर 25, 2007

बेटी

माँ की गोद में सिर छुपा दिया .उसने भी सिर पर हाथ फेरा ,हौले से मुस्कुराई और हम एक अंतरंग चुप्पी में बैठ गए.सोच रही हूँ मैं ......मेरी बेटी खेल रही है वहीं आसपास कहीं .वह हम दोनों को देखती है ,मुस्कुराती है ,और एक अनकही समझदारी से वापस खेलने लग जाती है .कह गई, मैं भी तो इसी साझेदारी में शामिल हूँ.लुका छुपी खेल रहे हैं और वह कहीं अँधेरे कमरे में छुप जाती है.अचानक वह अँधेरा ही उसे डरा देता है.चिल्लाती है वो और मैं उसे अपने गले से लगा लेती हूँ.ज़ोर से भींचती हूँ और वह अपनी नन्हीं बाँहें मेरे गले में डालकर हंस देती है.उसकी हँसी पर मेरी जान निछावर है.चलो फिर खेलें ....वो कहती है.अगर फिर डर लग गया तो.आप हैं न ...! मैं भी आपके साथ रोटी बनाऊँगी .मम्मी सिर दर्द कर रहा है क्या.मैं दबा दूँगी बिल्कुल ठीक हो जाएगा .सोचती हूँ सारी पूँजी बाँटूगी इसके साथ.जो कुछ मेरी माँ ने सिखाया मुझे.क्या वाकई सिखाया था.नहीं तो.फिर न जाने कैसे वो सब चीज़े मुझे भी आ गई जो मेरी माँ करती थी.उसी की तरह घर की देखभाल .कढाई,बुनाई....सिलाई.किताबों का शौक .उसी अंदाज़ से बुकमार्क लगाना.माँ से पूछा मैंने यह सब सिखाया कब आपने.मुझे तो याद नहीं.और वो हंस दी .बोली .....सिखाया नहीं तुम्हारी मदद ली थी सिर्फ .

बडी हो गई मेरी बेटी अब. दोस्त है वह . सिर भी दबाती है और दिल का हाल भी सुनती है.डांट भी देती है.मीठी सी झिडकी उसकी .हम दोनों आपस में कुछ गुपचुप करते हैं .मदर्स डे पर कार्ड देती है और फ्रेंशिप डे पर बाँधती है फ्रेंड्शिप बैंड.नानी क्या ममा हमेशा तुम्हारी बात मानती थी.और मम्मी हंस देंगी .ऐसा कभी हुआ है कि बच्चे मां बाप की हर बात माने.और मुझे जीभ दिखाती है,बिल्कुल मेरी तरह .मेरी गोद में सिर छुपा लेती है बिल्कुल मेरी तरह .

शनिवार, सितंबर 01, 2007

हमतुम


तुम्हारे नाम के साथ जोड लिया
जब से है नाम अपना
ऐसा लगता है सच होने लगा
देखा हुआ हर सपना

तुम साँस लेते हो तो चलती है
घुली हुई साँसें हमारी
दुनिया को देखा था पहले भी कभी
अब जो देखा तो नज़रें तुम्हारीं