क्या आपने कभी किसी घर के सामने से गुज़रते हुए उसकी क्लोथस लाइन पर नज़र डाली है.क़्या आपको ऐसा नहीं लगता कि हर क्लोथस लाइन हमसे कुछ कहती है? मैंने ऐसा महसूस किया और एक दिन वक्त निकाल कर उनकी बातों पर ग़ौर फ़रमाया.जो सुना वह पेश-ए-खिदमत है!यह वार्तालाप है तीन डोरियों के बीच.
डोरी न:१: अरे यह क्या तुम तो सवेरे से ही लदी फंदी हो?
डोरी न: २: पूछो मत !इस घर में तो सवेरा होते ही वाशिंग मशीन लगा दी जाती है.सवेरे की चाय बाद में कपडा धोना पहले.
डोरी न:१:पानी की समस्या होगी .सुबह ही आता होगा.हमारे घर में पानी की कोइ कमी नहीं पर उसका इस्तमाल बडी लापरवाही से होता है.
डोरी न:२:सामाजिक साधन जो है इसलिये बचत की क्या ज़रूरत? तभी मैं सोचूं तुम्हारे घर में हर दूसरे दिन चादरें धुल जाती हैं!और हफ्ते में एक बर पर्दे भी.
डोरी न:१:अरे नौकर के सहारे है. कितना भी काम करवा लो उससे.
इतने में नम्बर तीन भी कूद पडा किटी पार्टी में.
डोरी न:३: हमारे यहाँ तो आज मियाँ बीबी में झगडा चल रहा है.क्या झटक कर कपडे फैलाए गए .मेरी तो कमर ही टूट गयी.
डोरी न:२ : और सिर्फ सल्वार कमीज़ पडे हैं सूखने के लिये .लगता है आज पतिजी को अपने कपडे खुद ही धोने पडेंगे मेरे यहाँ तो मियाँ जी ही कपडे धोते हैं.
डोरी न: ३:लगता है दोंनो कामकाजी हैं.मदद नहीं करेगा तो घर चलेगा केसै?
डोरी न: २: पर बच्चा कितना शुशू करता है देखा है.हर समय उसके कपडे पडे रहते हैं . मेरा अंग अंग महकता है डेटौल की खुश्बू से.
डोरी न:१:फिर भी ठीक है.यहाँ तो नौकर कपडे धोता है विज्ञापन देखकर ...."भिगोया, धोया और हो गया". मेरे नसीब में गंदे कपडे हैं.
इतने में किसी घ्रर से कपडे उतारने के लिये कोइ निकला और मैं भी चल दी अपने रास्ते.लेकिन अब जब भी उन घरों के सामने से गुज़रती हूं तो उन के सदस्य कुछ परिचित से लगते हैं .