बुधवार, जनवरी 09, 2019

माटी की बानी

  अपनी मिट्टी से प्रेम का  बंधन
अथाह,अगाध,अनादि,अनंत-आभार ,
जिसे हम कहते हैं हम,सब इस माटी का है
संस्कार,संस्कृति,कृति,दृष्टि
सब इस माटी की है।
मोहक,सम्मोहक,गुंजित,तरंगित
माटी के रंग अनेक।
पृथक विलक्षण,अद्भुत इंद्रधनुष।



मिट्टी के हैं बोल अमोल,क्या कहती,क्या  सुनती है। 
कहती है जो खुशबू मेरी,और कहीं न मिलती है । 
बारिश की वह पहली बूँदें,जब मिलती हैं कण कण से 
सोंधी सोंधी महक लिए, यह रची बसी  है रग रग में ।  

गगरी देखो,देख सुराही,देखो गाँव  की डगर डगर    
मन में तेरे गहरे बसे हैं,दूर कहीं हो फिर भी अगर।
इस माटी से जुड़ा हुआ है  जीवन का हर तार तेरा
माटी की बानी गूंजे है,झंकार करे हर साज तेरा। 

इकतारा बज उठता है पकी फसल के लहराने से
घूम घूम फ़कीर बावले,भक्ति के प्रेम तराने से।
फगवा गाते गली गली जब घूमे है टोली मस्तानी
माटी की बानी बोले है और राधा हो जाए दीवानी।

पुरखों की धरोहर संजो ली हर ताने बाने के धागे में,
पैरों की थिरकन में या फिर लोक कथा दुहराने में।
तन इसका मन भी इसका माथे पर इसका तिलक अनंत
माटी की बानी बोले है, वही आदि है वही है अंत।