गुरुवार, अगस्त 26, 2010

सबाएदी ..लाओ में आपका स्वागत है !

दक्षिण पूर्वी एशिया में म्यन्मार, थाईलेंड,वियतनाम ,कम्बोडिया और चीन के बीच स्थित  लाओ या फिर लाओस .दिल्ली से बैंगकॉक  और फिर वहां से  लाओ एरलाईन के विमान से पाक्से .पाक्से लाओ के दक्षिण के प्रांत चम्पासक की राजधानी है और वहां का एक प्रमुख शहर .'से' नदी पर स्थित  होने के कारण इसका नाम है पाक्से . लेकिन यहाँ पर एक और नदी 'मेकोंग ' भी बहती है जो लाओ की सबसे बड़ी नदी  है .

मीकोंग़ पर  अस्ताचल सूरज


मेकोंग  नदी पर पुल जापानी सहायता से बनाया गया है सवेरे उठकर यहाँ बहुत से लोग टहलते या जोग करते दिखे.


होटल के कमरे से शहर  का दृश्य .










जहां भी जाएं भारतीय मिल ही जायेंगे.यहाँ पर मिला निजाम रेस्तारांत जो एक तमिल भाई ने वहां खोला था और उसे चला रहा था नेपाल का रहने वाला  कृष्णा.रात का भोजन यहाँ पर ही किया .


वीसा के लिए फोटो चाहिए था सो पहुँच गए इस दूकान में जहां १० मिनट में  डिजिटल तस्वीर निकाल दी.यहाँ पर रुपये के लिए चलता है " कीप "और ८००० कीप एक डॉलर के बराबर हैं. १००० कीप से कम का कोई नोट नहीं. सोचिये वहां की अर्थव्यवस्था किस हाल में है .






लाओ प्रसिद्ध है सिल्क के लिए.यहाँ के हाथ से बुने सिल्क दुनिया भर में मशहूर है. डिजाइन औ रंग देखने लायक थे.हमने भी सिल्क का कपड़ा  और एक दुपट्टा लिया .

दूसरे दिन हमें मौका मिला पाक्से करीब २८० किमी दूर एक और प्रान्त अत्तापू जाने का.लाओस अधिकांशत: ग्रामीण अंचल देश है और  यहाँ जंगल और हरियाली बहुत है. हरे भरे रास्ते को देख सुकून मिला. यहाँ जनसंख्या कम है सो दिखे कम लोग पर जो मिला मुस्करा रहा था. लकड़ी और सिल्क यहाँ के मुख्य आयात हैं.  

लाओस में बुद्ध धर्म के अनुयायी हैं सो जगह जगह बुद्ध  मंदिर देखने को मिलते हैं.पाक्से में ऐसा ही एक मंदिर .

शनिवार, अगस्त 07, 2010

दिल्ली की भागमभाग से दूर ..दो दिन कसौली में

दिल्ली की गर्मी ,भीड़,उमस...भागना है यहाँ से .पर कहाँ जाएँ. नियति ने यहाँ पहुंचा दिया .यहीं सुकून ढूढ़ना है  यहीं मुस्कान. एक सप्ताहांत ,बर्दाश्त से बाहर होती यहाँ की दौड़ भाग ने हमें भागने पर विवश पहुंचा  दिया कसौली.अतृप्त आत्माओं को मिला एक ठिकाना ,कार  की आदत डाले पाँव पैदल ऊपर नीचे चल कर झूमने लगे,आँखों ने देखा भीड़ से अलग  खुशनुमा नज़ारा ,ये हरियाली और यह रास्ता,

.इतनी हरियाली और इतनी खामोशी .जन्नत !





                                                                                                 सनसेट  पॉइंट पर सूरज डूबने का इंतज़ार .कैमरे में  कैद करना   बहुत मुश्किल है पर कोशिशें  बरक़रार है कसौली की यह जगह जहां सूर्यास्त के समय लोग इकठ्ठा हो जाते हैं .







कसौली को साफ़ सुथरा रखने में हमारी आर्मी का बहुत बड़ा योगदान है.यह एक छोटा सी छावनी ही है और हर जगह सेना  के पद छाप दीखते हैं. वायु सेना का भी एक अड्डा है .


गिल्बर्ट ट्रेल के नाम से बना एक  रास्ता जहाँ से सब हरा हरा दीखता है.










कसौली बहुत ही शांत है.कुछ करने को नहीं सिर्फ  चलते रहिये.सुबह ६.३० बजे के निकले अम्बाला,पंचकुला,कालका होते हुए कसौली पहुंचे 1 बजे. पहुँचते ही निकल पड़े सैर पर. लवर'स लेन,नेचर वाक,सनसेट पॉइंट,अंग्रेजों के ज़माने के नाम लिए बड़े बंगले .एक जगह पर खड़े होकर देखा शिमला दिखाई दिया और दूसरी ओर चंडीगढ़.बीच बीच में बारिश भी हो जाती थी, दूसरे दिन्बहुत सावरे फिर निकल पड़े सैर पर. मंकी पॉइंट यहाँ का सबसे ऊंचा स्थान है और यहीं है मनकी मंदिर.माना जाता है हनुमान जब संजीवनी लेने जा रहे थे तो  उन्होंने यहाँ पर एक पैर रखकर छलांग लगाई थी.इस पहाडी का आकार  उनके पाँव का लगता है. १००० सीडियां चढ़कर  पहुँचने पर एक सुन्दर सा मंदिर और आसपास दूर दूर का नज़ारा .मंदिर वायुसेना स्टेशन के भीतर है सो उसका रख  रखाव और भीतर जाने की अनुमति उनसे लेने पड़ती है.कैमरे मोबाईल की मनाही है.हम जब ऊपर जा रहे तो बारिश होने लगी पर जगह जगह इतने बढ़िया छप्पर नुमा छत बनी है कि हम खड़े होकर हल्की बैछार में भीगते रहे और ठंडी हवा का मज़ा लेते रहे !
मजबूरी थी कि दूसरे दिन शाम को लौटना था वरना यहाँ पर शांति से कुछ दिन और रहा जाए तो सेहत के लिए बहुत बढ़िया हो ! हो सका तो  फिर जाने का संयोग बनेगा ....