गुरुवार, मार्च 25, 2010

यहाँ "अ पिंच ऑफ़ साल्ट" की जगह कहते हैं ..अ माइन ऑफ़ साल्ट ....एक नमक की खान ऐसी भी

यह श्रृंखला बाल पत्रिका इन्द्रधनुष के नन्हें पाठकों के लिए है जिसे मैं अपने चिट्ठे पर भी डाल देती हूँ.वैसे संपादिका की कैंची अभी चलनी बची है.इसलिए भूल चूक लेनी देनी !

उफ्फ,क्या फीका खाना है ! अरे क्या नमक डालना भूल गए ? '
'नहीं .आपको ज्यादा नमक पसंद होगा.'
'या फिर हो सकता है मैं नमकीन हो गयी हूँ !'
'मतलब?'
'अरे मैं इस बार ऐसी जगह से आयी हूँ जहां कोई भी जाए तो नमकीन हो जाए .'
'अब पहेलियाँ मत बुझाइए .बताये इस बार आपके घुमंतू पैर कहाँ गए !'
'तुम्हें पता है नमक कहाँ से मिलता है.लोग सोचते हैं समन्दर के पानी से.है न ?'
"मुझे तो यही पता था ."
लेकिन इस बार मैं देख कर आयी नमक की खान .और वह भी ९०० साल पुरानी !यूरोप के देश पोलैंड में वीयलीच्का के पास यह नमक की खान . यह खान सिर्फ खान ही नहीं है पूरी एक अलग दुनिया है. यहाँ पर काम कर रहे मजदूरों ने इन नमक की दीवारों पर नक्काशी की है,मूर्तियाँ बनाईं हैं,तराश कर कमरे ,चर्च तक बनाया है !है न एकदम अनोखी जगह ?
११ वी शताब्दी से लेकर २००७ तक यहाँ पर नामक निकाला जाता था .पर अब वहां पर पानी भर जाने से वहां पर खनन बंद कर दिया गया . वैसे तो यह खान ३०० कीमी लम्बी है और नौ तलों में फ़ैली हुई है पर सैलानियों को लिए सिर्फ ३ तले और ३.५ कि मी ही दिखाते हैं.वह भी तो देखने में पाँव दुःख जाते हैं ! खुदाई करते करते जब मजदूर थक जाते थे तो यहाँ नमक के पत्थरों पर खुदाई करते. इसी खुदाई से बन गयी यह अनूठी जगह . उन्होंने सुरंगें बनाईं,छोटी कोठरियां बनाईं ,मूर्तियाँ तो हैं ही ,इमारतें भी हैं. इन में अधिकतर मूर्तियाँ या तो वहां के देवी देवताओं की हैं या फिर प्रसिद्ध व्यक्तियों की .यीशु मसीह (Jesus) के जीवन और उनके शिष्यों , बाइबिल ,वहां के महान संतों ,पोप पर आधारित हैं यहाँ की मूर्तियाँ . इनके आलावा यहाँ नमक के खनन में इस्तेमाल किये गए औजार भी रखे हैं. बाद में दुनिया के मशहूर कलाकारों ने जा कर भी वहां मूर्तियाँ तराशी .तुम लोग जानते हो कि नमक सफ़ेद होता है,है न? हम लोग भी सोच रहे थे कि अन्दर जाने पर सब कुछ एकदम सफ़ेद दिखेगा . पर यह नमक के पत्थर स्लेटी रंग के होते हैं.इसलिए यह सारी प्रतिमाएं सफ़ेद न होकर स्लेटी रंग की हैं. जब इनको रोशनी दिखाओ तब पता चलता है कि यह नमक के क्रिस्टल के बने हैं. हम लोगों को इस दौरे में २० नमक की गुफाएं दिखाई गयीं. गलियारों,छोटे छोटे कमरों,सुरंगों,गड्ढों के बीच ज़मीन की अन्दर इतने नीचे देख कर बड़ा आश्चर्य होता है.और उससे ज्यादा ताज्जुब होता है यह जानकर कि यह सब हाथों से बनाए गए हैं. ज़रा इस दीवाल पर जीभ से चाटिए. ओह बिलकुल नमकीन ! बीच बीच में कई जगह छोटे चर्च जिन्हें चेपल कहते हैं बनाए गए हैं.खान मजदूरों ने अपने खतरे वाले काम के बीच में भगवान को याद करने के लिए इन्हें बनाया ! नीचे खान में घूमते हुए हमें एक बहुत ही छोटी सुरंग से ले जाया गया.लेकिन सुरंग के ख़त्म होते ही हमें दिखा एक बहुत ही शानदार चर्च ,संत किंगा का चर्च. इस चर्च की एक एक चीज़ नमक से बनी है. चाहे वह वेदी (altar) हो ,मूर्तियाँ हों ,या फिर छत पर टंगे झाड़ फानूस . यहाँ की फर्श तक नमक से बनी है.तुम्हें ऐसा लग रहा होगा कि यह तो सिर्फ चर्च का नमूना होगा ,दिखाने के लिए. लेकिन ऐसा नहीं है यहाँ पर प्रार्थना सभा भी होती हैं और संगीत समारोह भी ! इस चर्च को बनाने में ३० साल लगे और यह दो भाइयों ने बनाया . दाद देनी पड़ेगी उनके हुनर,मेहनत और समर्पण की. इन खान में ही नीचे तीन नमक की झील भी हैं. पहले तो यहाँ पर नाव विहार भी किया जाता था पर अब बंद है.

घूमते घूमते करीब डेढ़ घंटे बाद हमें जब थकान महसूस होने लगी तब हमें ले जाया गया "वार्स्जावा " कमरे में. यह कमरा ऐसा है कि यहाँ नाटक भी दिखाई जाते,संगीत सभा भी होती,नाच गाना होता. इसके बाद हम देखने गए इन नमक की खान के बीच बना आजयबघर या म्युसियम .यह पोलेंड का मशहूर क्रेकौव सोल्ट वर्क्स म्युसियम है .चौदह कोठरियां में बना यह म्युसियम अपने आप में अनूठा है.यहाँ इस खान में नमक निकालने के लिए जिन औजारों ,वस्तुओं,मशीन, प्रकाश के उपकरण आदि का प्रयोग हुआ था उन सबके यहाँ पर रखा गया है. इसको देखने से खनन के इतिहास के बारे में अच्छी खासी जानकारी मिल जाती है. यह भी पता चलता है कि विज्ञानं और तकनीक की मदद से कैसे इन सब में सुधार हुआ.पुराने ज़माने के खान मजदूरों को काम करते हुए दिखाते हुए चित्र ,पुराने मशीनों के नमूने,और यहाँ तक कि ३५० साल पहले यह खान कैसी थी उसका भी एक मॉडल रखा है !खुदाई के समय मिले पत्थर आदि भी यहाँ रखे हैं.इनसे वहां के क्षेत्रफल के भूगर्भ के बारे में जानकारी मिलती है.

यहाँ तक पहुँचते हम इतना थक गए और इतने नमक्सार हो गए थे कि यह सोचकर हिम्मत हार गयी कि अब पैदल ऊपर तक जाना पड़ेगा .पर यह क्या.वहां तो एक लिफ्ट थी जो हमें ऊपर ले गयी . पर फिर हमें पता चला कि यह नामक के पत्थर अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए बड़े फायदेमंद होते हैं. इसलिए वहां नीचे एक सनातोरियम(sanatorium) भी है जहाँ मरीज़ रह सकते हैं और इलाज करा सकते हैं.
वहां घूम कर मुझे लगता है कि मैं ही पूरी खारी हो गयी हूँ. वैसे तो वहां की सुन्दरता और चकित करने वाले दृश्य देखकर ही समझ में आ सकते हैं . चलो अब मुझे कुछ मीठा खिलाओ .वहां से आने के बाद मैं चीटें की तरह सिर्फ मीठा ही खा रही हूँ !