रविवार, फ़रवरी 26, 2006

बसंतनामा

हल्की बयार चल रही है. ठॅड की तीव्रता चली गयी.उसकी जगह ले ली एक हौले से सिहरन देने वाली हवा ने.बसंत आते ही सब कुछ बदला बदला सा लगने लगता है. और ये जो बदलाव है वो ऐसा जो दिल को छूए.ठिठुरन की जगह आ गई एक मीठी सी सिहरन.कुछ ऊनी पहनने का मन नहीं करता पर बदलते मौसम में ठॅड लगने का डर .चारों ओर फूलों की छटा और दूसरी ओर पतझड का नज़ारा . मुझे याद आता है वो घर जहाँ मैँने अपना बचपन गुज़ारा था. लखनऊ की इक्षुपुरी कालोनी ..."गार्डेन ओफ इडन" से किसी तरह कम नहीं थी ..... कालोनी के गेट से दिखाई पड जाता था हमारा घर .आम के पेडो से झाँकता हुआ.वैसे तो वह ह्रर मौसम में प्यारा लगता था पर न जाने क्यो बसॅत में वो कुछ ज़्यादा याद आता है!
शायद इसलिये कि प्रकृति का सौन्दर्य इस ऋतु मे अपने परवान पर होता है. उसके आसपास फैले खेतनुमा 'किचन गार्डन'.इस समय तक जाडे की सारी सब्ज़ियाँ खत्म हो जाती थी.कई खेत उजाड होते .लेकिन आबाद लहलहाता सरसों का खेत. पीली सरसों के बगल मे मुझे याद है आलू लगी थी.होली पर पापड और सेव के लिये वही से ताज़ा आलू खोदी जाती.आलू की बेडियो के ऊपर झूमती सरसों .और उसी आलू के खेत के एक कोने मे था एक अकेला जामुन का पेड......गर्मी में उसमे बेतहाशा जामुन होती . फरवरी में उसमे छोटे किल्ले निकल आते.सब आने जाने वालो की नज़र उस जामुन पर रह्ती.कब यह पके और तोडा जाए.वो पेड था भी सड्क के नज़दीक.
पर बसॅत के आने की खबर देती थी वहाँ की कोयल.शायद मैं उस कोयल को कभी भुला नहीं पाऊँगी. मतवाली थी वो और दूसरो को भी मतवाला कर देती थी. वो कुहू कुहू करती ....और टीस हमारे दिल मे उठती .उस एह्सास के लिये एक ही शब्द है बौराना ! बौरा जाता था मन.जैसे जैसे दिन चढता कोयल की कूक मे विरह की वेदना बढती जाती.हमारे किशोर मन को भी कुछ नई भावनाओ से रूबरू उसी कोयल की कूक ने कराया.

वो केले का झुरमुट साक्षी है हमारे ICSE औ इन्टर की परीक्षा की तैयारियो का.यह परीक्षा भी मार्च मे शुरु होती और बसन्त की स्मृतियो में उस पढाई की भी कई यादे शुमार हैं. उनही पेडो की छाँव में मैं कुर्सी लगाकर पढती थी. मुझे याद है उस ज़माने में फ़रवरी में इतनी गर्मी नहीं होती थी.हवा में हल्की सी ठँड रहती और पेडो के बीच से छनकर आती धूप में पढना नही भूलता !
भूख लगने पर हाज़िर थे अमरूद के पेड.तोडिये और नोश फ़रमाइये !या फिर सीधे पेड से जैसे मानस खाता था.
हर खेत और हर पेड के साथ हमारा रिश्ता था.सुनहरी गेहूँ की बालियाँ, करौंदे के काँटे , गह्ररे हरी पत्तियों के बीच झंकते पीले नीबू,वो नल के पास छोटा पुदीना ,मस्त छ्टा बिखेरती सरसों ,अमिया की ताज़गी ....सब मेरे बचपन और यौवन के बसंत के साथी हैं.और इन सबको छूकर आती हवा अभी भी बसी है मेरे तन में,मेरे मन में.

रविवार, फ़रवरी 19, 2006

नाम के वास्ते

शेक्सपियर के कथानुसार "What's in a name.A rose by any other name would smell as sweet"आज मेरे मेलबौक्स मे एक astrology की site का मेल था जिसमे मेरे नाम की numerology के हिसाब से विवेचना की गई . मुझे अपने नाम से बहुत शिकयाते है. मैँ हमेशा अपने माता पिता से इस बात पर नाराज़ रह्ती हूँ कि उन्होँने मेरा नाम रखते वक्त ज़रा भी मेहनत नहीँ की और जो पहला नाम मिला वो रख दिया.हम दो बहनेँ हैँ जिनमेँ ढेड साल का अन्तर है. सो हमारे नाम हैँ ...सही पह्चाना ...पूनम -नीलम ! मेरे पिता वैज्ञानिक हैँ और मुझे डर है कि अगर वो सोचने बैठते तो हमारे नाम कुछ इस तरह के होते ....स्मटाइटिस, अथवा रेडोटिस्टिस !!मेरे एक जाननेवाले हैँ जिन्होँने अपनी तीसरी बेटी का नाम रखा 'टर्शिया'! यही मेरे पिता का कहना है .वो कह्ते हैँ कि अपनी मम्मी का शुक्रिया अदा करो कि तुम्हे यह नाम मिल गये. मैँ तो एल्फा ,बीटा, गामा रखने वाला था !
नाम क्या है...हर व्यक्ति की पहचान का माध्यम ,उसका पहला तारूफ .मैँ इस बात से दुखी कि मेरे नाम मेँ एसा कुछ नहीँ है कि कोइ पहली नज़र मैँ इससे प्रभावित हो जाए.पर कहते हैँ कि 'every dog has his day'.और इस नाम कि भी सार्थकता मुझे उस दिन महसूस हुइ जब एक दोस्त ने कहा "Your name has a very feminine feel about it " !उस दिन मेरा नाम मुझे और अज़ीज़ हो गया.
नाम को लेकर कई लोग बडे possessive होते हैँ.
मेरा ११ साल का भान्जा है मानस. उसको बचपन से ही अपने नाम से न सिर्फ लगाव था बल्कि उसके उच्चारण को लेकर बहुत fierce भी. दो साल की उम से ही वो अपने नाम का कोइ अपभ्रॅश स्वीकार नहीॅ करता था. यदि हम प्यार से उसए मनी पुकारते तो वह या तो जवाब नहीॅ देता या फिर आकर बडा ज़ोर देकर हमेँ बताता "मेरा नाम मानस है मनी नहीँ" !हम पहले उसे राँबिन पुकारते थे पर उसे मानस ही ज़्यादा पसँद आया.हमारे घर पर काम करने वाली बाई उसे राँबिन ही पुकारती थी और वह भी इस लह्ज़े मेँ...रबीईन !और तब शुरु होता था मानस और उसका वाक्युद्ध्.मानस अपनी तोतली भाषा मेँ समझाता "मेला नाम मानस है ." और बाई कह्ती "इ नाम हमका नीक नाही लागत.हम तो रबीईन ही बुलाई" .और छोटा मानस उसके बाल नोचता या घर भर मेँ उसका पीछा करते हुए उससे एक ही बात कह्ता "मेला नाम मानस है ".
एसा ही एक कार्यक्रम इस समय भी हमारे यहाँ चालू है...नामकरण का.निकि के छोटे भाई का नाम रखना है और हम सबने इस ज़िम्मेदारी से यह कहकर हाथ झाड लिये कि ये तो माता पिता का prerogative है !और तब तक जब तक उनको कोइ नाम नही भाता ,बच्चा अनेको नामोँ का मालिक ...apple,छोटू,निकि से मेल खाता टिकि,बाबा का बँटी...और न जाने हर दिन मेँ कितने और.

रविवार, फ़रवरी 12, 2006

निकि के स्कूल जाने पर

आज निकि के स्कूल का पहला दिन है.उत्साहित है वह .उसकी ललक है पीठ पर बैग टाँग़ने की.जब भाई ने कहा कि उसके लिये नया बैग लाना है तो निकि का तुरन्त जवाब था "मै उसे पीठ पर टागूॅगी".उसकी प्यारी वाटर बौटल भी उसके कन्धे पर लटकी है.ज़ब उसकी मम्मी उसका दाखिला करा आई तब दोनो बहुत खुश थे वह बोली, "मुझे बडा अच्छा लग रहा है यह सोचकर कि निकि स्कूल जाएगी".और मुझे निकि की बुआ को.....एक डर सा मह्सूस हुआ.घर के स्नेह्पूर्ण वातावरण से निकल कर उसका दुनिया का सामना करने का पेहला कदम .य़हॉ घर पर दादी बाबा,बुआ,मम्मी पापा,नाना नानी सबको वह अपनी नन्ही उन्गलियो पर नचाती है.हम सब उसकी मासूमियत ,उसकी बातो मे व्यस्त रह्ते. एक नन्ही जान मे हम सब की जान बसी है.पर अब उसकी दुनिया का विस्तार होगा.दोस्त बनेगे.रूई के फाहो मे रखी इस कोमल कली की पहली पॅखुडी खुलने का वक्त आ गया है.मुझे लगता है मैँ उसे अपनी बाहो मे समेटे रहू.
पर यह तो प्रकृति का नियम है.सॅसार का चक्र कलियोँ के फूल बनने से ही चलता है.स्कूल तो उसे जाना ही है.विद्यालय भी और सान्सारिक स्कूल भी.मेरी इच्छा थी कि जब वो पहले दिन स्कूल जाए तब मै उसके साथ रहू.पर यह एकाधिकार तो माता पिता क होता है.इसलिये शायद विधाता ने मुझे औफिस के काम से दिल्ली भेज दिया.कैसा लगा होगा रन्जना आशू को उसे स्कूल ले जाते हुए?कैसा लग होगा मेरे माता पिता को जब उन्होने मुझे पहली बार स्कूल छोडा होगा?मैँ अपने भाई बहनो मै सबसे बडी हूँ.शायद एक भय मिश्रित उत्साह. प्रकृति के कुछ नियम और भावनाएँ हैँ जो पीढी दर पीढी एक समान रहते हैँ. चाहे हम कितने आधुनिक हो जाएँ.यह भी उन्हीँ शाश्वत भावनाओँ मेँ से एक है.
निकि यानि अदिति का यह सफर खुशियो से भरा रहे ,उसका व्यकत्तिव निखरे,वो एक सम्पूर्ण, सशक्त,विवेकपूर्ण नारी बने,सही गल्त की पहचान कर सके,एसी मँगलकामना करते हुए उसके इस नव निर्माण का मै स्वागत करती हूँ.