गुरुवार, अक्तूबर 20, 2011

जिन्जा में देखा नाईल का उदगम

     तब अफ्रीका की प्राकृतिक सम्पदा एक रहस्य थी और यहाँ के नदी,तालाब,पहाड़ों के बारे में दुनिया अनभिज्ञ . ऐसे में कई अंग्रेज खोजी उस अनजान दुनिया के बारे में और अधिक जानने की जिज्ञासा लिए ,घने जंगलों ,जानवरों ,रोगों से झूझते ,कभी गुम हो जाते,कभी  मौत से  लड़ते  ,पहुँच जाते  नयी दुनिया की   खोज करने . ऐसे ही  एक   थे  जोन स्पीक . निकले थे नाईल का उदगम ढूँढने और जब विक्टोरिया झील से उस नदी को निकलते हुए देखा तो हक्का बक्का से  खड़े रह गए दो घंटे तक . आखिर इतनी मुश्किलों से उनकी यात्रा सफल हुई थी . आज  जिन्जा  शहर में  उसी   स्मारक   के तौर पर एक ओबेलिस्क बनाया गया है  .
     युगांडा के मर्चीसन  फोल्स के बाद अगले दिन हम वापस रवाना हुए कम्पाला के लिए. लेकिन हमारी मंजिल कम्पाला नहीं बल्कि यही शहर था जहां से निकलती है विश्व की सबसे लम्बी नदी . युगांडा का दूसरा सबसे बड़ा शहर और यहाँ का औद्योगिक केंद्र है जिन्जा.कम्पाला की भीड़ भरे यातायात से निकलकर गाँव ,खेत   हुए खलिहान से  पहुंचे इस  छोटे से शहर में.  रास्ते में मिली मेहता इंडस्ट्रीस और  गन्ने के खेत. चीनी  उत्पादन यहाँ का  एक प्रमुख उद्योग है. वैसे कम्पाला का यातायात बहुत बदनाम है  पर खुशकिस्मती से हम इस में फंसने से बच गए और पहुंचे जीन्जा  के मादा होटल जहां ठहरने का .
पहुंचकर लगा एक अलग ही दुनिया में आ गए .फिर उसी विशाल नाईल नदी का किनारा, केकट्स के बड़े बड़े वृक्ष के नाप के  पौधे  ,जीरो वाट बल्ब की रोशनी से रहस्यमयी लगते कमरे   और हर जगह वही  युगांडा में सर्वव्यापी हरियाली. पहले दिन तो शाम हो गयी थी सो कहीं बाहर जाना नहीं हुआ ,पर अँधेरे में नदी किनारे बैठकर , दूर तक फ़ैली निस्तब्धता में लीन हो जाना ,उसकी लहरों को महसूस करना , अँधेरे के फैलाव को समेटना ,यह सब महसूस करते हुए एक सिहरन सी होती थी .दूसरे  दिन सवेरे  निकल पड़े  उस  जगह, उस ख़ास झील को देखने . 'सोर्स ऑफ़ द नाईल'  के पास  लिए पहुंचे तो एक चिर परिचित नज़ारा देखने को मिला.५००० शिलिंग ,अच्छा २००० में ले लीजिये....हाँ वही भारत की तरह वहां भी सड़क किनारे लगी स्थानीय हस्तशिल्प के  नमूने  .पीछ करते वहां के स्थानीय निवासी और मोलभाव का वही अंदाज़ .पर उनके साथ ज्यादा समय न बिताकर हम आगे बढे  तो दिखी गांधीजी की प्रतिमा. जीन्जा के संपन्न परिवारों में बहुत भारतीय परिवार हैं, खासतौर से माधवानी परिवार ,जिसकी एक बहू हैं हमारी प्यारी नटखट अभिनेत्री  मुमताज़ .    
             नीचे उतरकर नाव पर बैठे और चले नदी की धारा के उलटे . युगांडा हो   ,या फिर अफ्रीका पशु पक्षियोंकी जितनी जातियां यहाँ देखने को मिलाती हैं शायद और कहीं नहीं . नदी में चलते के जहरीले सांप को देखा ,तो तट पर पड़े हुए सांपनुमा  एक लम्बे चौड़े गिरगिट  को भी .आसमान की तरफ देखा तो पेड़ पर पक्षियों के झुण्ड के झुण्ड नज़र आये. लहरों  के साथ खेलती नौका आगे बढ़ी और कुछ देर बाद दूर क्षितिज पर दिखनी  लगा किनारा .लगा जैसे नदी एक जगह जा कर फ़ैली और ठहर गयी. पर हम तो नदी की धारा के विपरीत जा रहे थे,सो यह तो संभव नहीं.हाँ,यह संभव था की वह जो नदी का विस्तार अचानक और विशाल हो गया वह तो वास्तव में एक झील थी और यही था इस प्रसिद्द नदी का स्रोत याने लेक विक्टोरिया .झील के मुंह पर एक छोटा द्वीप था ,जहां एक कुटिया और उस में कुछ हस्तशिल्प का सामान .हम टापू पर उतरे,फोटो वगैरह खींची और फिर बढ़ चले झील की  ओर. दरअसल यही झील हमें कम्पाला में भी मिली थी और एन्तेबी हवाई अड्डे पर भी . यह विश्वास करना मुश्किल होता है की इतनी लम्बी नदी एक ताल से निकलती है!
http://googlesightseeing.com/2009/09/the-source-of-the-nile/
       पर स्पीक ने जो दृश्य देखा था वह यह नहीं है.उस समय यहाँ पर एक झरना था जिसका नाम उन्होंने रखा रिपोन फोल्स. पर अब उस जगह एक बिजलीघर के लिए बाँध बना दिया गया है ,ओवेन डैम और रिपोन फोल्स डूब गया उस बाँध के नीचे. आदमी की ज़रूरतों के लिए प्रकृति को यदा कदा झुकना ही  पड़ जाता है. बहुत देर तक झील में चक्कर लगाने के बाद हम वापस लौट अपने निवास की ओर.पर यात्रा थी अविस्मरीनीय .  यह सोचकर रोमांचक लगा की अगर हम इसी नदी से आगे बढ़ते तो पिछली पोस्ट में जिस मर्चिसन फोल्स का ज़िक्र किया था वहां पहुँच जाते . लेकिन दरियाई घोड़ों और  मगरमच्छ वहां तक पहुँचने की इजाज़त देते तब .

यहाँ की बंजी जम्पिंग , दुनिया के बेहतरीन बंजी जम्पिंग स्थलों में से एक है ,पर अफ़सोस समयाभाव के कारण ,इसका आनंद नहीं ले पाए .