बुधवार, जून 25, 2008

सलाम काबुल-४ (पंजशीर)

काबुल में अभी बहुत कुछ है देखने को पर पहले सैर करते हैं पंजशीर की. हमारे दोस्त सैफुलाह साहब और एक और भारतीय परिवार ने प्रोग्राम बनाया एक दिन पंजशीर जाने का.हम मेहमान थे वहाँ के एक सरदार जनरल मीर जान के जिन्होंने पहाड़ की चोटी पर बने अपने गेस्ट हाउस में हमें खाने की दावत दी. यह इलाका अफगानिस्तान का सबसे खूबसूरत इलाका है . काबुल से करीब 150 किमी पर है पंजशीर घाटी .पंजशीर नदी के किनारे किनारे बनी सड़क ,आपको जन्नत सा दृश्य दिखाती हैं. यह नदी भी निर्मल निर्जल है.न कोई प्रदूषण ,न कोई गंदगी.साफ़ तेज बहता जल .ऊंचे पहाडों के बीच कल कल बहती नदी , मनोरम वादी और हलकी ठंडक लिए हवा .







रास्ते में जगह जगह इस तरह युद्ध के चिन्ह दिखाई देते हैं . यह हैं पुराने रूसी टैंक .





























पंजशीर जाना जाता है अहमद शाह मसूद के नाम से जिनको पंजशीर का शेर कह कर लोग याद करते हैं. काबुल में भी इन्हीं के बड़े पोस्टर नज़र आते हैं. इन्होने अपनी नोर्दर्न अलियांस का गठन किया.सोवियत आक्रमण और कब्जे के दौरान पंजशीर का इलाका ही रूसी सेनाओं को रोका सका था और यहाँ सोवियत का अधिकार नहीं स्थापित हो पाया था.मसूद ने तालिबान को भी रोका था और पंजशीर प्रांत में उनका दखल नहीं हो पाया . पंजशीर घाटी में उनके गाँव के पास एक पहाड़ पर उनका मकबरा बन रहा है .





































हसीना के साथ जिसने हमें बड़े प्यार से खाना खिलाया और पहाड़ पर मेरा हाथ थाम कर चढ़ने में मदद की !











ऐसा नहीं है की पंजशीर जाते समय कोई मंजिल है जहाँ पहुंचना है. हम लोगों को तो जनरल साहब के ठिकाने तक जाना था पर रास्ता इतना सुंदर है की आप उसक आनन्द लेते हुए सफर को ही मंजिल मानिये.
रास्ते में ही एक गाँव के लोगों ने हमारे मेहमाननवाजी की .अफगानी चाय,नान,शहतूत हमारे लिये आसपास के लोगों ने भेजा. पर वहाँ खड़ी लड़कियों की तस्वीर लेने से मना कर दिया !

रास्ते में नदी में ठंडी होती कोल्ड ड्रिंक की बोतलें!

शुक्रवार, जून 20, 2008

सलाम काबुल-३

टिप्पणियों से हौसलाफजई हुई है...तशक्कुर . इसके जवाब में बड़ा ही मीठा सा " काबिले तशक्कुर नीस्त " सुनने को मिलता है. यह जवाब मुझे इतना मीठा लगता है की कहना नहीं भूलती .और आप भी शुक्रिया या तश्क्कुर का जवाब ऐसे पाएँगे सबकी ज़बान से... मिलने पर असलाम वालेकुम के बाद एक सिलसिला आपकी खैरियत पूछने का ।खूबस्ती, खाने-खैरतस्ती ,चतुरस्ति . और आप बोलेंगे खूब हस्तम चतुर हस्तम। अपना दाँया हाथ सीने पर रखकर स्वागत करते हैं लोग.


दिल्ली से काबुल के लिये एयर इंडिया की उडानें हैं जो बुधवार को छोड हर दिन जाती हैं.फिलहाल यह सवेरे .४० पर दिल्ली अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से चलती हैं.सफर तकरीबन पौने दो घंटे का है. आपको वीसा लेना पडेगा .वैसे अफगानिस्तान की दो और विमान सेवायें भी हैं काम एयर और आरियाना जो शायद ज़्यादा सस्ती हैं पर भरोसेनमंद नहीं .दिल्ली से किराया लगभग १४००० के आसपास है ( आने जाने का,इकोनमी क्लास! )
आइये कुछ काबुल की सैर हो जाए



















काबुल की सबसे खूबसूरत जगह है "बाग़े बाबुर " जहाँ मुगल बादशाह बाबर का मकबरा है .बाबर समरकन्द से काबुल आये और फिर वहाँ से हिन्दुतान का रुख किया.पर हिन्दुस्तान का मौसम उन्हें पसन्द नहीं था.उनकी ख्वाहिश थी कि उन्हें उनके प्यारे काबुल में ही दफ़न किया जाए. उनकी इच्छा थी कि उन्हें आसमान के नीचे बिना ज़्यादा लाग लपेट के दफनाया जाए .सो उनकी कब्र भी खुले आसमन के नीचे है .सिर्फ चारों ओर बहुत ही सुन्दर जाली है।





तकरीबन २५ एकड़ में बने इस बाग़ को बाबर ने बनवाया था.गृह युद्ध में यह भी काबुल के अन्य स्थलों की तरह यह भी क्षतिग्रस्त हो गया था. इसके पीछे पहाड़ हैं जहाँ से गोले दागे जाते थे.इस बाग़ में बारूदी सुरंगे भी बिछाई गयीं.



अब आगा खान ट्रस्ट ,और संयुक्त राष्ट्र की मदद से इसको पुनः उसी रूप में लाया जा सका है.कहते हैं मुग़ल काल के बागों की विशिष्ट चारबाग नुमा रचना इसी बाग़ पर आधारित है .






यहाँ शाहजहाँ द्वारा बनायी गयी एक मस्जिद है













यह फोटो रेस्टोरेशन के काम से पहले की है और इसमें गोलों के निशान साफ़ नज़र आ रहे हैं.चित्र आभार http://www.bbc.co.uk/