काबुल में अभी बहुत कुछ है देखने को पर पहले सैर करते हैं पंजशीर की. हमारे दोस्त सैफुलाह साहब और एक और भारतीय परिवार ने प्रोग्राम बनाया एक दिन पंजशीर जाने का.हम मेहमान थे वहाँ के एक सरदार जनरल मीर जान के जिन्होंने पहाड़ की चोटी पर बने अपने गेस्ट हाउस में हमें खाने की दावत दी. यह इलाका अफगानिस्तान का सबसे खूबसूरत इलाका है . काबुल से करीब 150 किमी पर है पंजशीर घाटी .पंजशीर नदी के किनारे किनारे बनी सड़क ,आपको जन्नत सा दृश्य दिखाती हैं. यह नदी भी निर्मल निर्जल है.न कोई प्रदूषण ,न कोई गंदगी.साफ़ तेज बहता जल .ऊंचे पहाडों के बीच कल कल बहती नदी , मनोरम वादी और हलकी ठंडक लिए हवा .
रास्ते में नदी में ठंडी होती कोल्ड ड्रिंक की बोतलें!
रास्ते में जगह जगह इस तरह युद्ध के चिन्ह दिखाई देते हैं . यह हैं पुराने रूसी टैंक .
पंजशीर जाना जाता है अहमद शाह मसूद के नाम से जिनको पंजशीर का शेर कह कर लोग याद करते हैं. काबुल में भी इन्हीं के बड़े पोस्टर नज़र आते हैं. इन्होने अपनी नोर्दर्न अलियांस का गठन किया.सोवियत आक्रमण और कब्जे के दौरान पंजशीर का इलाका ही रूसी सेनाओं को रोका सका था और यहाँ सोवियत का अधिकार नहीं स्थापित हो पाया था.मसूद ने तालिबान को भी रोका था और पंजशीर प्रांत में उनका दखल नहीं हो पाया . पंजशीर घाटी में उनके गाँव के पास एक पहाड़ पर उनका मकबरा बन रहा है .
ऐसा नहीं है की पंजशीर जाते समय कोई मंजिल है जहाँ पहुंचना है. हम लोगों को तो जनरल साहब के ठिकाने तक जाना था पर रास्ता इतना सुंदर है की आप उसक आनन्द लेते हुए सफर को ही मंजिल मानिये.
रास्ते में ही एक गाँव के लोगों ने हमारे मेहमाननवाजी की .अफगानी चाय,नान,शहतूत हमारे लिये आसपास के लोगों ने भेजा. पर वहाँ खड़ी लड़कियों की तस्वीर लेने से मना कर दिया !
रास्ते में नदी में ठंडी होती कोल्ड ड्रिंक की बोतलें!