टिप्पणियों से हौसलाफजई हुई है...तशक्कुर . इसके जवाब में बड़ा ही मीठा सा " काबिले तशक्कुर नीस्त " सुनने को मिलता है. यह जवाब मुझे इतना मीठा लगता है की कहना नहीं भूलती .और आप भी शुक्रिया या तश्क्कुर का जवाब ऐसे पाएँगे सबकी ज़बान से... मिलने पर असलाम वालेकुम के बाद एक सिलसिला आपकी खैरियत पूछने का ।खूबस्ती, खाने-खैरतस्ती ,चतुरस्ति . और आप बोलेंगे खूब हस्तम चतुर हस्तम। अपना दाँया हाथ सीने पर रखकर स्वागत करते हैं लोग.
काबुल की सबसे खूबसूरत जगह है "बाग़े बाबुर " जहाँ मुगल बादशाह बाबर का मकबरा है .बाबर समरकन्द से काबुल आये और फिर वहाँ से हिन्दुतान का रुख किया.पर हिन्दुस्तान का मौसम उन्हें पसन्द नहीं था.उनकी ख्वाहिश थी कि उन्हें उनके प्यारे काबुल में ही दफ़न किया जाए. उनकी इच्छा थी कि उन्हें आसमान के नीचे बिना ज़्यादा लाग लपेट के दफनाया जाए .सो उनकी कब्र भी खुले आसमन के नीचे है .सिर्फ चारों ओर बहुत ही सुन्दर जाली है।
तकरीबन २५ एकड़ में बने इस बाग़ को बाबर ने बनवाया था.गृह युद्ध में यह भी काबुल के अन्य स्थलों की तरह यह भी क्षतिग्रस्त हो गया था. इसके पीछे पहाड़ हैं जहाँ से गोले दागे जाते थे.इस बाग़ में बारूदी सुरंगे भी बिछाई गयीं.
अब आगा खान ट्रस्ट ,और संयुक्त राष्ट्र की मदद से इसको पुनः उसी रूप में लाया जा सका है.कहते हैं मुग़ल काल के बागों की विशिष्ट चारबाग नुमा रचना इसी बाग़ पर आधारित है .
यहाँ शाहजहाँ द्वारा बनायी गयी एक मस्जिद है
यह फोटो रेस्टोरेशन के काम से पहले की है और इसमें गोलों के निशान साफ़ नज़र आ रहे हैं.चित्र आभार http://www.bbc.co.uk/
दिल्ली से काबुल के लिये एयर इंडिया की उडानें हैं जो बुधवार को छोड हर दिन जाती हैं.फिलहाल यह सवेरे ७.४० पर दिल्ली अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से चलती हैं.सफर तकरीबन पौने दो घंटे का है. आपको वीसा लेना पडेगा .वैसे अफगानिस्तान की दो और विमान सेवायें भी हैं काम एयर और आरियाना जो शायद ज़्यादा सस्ती हैं पर भरोसेनमंद नहीं .दिल्ली से किराया लगभग १४००० के आसपास है ( आने जाने का,इकोनमी क्लास! )।
आइये कुछ काबुल की सैर हो जाए ।काबुल की सबसे खूबसूरत जगह है "बाग़े बाबुर " जहाँ मुगल बादशाह बाबर का मकबरा है .बाबर समरकन्द से काबुल आये और फिर वहाँ से हिन्दुतान का रुख किया.पर हिन्दुस्तान का मौसम उन्हें पसन्द नहीं था.उनकी ख्वाहिश थी कि उन्हें उनके प्यारे काबुल में ही दफ़न किया जाए. उनकी इच्छा थी कि उन्हें आसमान के नीचे बिना ज़्यादा लाग लपेट के दफनाया जाए .सो उनकी कब्र भी खुले आसमन के नीचे है .सिर्फ चारों ओर बहुत ही सुन्दर जाली है।
तकरीबन २५ एकड़ में बने इस बाग़ को बाबर ने बनवाया था.गृह युद्ध में यह भी काबुल के अन्य स्थलों की तरह यह भी क्षतिग्रस्त हो गया था. इसके पीछे पहाड़ हैं जहाँ से गोले दागे जाते थे.इस बाग़ में बारूदी सुरंगे भी बिछाई गयीं.
अब आगा खान ट्रस्ट ,और संयुक्त राष्ट्र की मदद से इसको पुनः उसी रूप में लाया जा सका है.कहते हैं मुग़ल काल के बागों की विशिष्ट चारबाग नुमा रचना इसी बाग़ पर आधारित है .
यहाँ शाहजहाँ द्वारा बनायी गयी एक मस्जिद है
यह फोटो रेस्टोरेशन के काम से पहले की है और इसमें गोलों के निशान साफ़ नज़र आ रहे हैं.चित्र आभार http://www.bbc.co.uk/
4 टिप्पणियां:
Bahut khoobsoorat salaam hai jee aapka Kaabul ke janib. Kash hum bhee us firdaus ko dekh paate.
Shukriya.
आपके साथ साथ काबूल घूम ले रहे हैं. बहुत उम्दा लिख रहीं है और तस्वीरें देखकर आनन्द आ रहा है.
तशक्कुर!!
ब्लॉग पर आने का शुक्रिया बवाल वाले हमब्लोगर .समीरजी काबिले तशक्कुर नीस्त !
vah likhti rahe ....padhne me maja aa raha hai..thode photo aor dene ki koshish kare....
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