रविवार, नवंबर 06, 2011

के बी सी बनाम बिग बॉस

श्योर    हैं  फ़ाइनल जवाब ...लॉक    कर दिया जाए ...मुस्कान और फिर सही जवाब का एक स्वर जिसमें उतना ही  आनंद भरा होता है जितना स्वयं प्रतिभागी के ह्रदय में. यह  सब के बी सी की पहचान  कराने वाली कुछ झांकियां हैं. 
चैनल  बदलिए....खुसपुस खुसपुस...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसे बात करने की...यू ***....वह तो ऐसी है... अरे वह तो उसके सामने ऐसे बात करते हैं और हम लोगों से कुछ और बोलते हैं....!लगता है सब कुछ काला, मनहूसियत की छाया लिए .बिग बॉस का घर.

सीरियल से हटकर दो प्रोग्राम  जिनका प्रचार जोरशोर से हुआ और अब कई  सीसन कर चुके हैं. जब भी शाम को मैं टीवी देखती हूँ तो अनायास ही यह ख़याल आता है. एक ओर बिग बी का ठिकाना  ..जीवंत,हंसी ,जोश, उत्साह से भरपूर के बी सी का प्रोग्राम. सपरिवार एक साथ बैठ कर ज्ञान ,मनोरंजन और सबसे बड़ी बात पूरी तल्लीनता से मज़ा उठाने का  .अमिताभ बच्चन के गरिमामयी व्यक्तित्व   ,संयमित व्यवहार,सुन्दर स्वच्छ  भाषा ,से यह खेल इतना दर्शनीय है ,कि क्या कहने .बच्चे बड़े  सभी इसमें पूरी तरह से शामिल महसूस करते हैं.हाँ इस बार पंचकोती  महामणि कौन बनेगा करोडपति लगता है कुछ अधिक परोपकार की राह पर चल निकला है,पर दर्शकों की सहभागिता बनी रहती है. देखते हुए एक सकारात्मकता ,एक प्रसन्नता का अनुभव होता है.

कुछ आधे घन्टे बाद रात के अँधेरे में चलें बिग बॉस के घर दस्तक दें. क्या कुहराम है,क्या अस्त व्यस्त सा समां है. सब कोइ किसी साज़िश में लगा है. अगर कोइ सकारात्मकता दिखती भी है तो क्षणिक . उसे भी लगता है दबा दिया जाता है.क्या घर परिवार ऐसे ही होते हैं,चीखते चिल्लाते, एक दुसरे के विरुद्ध कुमंत्रण करते. ऐसे संसार के बारे में सोचना और फिर उसे रात दर रात पर्दे पर दखना कितना नकारात्मकता से भर देता है व्याकुलता होती है उसे देख कर.सामने कुछ पीछे कुछ और .काम करने से दूर भागते लोग,दिनचर्या बिग बौस के इशारे पर निर्धारित ,बिना किसी प्रयोजन के दिन काटते प्रतिभागी....खाली दिमाग शैतान का घर. तभी षड़यंत्र के साए उस बेहद धनी घर में छाये रहते हैं. देख कर एक विमुखता सी हो जाती है. न सहजता न सौम्यता ,न सकारात्मक  ऊर्जा का एहसास. 

अपनी टीवी तो १० बजे बंद हो जाता है !