गुरुवार, अक्तूबर 22, 2009

एमज़ोन के वर्षा वन

इन्द्रधनुष के लिए UNESCO विश्व विरासत श्रृंखला की यह पहली कड़ी है.अभी सम्पादकीय कैंची से यह गुज़रा नहीं है


मेरे एक दोस्त हैं घुमक्कड़ मियां।उनके पैरों में तो जैसे चक्करघिन्नी लगी हुई है.जब देखो अपना बैग उठाते हैं और चल देते हैं दुनिया की सैर करने. आज उनसे मुलाकात हुई तो मैंने पूछा,"अरे घुमक्कड़ मियां , अब कहाँ जाने का प्रोग्राम बना रहे हैं.मुझे लगता है अब दुनिया की कोई जगह ऐसी नहीं है जहाँ आप गए नहीं हैं!"

"अरे दुनिया इतनी बड़ी है की कोई सौ जनम ले तो भी पूरा नहीं घूम सकता. पर तुम्हें एक राज़ की बात बताते है।"

मेरे कान खड़े हो गए."क्या,क्या?"


घुमक्कड़ मियां बोले."क्या तुमने विश्व विरासत स्थलों के बारे में सुना है?"

"नहीं"

"ह्म्म्म.....यही तो.दुनिया में कितनी सारी जगह हैं जिनके बारे मैं हम सोच भी नहीं सकते की ऐसी जगह भी हमारी धरती पर हैं।"

"संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) के युनेस्को ने विश्व विरासत स्थल ऐसे खास स्थानों (जैसे वन क्षेत्र, पर्वत, झील, मरुस्थल, स्मारक, भवन, या शहर इत्यादि)को कहा है, जो विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा चुने गए हैं.यह प्राकृतिक भी हो सकते हैं या फिर मानव ने इन्हें बनाया हो. पर ये इतने अनूठे और अद्भुत हैं की इन्हें बचाना और आने वाली पीढ़ी के लिए संभाल कर रखना हमारी जिम्मेदारी है."इस बार मैं ऐसी ही एक जगह की सैर कर के आया हूँ और अब से हर बार ऐसे ही किसी जगह की सैर करूंगा। ""

कहाँ से रहे हैं?"

"इस बार मैं गया था दक्षिण अमेरिका के वर्षा वन यानि एमाज़ोन नदी के रेन फोरेस्ट्स ।""

पर उन वन में ऐसा क्या है जो उन्हें हमारी विरासत की सूची में लाता है।"

घुमक्कड़ मियां बोले," बड़ी ही अद्भुत जगह है.मैं तो दंग रह गया वहां जा कर.चलो तुम्हारे साथ बाँटते हैं वहां की सैर।"

"तुम्हें पता है की एमाजोन नदी पानी के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी नदी है. इसमें इतना पानी बहता है की जब यह एटलांटिक महासागर से मिलती है तो करीब २०० किमी तक महासागर का पानी ,नदी का ही होता है और यह खारा नहीं होता . इस नदी के आसपास पाए जाने वाले जंगल को वर्षा वन कहते हैं. यह जंगल इतना बड़ा है जितना की लगभग हमारा देश! यह वर्षा वन दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे घना वन हैक्या तुम सोच सके हो की इतने बड़े जंगल से हमारी धरती को कितना लाभ होता है.इसके घने पेड़ कार्बन डाइओक्साइड को सोख लेते हैं और दुनिया की २० प्रतिशत आक्सीजन इन्हीं पेड़ों से मिलती है.इसलिए इन्हें दुनिया के फेफडे कहा जाता है ! जैसे शरीर फेफडे के खराब हो जाने से बीमार हो जाता है वैसे ही इन जंगलों के कट जाने से हमारी पृथ्वी को भी बहुत नुकसान होता है. यह जो वर्षा वन है यह वैसे तो दक्षिण अमरीका के 9 देशों में फैला हुआ है ,ब्राजील,बोलीविया,पेरू,इक्योदर ,कोलंबिया,वेनेज्यूला,गयाना , सूरीनाम और फ्रेंच गयाना ।"


"घने जंगलों में घुस पाना तो बहुत मुश्किल है. मैं हैरत में पड़ गया यहाँ के जीव जंतुओं को देखकर. तब हमारे गाइड ने बताया की दुनिया में पाए जाने वाली जीव -जंतु और पेड़ों की जातियों में आधी से ज्यादा यहाँ मिलती हैं.इसी को कहते हैं बायो- डाइवर्सिटी

अच्छा क्या तुम्हें पता है की आलू कहाँ से आया ....इन्हीं वर्षा वन से. अच्छा बताओ चावल कहाँ से आया ॥इन्हीं वर्षा वन से. सोचो केला कहाँ सबसे पहले उगा होगा, या फिर अदरक,काफी,गन्ना. हाँ यह सबसे पहले यहीं से शुरू हुए थे.दुनिया में जो भी फल, फूल, सब्जी, अनाज खाया जाता है उसमें ८० प्रतिशत अमाज़ोन के वर्षा वनों से शुरू हुए.अब मुझे भी समझ में आने लगा की क्यों यह हमारी विरासत है.मेरे ब्राजीली साथी ने बताया की वहां ३००० तरह के फल मिलते हैं.विश्वास नहीं होता?

वैसे तो हम सिर्फ वर्षा वन का बहुत बहुत थोडा भाग ही देख पाए पर हमें लगा की जंगल में पेड़ -पौधे के उगने का एक नियम है. वहां पेड़ चार परतों में पाए जाते हैं. सबसे ऊँचे पेड़ जो २०० फीट तक जा सकते हैं .इन पेड़ों पर कुछ जानवर ऐसे भी रहते हैं जो इन ऊँचाइयों से नीचे नहें उतरते. इसके बाद आती है छत्री वाली परत .इन पेड़ों की छोटी अंडाकार पट्टियां होती हैं.यह जंगल की सबसे घनी और मुख्य परत है और इसी में यहाँ के फल और फूल पाए जाते हैं.इसके बाद वाले परत तक बहुत कम धूप पहुँच पाती है.इसीलिये यहाँ के पेड़ों की पत्तियां चौड़ी होती हैं. इस परत में सबसे ज्यादा कीडे मकौडे होते हैं. सतह वाली परत तक तो धूप पहुँचने का सवाल ही नहीं उठता इसलिए जंगल की ज़मीन पर सिर्फ सड़े फूल,पत्तियां पाए जाते हैं और रेंगने वाले कीडे मकौडे .



घुमक्कड़ मियां ने लम्बी सांस ली. बोले," इतनी विविधता देख मैं तो दंग रह गया भाई. यह हमारी प्रकृति कितनी धनी हैयहाँ एक एकड़ की जगह में ७५० पेड़ और १५०० तरह के पौधे मिलते हैं।"

"यह तो हुई पेड़ पौधों की बात.लेकिन यहाँ पर पशु पक्षी भी बड़े निराले और दुर्लभ किस्म के रहते हैं.यहाँ पाया जाने वाला स्कारलेट मकाउ एक तरह का बहुत ही रंगीन तोता होता है. एनाकोंडा नाम का सांप जो दुनिया का सबसे भारी सांप है.इसका वजन एक घोडे के बराबर होता है.यह जहरीला नहीं होता और एक बड़ी गाय को एक बार में निगल लेता है! अच्छा हुआ मुझे यह सांप दिखाई नहीं पड़ा ! वेम्पायर बेट दुनिया का एक ही ऐसा चम्गादड़ है जो जानवरों का खून पीता है. यक ! वहां घूमने का सबसे बढ़िया तरीका है एमज़ोन या फिर उसकी उपनदियों पर नाव से जाना . पर एमज़ोन में पाई जाती है पिरहाना नाम की मछली जो मांस खाती है .अगर आप का हाथ या कोई अंग उसकी पकड़ में गया तो वह उस खा जायेगी .ऐसे ही बहुत से जानवर इन वर्षा वन में पाए जाते हैं.ऐसी कई पक्षी और पशु जनले के अन्दर होंगे जिनके बारे में अभी तक पता ही नहीं कर पाए। "

"आओ वहां के निवासियों से भी तो तुम्हारा परिचय करायें.हाँ, इस घने जंगल में भी लोग रहते हैं जो वहां के मूल निवासी हैं.यहाँ किसी ज़माने में ६० लाख कबीले वाले इन जंगलों में रहते थे पर अब घट कर सिर्फ . लाख रह गए हैं.यह भी २१५ कबीलों में बनते हैं और आपस में १८० भाषाएँ बोलते हैं. ऐसा मानना है की इनमें ५० कबीले ऐसे हैं जिन्होंने आजतक किसी बाहर की दुनिया वाले को नहीं देखा है . जैसे जैसे हम इनके करीब पहुँचते हैं यह वन के और अन्दर जाते जा रहे हैं . शायद आज की दुनिया से इन को कोई लेना देना नहीं है.आखिर यह दुनिया ही तो है जिसने इन अनोखे जंगलों को इतना नुकसान पहुँचाया है.इन कबीलों में होते हैं इनके अपने डॉक्टर जिनका ज्ञान सिर्फ मुँह्ज़बानी है.पर इन्हें इसा वन संपदा के पेड़ों के गुणों के बारे में इतना पता होता है .एक भी ओझा के मरने से मानों एक लाइब्रेरी ख़तम हो गयी क्योंकि वह हजारों साल का ज्ञान किसी को बिना बताये चले गए

घुमक्कड़ मियां बोले,"वहां की बातों का कोई अंत नहीं. बस इतना जान लो की अगर हमने सावधानी नहीं बरती तो यह अमूल्य वन नष्ट हो जायेंगे और उनके साथ कितने पेड़ पौधे पशु -पक्षी और कबीले.इसलिए यह हमारी विरासत है जो हमें आने वाली पीढीयों को देनी है ।"

"अब मैं आराम करता हूँ और अगली बार तुम्हें सुनाऊंगा ऐसी एक और विश्व विरासत की दास्ताँ !"


बुधवार, अक्तूबर 21, 2009

सौंप और उनका विष

इन्द्रधनुष के लिया लिखा एक लेख ।

सांप का नाम सुनते ही हम सबको बस एक चीज़ ध्यान में आती है और वह है सांप का ज़हर । सांप के डसने से सबको डर लगता है और इसलिए सांप दिखते ही उसे मार दिया जाता है। .लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं की सांप का ज़हर हमेशा जान ही ले ले.कभी कभी वह जान बचने के भी काम आता है. है न आर्श्चय की बात? पर सच है! सोचो तो कैसे ? दरअसल बात यह है कि सांप का ज़हर शरीर में पहुंचकर ,अलग अलग तरीकों से शरीर के भागों पर असर डालता है. पर यह बात हमें पता कैसे चली.आस्ट्रेलिया के एक वैज्ञानिक ब्रायन ग्रेग फ्राई जब पढ़ रहे थे तब अपने पढाई के काम के लिया उन्हें एक "स्टीफेंस बैंदेड " नाम का सांप पकड़ना था.यह आस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला बहुत ही विषैला सांप होता है. फ्राई को डर तो लग रहा था पर उस पकड़ना उनके लिए बहुत ज़रूरी था. पर पकड़ने में ज़रा सी चूक हो गयी और सांप ने उन्हें काट लिया. फ्राई तुंरत बेहोश हो गए और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा, पर सांप के काटने के बावजूद फ्राई ने हिम्मत नहीं हारी बल्कि वह सोचने लगे कि ज़हर में ऐसा क्या था जिससे कि वह बेहोश हो गए.उन्होंने तय किया कि वह सांप और अन्य ज़हरीले मेंढक .घोघा,छिपकली,बिच्छू आदि जानवरों के विष पर रिसर्च करेंगे.
दुनिया भर नें उनके जैसे कई वैज्ञानिक इस काम में जुटे हैं.वह एकदम नए नए तरीकों से यह तलाशने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर जानवरों का ज़हर किन चीज़ों से बना होता है. .सालों तक मेहनत कर फ्राई ने खोज निकाला कि जिस सांप ने उन्हें काटा था उसका ज़हर शरीर में जाकर खून की नली को चौडा कर देता है और वह फ़ैल जातीं हैं.इससे खून का दबाव कम हो जाता है.यानि कि शरीर में रक्तचाप गिर जाता है. तभी सांप के काटने पर फ्राई बेहोश हो गए थे.फ्राई ने पाया कि अगर इस ज़हर कि एक छोटी खुराक किसी ऐसे आदमी को दे दी जाए जिसे ऊँचे रक्तचाप(हाई ब्लड प्रेशर) की शिकायत है तो उसका रक्तचाप गिर जायेगा, कई बार जब रक्तचाप बहुत बढ़ जाता है तो मरीज को दिल का दौरा पड़ जाता है. इस तरह के दिल के दौरे के लिए यह ज़हर दवा का काम करता है ! है न कितनी अद्भुत बात ! ऐसा ही एक और सांप है "ग्रीन मम्बा " जो अफ्रीका में पाया जाता है,उसका ज़हर भी इस तरह की दवाई बनाने के काम आता है. इसी तरह एक सांप के ज़हर में ऐसा प्रोटीन पाया जाता है जो शरीर की मांसपेशियों को जकड देता है.मांसपेशियों(muscles) के जकड़ जाने से दिल और फेफडे काम करना बंद कर देते हैं . एक अन्य तरह का ज़हर जब शरीर में फैलता है तो खून के थक्के बना देता है. इस ज़हर से खून की नालियों में जगह जगह खून जमने लग जाता है और बहना बंद हो जाता है. क्या आपने गौर किया है कि जब आपको चोट लगती है तब थोड़ी देर तक तो खून बहता है ,और उसके बाद वहां जमने लग जाता है.इसे ब्लड क्लोटिंग कहेते हैं और यह बहुत ज़रूरी है नहीं तो चोट लगने के बाद शरीर से सारा खून ही बह जायेगा ! जब बहुत ज्यादा खून बहता है तो उसको रोकने के लिए इस ज़हर को दवा की तरह काम में लाया जा सकता है. यह न सिर्फ घाव पर बल्कि बड़े ओपरेशन के दौरान होने वाले खून के बहाव को रोकने के काम आते हैं . "कोन शेल स्नेल" समुद्र में पाया जाने वाला बहुत ही रंग बिरंगा घोघा होता है.यह भी ज़हरीला होता है और अपने शिकार को बहुत ही खतरनाक ज़हर से मार देता है.इसका काटना इतना तेज़ और ज़हरीला होता है कि पता ही नहीं चलता कि कब इसने काट लिया है. पर इसके ज़हर में ऐसे कई केमिकल पाए गए हैं जो शरीर के दर्द को मिटा सकते हैं. यह आजकल इस्तेमाल हो रहे पीडा नाश्कों (पेन किलर्स ) से कहीं ज्यादा असर कर सकते हैं . ओपरेशन के बाद बहुत तेज़ उठते दर्द को ठीक करने के लिए ,वैज्ञानिक इनको काम में लाना चाहते हैं. जी
क्या आपको पता है कि हमारे दिमाग और नस की कोशिकाएं (सेल) बिजली के छोटे छोटे सिग्नल भेज कर अपना काम करती हैं? लेकिन एक बहुत ही खतरनाक ज़हर ऐसा भी है जो इन सिग्नलों पर असर करता है और वह बिना किसी रोकटोक अजीबोगरीब तरह से निकलना शुरू हो जाते हैं। वैज्ञानिक सोचते हैं कि जिन व्यक्तियों को कोई दिमागी बीमारी है उन्हें इस ज़हर से ठीक किया जा सके। डाक्टर फ्राई और दुनिया भर कए वैज्ञानिक जानवरों के ज़हर की खोज कर रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि कैंसर ,,दिल की बिमारियों,दिमाग के ट्यूमर आदि का इलाज ढूँढ निकालें. .ज़हर के बारे में रिसर्च करना और दवा खोज निकलना आसान काम नहीं है.डा फ्राई हर साल काम से काम ३००० सांप पकड़ते हैं .इसमें काटे जाने का बहुत बड़ा खतरा होता है. मालूम है, वह बहुत सावधानी से अपना काम करते है पर फिर भी २४ बार उनको साँपों ने काटा है ! कोन शेल स्नेल से दवा निकालने में कई-कई साल लग गए.ऐसा इसलिए है क्योंकि उसके ज़हर में करीब ५०००० . केमिकल्स, जिन्हें कोनोतोक्सिन कहा जाता है , मिलते हैं और उन में से वह एक केमिकल जो दर्द निवारक होता है, उसे अलग करना बहुत बहुत मुश्किल काम है ! इन में १०० ऐसे केमिकल्स यानि टोक्सिन हैं जो दवा के लिए उपयोगी होंगे पर उनको अलग करने में सालों लग जायेंगे .

पर इन सब खोज से यह बात तो सिद्ध हो गयी की जीवन लेने वाला जीवन बचाने वाला भी हो सकता है !

सोमवार, अक्तूबर 12, 2009

इन्द्रधनुष ..एक बाल पत्रिका



हिमाचल में मंडी-कुल्लू सीमा पर एक छोटा सा गाँव है शोझा .यहाँ पहुचने के लए ६ किमी की कठिन चढाई करनी पड़ती है. वहां से एक निवासी हर महीने एक निश्चित तारीख को इसलिए नीचे आता है की उसे ४ प्रति इन्द्रधनुष की लेनी है अपने गाँव के बच्चों के लिए. १२ रुपये की एक प्रति भी ३-४ बच्चे मिलकर खरीदते हैं. यह सिलसिला पिछले ५ साल से चला आ रहा है.
इन्द्रधनुष , हिमाचल के उन बच्चों तक पहुचने का लक्ष्य रखती है जहाँ ज्ञान अर्जन के और कोई साधन नहीं है.समाचार पत्र भी मुश्किल से पहुँच पाते हैं. और पढने के नाम पर सिर्फ स्कूल की किताबें. राष्ट्रीय साक्षरता अभियान के कुछ सदस्यों ने हिमाचल के ग्रामीण इलाकों में दौरा करते समय वहां की महिलाओं से पूछा की वह क्या पढ़ती हैं तो उनका जवाब था इन्द्रधनुष!
इन्द्रधनुष एक मासिक हिंदी पत्रिका है जो स्वयंसेवी प्रयत्नों से प्रकाशित हो रही है..इस वर्ष सितम्बर में उसने ५ साल पूरे कर लिए और पहाडी इलाकों में वितरण की समस्याओं ,लक्षित पाठकों के सीमित साधनों ,बिना किसी ओपचारिक ढांचे और बिना किसी व्यवासयिक सहायता के ६० अंक निकाले.यह एक बड़ी उपलब्धि , यह पत्रिका पूर्णतः एक छोटे से समर्पित स्वयंसेवकों के प्रयासों से चल रही है.इनका लक्ष्य ९ से १५ साल के उन बच्चों तक पहुंचना है जिनके पास कुछ अच्छा पढने के साधन सीमित हैं या न के बराबर हैं. इन्होने हिमाचल , उत्तराँचल,छतीसगढ़ ,उत्तर प्रदेश और बिहार के गाँवों में यह पत्रिका पहुँचने की कोशिश की है .अभी तक इसकी मुद्रण संख्या ४०००-१०००० के बीच उतरती चढ़ती रहती है.५२ पृष्ठों की इस पत्रिका का मूल्य सिर्फ १२ रुपये है पर कई जगह इस रकम को जुटाने के लिए भी दो चार बच्चों को जुड़ना पड़ता है. पत्रिका में बच्चों के पाठन और रुचि के लेख होते हैं. यह सरल भाषा में विज्ञान पर आधारित लेख, कहानियां ,चुटकुले, अपने आप कर के देखिये ,पहेलियाँ,फोटो,तथ्य आदि बहुत कुछ रहता है.
आई आई टी ,कानपुर की मेकनिकल इंजीनयर ,अंशुमाला गुप्ता ,शिमला के साक्षरता अभियान से जुडी थीं .इस कार्य के दौरान उन्होंने पाया की हिमाचल के ग्रामीण अंचल के बच्चों के पास ऐसा कोई साधन नहीं था जो उनकी पढ़ने की ललक को शांत कर सके .हिन्दी में इस तरह की पत्रिकाओं का अभाव है.उनका सपना था बच्चों के कोतुहल और जिज्ञासा को न सिर्फ तृप्त करना बल्कि बढ़ाना भी..उनका यह सपना और जोश इन्द्रधनुष के रूप में परिवर्तित हुआ.उनके साथ साथ हिमाचल ज्ञान विज्ञानं समिति ,अखिल भातरीय जन विज्ञानं नेटवर्क के लोगों के प्रयास और निष्ठां भी जुडी हुई है.कल मैं मिली डा टी वी वेंकटेश और डा इरफाना से जिनका सक्रिय योगदान इस पत्रिका के निकलने में है.
पत्रिका के सफलता इस बात से आंकी जा सकती है की बच्चे इसे ने सिर्फ चाव से पढ़ते हैं ,बल्कि आने वाले अंकों का इंतजार बेसब्री से करते हैं,और कई पुराने अंकों की भी मांग करते हैं.परन्तु इन्द्रधनुष हमेशा ऐसा सतरंगी रहे इसमें बहुत सी चुनौतियों हैं जिनसे अंशुमाला और उनकी टीम झूझती रहती है. लेखों की गुणवत्ता बनाए रखना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है ,क्योंकि बाल पाठकों की अपेक्षाओं पर खरे उतरना एक जिम्मेदारी भी है.अच्छे लेखों के लिए लेखकों को प्रेरित करना तथा सामग्री जुटाना ,ज्ञान विज्ञान की जानकारी बच्चों को देना,अन्य भाषा के उत्तम साहित्य को अच्छे अनुवाद से पाठक को प्रस्तुत करना यह सब चुनोतियाँ हैं .और सबसे बड़ी बात है की वित्तीय नुकसानों को झेलते हुए भी हर अंक समय पर और उच्च स्तर का निकालना, जिससे की बच्चों को निराशा न हो . इस चिठ्ठे का उद्देश्य इस उत्तम पत्रिका की और ध्यान आकर्षित करना तो है ,यह अंशुमाला और उनकी टीम के लिए मेरा योगदान है. आप सब भी इस नेक कार्य में योगदान दे सकते हैं .लेख भेज कर या वत्तीय योगदान करके,या फिर इसकी जानकारी औरों को दे कर जो की इस पत्रिका को पढ़ना चाहते हैं .