शनिवार, फ़रवरी 28, 2009

प्रेम पत्र या प्रमाण पत्र

कुछ अरसा हुआ सुनीता शानूजी की एक कविता पढ़ी थी प्रमाण पत्र जिस पर मैंने एक टिप्पणी की । उनकी कविता से सधन्यवाद प्रेरित होकर उसी टिप्पणी को विस्तार देकर यह कविता गढ़ी है.



सुबह सवेरे अखबार पढ़ा
और खबर पढी कुछ खट्टी सी
इश्क लड़ाते पति के बारे में
और अनजान बेचारी पत्नी की .

सोचा क्यों न पतिदेव पर
ऐसी कुछ आजमाईश करें
प्रेम का ठोस  सबूत दिखाएं
ऐसी कुछ फरमाइश करें .

जन्म जन्म के प्यार की
दी गयी दुहाई खूब
प्रेम पत्र के सारे पुलिंदे
पेश किये बतौर सबूत .

सहेली से जब बात छिड़ी
बोली बड़ी नादान हो तुम
इतनी जल्दी बहक गयी हो
बातों में हो गयी तुम गम.


पति की बातों पर मत जाना
प्रेम पत्र बहकावा है
इश्क विश्क की बातें करना
मर्दों का छलावा है।

सात फेरों का बंधन
सात साल में जाते भूल,
कर उनकी बातों का भरोसा
बन जाती पत्नी  अप्रैल फूल



सो मैंने उनसे  सालगिरह पर
प्रमाण पत्र एक माँगा है
प्यार उनका पक्का है
या फ़िर कच्चा धागा है

पति बोले हे ! प्राणप्रिये
क्या सांसों को पढ पाओगी
धड़कन बोले नाम तेरा
यह प्रमाण कहां से लाओगी

मैं भी अकड़ी
जिद पकड़ी
बोली यूं न टरकाओ मुझे
दिल में तेरे मैं ही हूँ
यह प्रमाण पत्र दिखलाओ मुझे

दुनिया में हर काम सधे
प्रमाण पत्र के बूते पर
कहलायें घोड़े भी गधे
एक बाबू के अंगूठे पर

आठवीं फेल हो जाये भर्ती
जहाँ चाहिए बी ऐ पास
प्रमाण पत्र के होते ही
ज़िंदा की रुक जाती  सांस !


नगर पालिका रखती है
जनम मरण का हिसाब
फिर भी बन जाते भारतीय
जाने कितने कसाब !



तुमने जिद पकड़ ली है
तो प्रमाण पत्र मैं लाऊँगा
अपने प्यार का यह सबूत
दीवार पर टंगवाऊंगा !

पर शर्त मेरी भी सुन लो
ए मेरे दिल की रानी
मंद मंद मुस्काते बोले
गर बात तुम्हारी मानी ।

कविता सविता पिंकी प्रीती
चाय सब को पिलवाऊंगा
और कभी  तुमने  की  शिकायत
प्रमाण पत्र दिखलाऊँगा !

नहीं चाहिए प्रमाण पत्र
प्रेम पत्र कोई कम नहीं
चाय कॉफ़ी  पिलाओ किसी को 
इसका तो मातम नहीं !

शनिवार, फ़रवरी 07, 2009

बसंत

गेहूं की बाली है,अमवा की डाली है
चारों ओर बहती पवन मतवाली है।

पीताम्बरी सरसों कैसे लजाती है ,
झूम झूम कैसे शरमाती इतराती है।

कोयलिया काली बावरी हुई जाती है ,
कुहू कुहू करती सबको तडपाती है।

नई कली कैसे मंद मंद मुस्काती है
तरु तरु नई कोपल नई आस जगाती है।

कचनार, ढाक पलाश में आग लग जाती है
मादक पछुआ जब उनको सहलाती है ।

सारी दिशायें कैसे मुखरित हो जाती हैं
बसंतागम की आहट जब पाती हैं।


सोमवार, फ़रवरी 02, 2009

सलाम काबुल....७ ( कुछ खरीदारी हो जाए)

काबुलीवाला जब हिंदुस्तान आता था तो उसके झोले में रहते थे सूखे मेवे । अफगानिस्तान का बादाम,किशमिश,अखरोट , अंजीर और पिस्ता बहुत दुनिया भर में पसंद किए जाते हैं. वहाँ का मौसम खुश्क रहता है इसलिए इन सूखे मेवों का ख़राब होने का डर नहीं रहता। काबुल में है मंडई बाज़ार जो दिल्ली के चांदनी चौक की तरह पुराने, थोक दामों वाला बाज़ार। पिछले बार हम वहाँ गए थे कुछ मेवे खरीदने ।

अफगानिस्तान के कालीन भी काफी मशहूर हैं और यह यहाँ के कई प्रान्तों में बुने जाते हैं। कालीन यहाँ का मुख्य निर्यात है .यहाँ के मजार-ऐ-शरीफ , तुर्कमेनिस्तान ओर हेरात के कालीन विशेष तौर पर बहुत अच्छे होते हैं। अब तो इस उद्योग को बढ़ावा दिने के लिए वहां कुछ कदम लिए जा रहे हैं .बहुत अफ़सोस इस बात का है की अधिकांश कालीन बुने तो अफगानिस्तान में जाते हैं पर पाकिस्तान और इरान जा कर इन में वहां का लेबल लग जाता है। इससे बुनकरों को कुछ फायदा नहीं होता और न ही उनका नाम होता है। अब कुछ सहकारी संस्थाएं बन रही हैं .ऎसी ही एक दुकान पर हम पहुंचे ...'ज़रदोजी' ।

कालीन की बारीकियाँ समझते हुए ।


अफगानिस्तान लेपिस लजूली यानी लाजवर्त का सबसे बड़ा उत्पादक है। वहाँ लेपिस लजूली की बने गहने बहुत मिलते हैं. गहने ही नहीं सजावट की चीज़ें भी इसकी बनती हैं। वैसे यहाँ अन्य रत्नों के भी आभूषण मिलते हैं पर लाजवर्त सबसे आम है.
काबुल की एक मशहूर बाज़ार है कूचा-ऐ-मुर्ग यानी "चिकन स्ट्रीट" .यह वहां के सैलानियों के लिए बड़ी प्रिय बाज़ार है.एक लम्बी सड़क के दोनों और तरह तरह की दुकानें . कालीन, जेवरात,पुरानी व अनोखी वस्तुएं ,सुदूर जनजातियों की हस्तशिल्प आदि . यहाँ जम कर मोल भाव करिए और पाइए की यहाँ तीन तरह के दाम हैं. एक अफगानियों के लिए, उससे थोड़ा ज़्यादा हिन्दुस्तानियों के लिए और एक खारिजी भाव पश्चिम के खरीदारों के लिए!
हमारी आम धारणा है की काबुल में बुर्खा प्रचलित होगा. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है । बाहर निकलने पर औरतें सिर ढँक लेती हैं .बुर्खा पहने का रिवाज़ कम है . शादियों में तो एक से एक खूबसूरत गाऊन पहने जाते हैं ,बिल्कुल आधुनिक फैशन के.
काबुल में कीमतें बहुत ज़्यादा हैं.अधिकतर सामान बाहर से आता है. खालिद होसिनी की Kite Runner मैंने देखी १७५० अफगानी की जिसका रूपये में मूल्य भी उतना ही होगा! सब्जी भी पाकिस्तान या दक्षिण अफगानिस्तान से आती है. इसलिय एक सुपर बाज़ार में यह पाकेट देखकर बहुत अच्छा लगा.यह अफगानिस्तान के लोगों का स्वालंबन की ओर महत्वपूर्ण कदम है.