शुक्रवार, जनवरी 30, 2009

सलाम काबुल..६( पोटरी)

हमारे देश में अगर खुर्जा और लखनऊ के नजदीक चिनहट की पोटरी मशहूर है वैसे ही काबुल के पास एक गाँव है इस्तलिफ जहाँ के कुम्हारों ने अपने हुनर को तमाम मुश्किलों के बावजूद बरकरार रखा है। यहाँ पर इस कला को यहाँ के कलाकारों ने पिछले ३०० साल से संजोया हुआ है। तालिबान के समय यह गाँव भी तहस नहस हो गया था ।
काबुल से करीब ५५ किमी उत्तर की ओर बसा यह गाँव मुख्य मार्ग से हटकर है इसलिए यह अफगानिस्तान में फैली भूमिगत बारूदों से बच गया था पर लडाई में इसे ध्वस्त आर दिया गया था। अब इसका भी पुनः निर्माण हो रहा है। । इस उद्योग को कई NGO की मदद मिल रही है। लेकिन गरीबी और आधुनिक तकनीक न अपनाने के कारण यहाँ बनाई गई वस्तुओं को गुणवत्ता शायद विश्व स्तरीय नही है . सलांग के रास्ते में कुछ दुकानें पड़ीं। हम इस्तलिफ तो नही जा पाए पर कुछ सामान इन्हीं दुकानों से खरीद लिया । यहाँ के कुम्हार अधिकतर फल रखने की प्लेट ,सजावट की वस्तुएं या फ़िर चाय की प्यालियाँ बनाते है।


दुकान के बाहर करीने से रखी वस्तुएं ।


आइये दुकान के भीतर चलें। यहाँ पर मोलभाव बहुत होता है। अपने हिसाब से हमने बहुत कम कीमत पर एक फूलदान n खरीदा । परन्तु कार में बैठे तो थोड़ी देर बाद हमारे अफ़गानी दोस्त वैसा ही एक ओर फूलदान दी हुई कीमत से आधे दाम पर ले आए .हाय सैलानी सब जगाह मारा जाता है!


इस्तलिफ की मशहूर ब्लू पोट्री का एक नमूना।

इन्हें पहचाना ! जी हाँ ... धारावाहिक "क्योंकि सास भी कभी बहू थी " की तुलसी और मिहिर. तुलसी की तस्वीर अफगानिस्तान में जगह जगह देखने को मिलती है पर वहां की हस्तकला के उत्पाद पर भी यह आश्चर्य की बात है.





शुक्रवार, जनवरी 16, 2009

सलाम काबुल ....५(सलांग)

काबुल से१००किमि दूर है हिन्दू कुश की पर्वतमाला में सलांग पास जो काबुल और उत्तरी अफगानिस्तान के बीच आवाजाही सुगम बनाता है.हमने तय किया की एक दिन माला. . माला घूमने जायेंगे . निश्चय हुआ सवेरे निकल पड़ेंगे जिससे शाम को अँधेरा होने से पहले काबुल के अन्दर हों। पर छुटी की अलसाई सुबह , ठण्ड , बुखारी से गर्म हुआ कमरा , सब मिलाकर निकलते निकलते ११ बज गए ।




यह बात हो रही थी की काबुल से सड़क का कोई रास्ता सुरक्षित है तो सिर्फ़ उत्तरी दिशा का.इसलिए हमने सलांग जाने का प्रोग्राम बनाया। पता चला की बाकी सारी दिशाओं के मार्ग पर तालिबान का हमला होने का डर बना रहता है। खैर बाद में इस सुरक्षा का भी खंडन हो गया जब पता चला की हमारे जाने के दूसरे दिन ही उस रास्ते पर स्थित "चारिकार" नाम की एक जगह पर वहां के गवर्नर के घर के पास बम फूटा।
आइये उस सफर कीi सैर करें इन तस्वीरों के साथ। यह काबुल में ही होटल पेरिस के सामने बना आइफिल टावर का रूप।

यह सीधी सड़क ले गयी हमें सलांग. किनारों पर फलों की दुकानें दिखायी पड़ रही हैं जहाँ से हमने ख़रीदे कीनू,गाजर और अनार. अफगानिस्तान के कंधार प्रांत के अनार बहुत मशहूर हैं.


एक गाँव से गुज़रे हम .पृष्ठभूमि में जो टावर दिख रहा है वह भारत के ही पावरग्रिड कारपरेशन द्वारा अफगानिस्तान में किए जा रहे निर्माण कार्य के अंतर्गत बन रही है ट्रांसमिशन लाइन का हिस्सा है.
दूर से दिखती हिन्दू कुश पर्वत श्रृंखला ।


बर्फ दिखनी शुरू हो गयी . इस तरह की कई सुरंगें मिलीं लेकिन सबसे मशहूर सलांग सुरंग तक हम नहीं गए.
अब बर्फ से ढंके पहाड़ दिखने लग गए .
स्नोबाल और बर्फ पर लुढ़कने के बाद सुस्ताने के पल।
चारों ओर बर्फ है पर नदी का पानी अभी जमा नहीं है. स्वच्छ , शीतल पानी पर हाथ डाला तो जम गए!
लौटते वक्त हम रुके कुछ ब्लू पॉटरी खरीदने के लिए पर वह अगली किश्त में।


शनिवार, जनवरी 03, 2009

सलाम काबुल ....बर्फ और स्नोमन


सुबह खैर काबुल!

इस बार काबुल की ठण्ड देखने का प्रोग्राम बना और नए साल का आगाज़ भी वहां पर ही करने का .सो इस जाड़े की छुट्टियों में पहुँच गए काबुल.वैसे भारतीय दूतावास में आत्मघाती हमले के बाद काबुल यात्रा का वृतांत लिखने की बहुत इच्छा नहीं हुई ।
एयर इंडिया के प्लेन में बताया गया की काबुल हवाई अड्डे का तापमान १ डिग्री है सो कंपकपी होने लगी पर बाहर निकल कर लगा उतनी ठण्ड नहीं है । 25 दिसम्बर को हम काबुल पहुँचे और वह दिन तो घर पर ही बीता ,पर तय हुआ की अगलेदिन काबुल से१०० किमी दूर सलांग घूमने जाएँगे ।