शुक्रवार, जनवरी 29, 2016

बदल गयी है दुनिया कैसे

बदल गयी है दुनिया कैसे , कैसे अजब नज़ारे हैं
आसमान में धुंधले अब तो, दिखते भी सितारे हैं।

हर तरफ है धुआं फैला हर तरफ कुछ मैला है
हर इंसान को दिखता जब सिर्फ पैसों का थैला है !

अभी सड़क बनी नहीं कि पड़ने लगीं दरारें हैं
तारकोल जैसा भी हो लालच की खूब मिसालें हैं  

पैर तले ज़मीन खिसक गयी ऊपर खूब प्रदूषण है
फेफडे बोले हाय राम यह कैसा गजब कुपोषण है

आक्सीजन के नाम पर  अंदर, आता विष प्रवाह है
क्या होती थीं साँसे  जानें ,अब लेते हम सिर्फ आह  हैं !

जान जाने के भी  देखो कितने नए नये तरीके हैं
मनचले पियक्क्ड़ की गाड़ी  कितनो को घसीटे है!

कुछ कमाल दिखाती है अपना ,नकली दवा की बोतल भी
बाकी हाथ बटाने आयी ,भोजन में हुई मिलावट भी।

हमने भी मारी एक कुल्हाड़ी ज़ोर से अपने  पैरों पर
बलि चढ़ गया चलना फिरना ,कम्प्यूटर के चेहरों पर। 

बदल गयी है दुनिया कैसे कैसे अजब नज़ारे हैं
अपनी ही फोटो खींचे सब ,बस अपने ही सहारे हैं !

शुक्रवार, जनवरी 01, 2016

नया कैलेंडर

पुराने कैलेंडर को उतार लगने जा रहा है
अब एक नया कैलेंडर 
पिछले पर बहुत हिसाब किताब लिखे  हैं 
कुछ खास काम लिखे हैं। 
कब कामवाली छुट्टी से वापस आएगी ,
कब गैस  जल्दी ख़त्म हो गयी  
किस महीने ज़्यादा चली 
कब किसी के घर दावत है 
घर की दावत का मेनू क्या है।    
किस की अंतिम तारीख है 
कब कहीं बाहर जाना है। 
हर महीने का छिट्ठा  कैलंडर 
हो गया अब कबाड़ है। 
फिर भी  एक बार पलट कर देखना 
कुछ आहें भर ,कुछ खिसियाना।  
नया कैलेण्डर टांग दिया 
हर पन्ना एकदम कोरा है। 
बस पहली तारीख में एक शब्द लिखा 
प्रसन्न 
बाकी साल में कुछ भी हो 
हर महीने की हर तारीख में कुछ भी लिख जाये 
पलट कर साल की शुरुआत देखेंगे 
और कोरे पन्ने पर मुस्कान 
खिंच जाएगी !