शनिवार, दिसंबर 16, 2006

सतरंगी संसार


माँग का सिंदूर
माथे की बिंदिया
हाथ की मेंहदी
कलाई की चूडियाँ

कजरारी आँखें
गाल शर्मसार
काँपते लबों
का
मौन स्वीकार

सजाऊँ तुम्हारा
सतरंगी संसार

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सुंदर है, बधाई!

Poonam Misra ने कहा…

धन्यवाद समीरजी,उत्साहवर्धन के लिये भी और संशोधन के लिये भी.

बेनामी ने कहा…

कजरारी आँखें
गाल शर्मसार
काँपते लबों
का
मौन स्वीकार

बहुत सु्दर !
इतने दिनों बाद आपको चिट्ठा जगत में वापस आया देख कर बेहद खुशी हुई । आशा है आप नियमित रूप से लिखती रहेंगी ।