शुक्रवार, जून 25, 2010

पीपल परमारथ भजो, सुख सागर को मूल

        हमारी छत के सामने एक पीपल का पेड़ है .सर्दी पड़ने लगी और यह इतना बड़ा पेड़ सारी धूप छीनकर खड़ा है. सूरज भी उसकी पत्तियों की जाली से झांकता ,रिझाता ,खिजाता पर सामने न आता . हम अपनी कुर्सियां इधर खिसकाते , उधर खिसकाते और सोचते ,क्या पेड़ है कटवाया भी नहीं जा सकता . एक एक कतरा धूप जैसे हमसे छुपनछुपई खेलता .है पूरा जाड़ा हम मन मसोस कर रह गए कि ठीक से धूप सेंकने को नहीं मिली. शायद मौसम को हमारा ऐसा सोचना गवारा न लगा. फरवरी में देखा उसके पत्ते एक एक कर सूखने लगे. लगा कि पेड़ सूख रहा है.क्या हमारी हाय लग गयी उसे?क्या नाराज़ है वह हमसे ?पर सूखे पत्ते हवा चलने पर खनखनाते तो लगता असंख्य घंटियाँ सी बजने लगीं. इतना सुन्दर संगीत है इन सूखे पत्तों में भी. नयी पीढी को कितनी खूबसूरती से आने का आमंत्रण दे रहे हैं जाते जाते भी यह गुनगुनाते हुए जा रहे हैं. बिना पत्ते की डालियों के बीच से सूरज झाँक तो रहा था पर अब हमें धूप में बैठना की चाह नहीं. पहले हम उसे ढूंढते और वह आँख मिचौली खेलता.अब वह हमें बुलाता और हम कहते कि सर्दियाँ कम हो गयीं धूप बहुत तेज़ है !ज्यादा से ज्यादा शाम को मिल सकते हैं जब तुम भी थोड़े थके होगे और हमें भी अन्दर कमरे में ठण्ड लगेगी .


नयी कोपलें दीखने लगीं .छोटे नाज़ुक से पत्ते आहिस्ता से हवा में झूलते,चुपके से इस नयी दुनिया को देखते ,लगता हौले से ,डरते , सहमते , शर्माती हुयी सी मुस्कान से हमसे जान पहचान बढ़ा रहे हों. कहते तुम्हारे आँगन में हमीं से छाँव होगी.जब तुम सवेरे की चाय पियोगी तब हम होंगे साथ तुम्हारे . सुबह की ताज़ी हवा देंगे तुम्हें और तुम भी मेरा ख्याल रखना. सच ,पश्चिममुखी छत है सो सवेरे धूप नहीं आती .पर पीपल के पेड़ के साथ चाय पीने ,उसकी मज़बूत शाखाओं पर दिल के आकार के पत्तों को निहारना में बड़ा सुख है .चलपत्र को तो हिलना ही है ,सुख हमें मिलता है. हाँ हर सवेरे मैना का एक जोड़ा भी आ जाता है .उसने तो पीपल का हमेशा साथ दिया सर्दी में भी,पतझड़ में भी और अब जब पत्ते बड़े हो गए हैं तब तो मैना  भी चिंहुक उठी है .  

1 टिप्पणी:

RAJANIKANT MISHRA ने कहा…

achchha laga lalit nibandha jaisa kuchh paa kar.