गुरुवार, फ़रवरी 03, 2011

अंडमान - नार्थ बे में की पहली बार स्नोर्कलिंग

दूसरे दिन सवेरे सवेरे हम निकल पड़े अंडमान के एक और नज़दीकी टापू 'नोर्थ बे आईलेंड '.यह भी पोर्ट ब्लेर से साफ़ नज़र आता है. एबेर्दीन जेट्टी से खड़े हो कर देखने पर सीधे रोस आईलेंड है और बाईं तरफ थोड़ी और दूर पर नोर्थ बे. यहाँ पहुँचने में कोई २० मिनट लगा .नाव पर ही हमें कहा गया कि अगर स्नोर्केलिंग करनी है तो  ५०० रुपये प्रति व्यक्ति जमा करा दें. अंडमान के समुद्र के कोरल के बारे में बहुत सुन रखा था . सो तुरंत  पैसे दे दिए गए. यह भी पता चला कि समुद्र में जाने में डर लगता है तो ख़ास शीशे के तले वाली पारदर्शी नाव भी है जिसमें बैठ कर  कोरल का आनंद लिया जा सकता है.
नज़दीक आता नोर्थ बे टापू
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नोर्थ बे पहुंचे तो एक पतला समुद्र तट और बाकी सिर्फ जंगल दिखे. इस तट पर लोगों के लिए कामचलाऊ इन्तेज़ामात किये गए हैं,.टाट से ढके एक छोटा सा कमरा जिसमें लोग समुद्र में जाने से पहले कपडे बदल सकते हैं ,कुछ दुकानें चाय,ढाब ,वगरह के लिए. अगर कोई एक जोड़ी कपडे नहीं लाया है तो तीस रुपये में कपडे भी मिल रहे थे. समुद्र के खारे पानी से निकल कर १० रुपये बाल्टी में साफ़ पानी आपके ऊपर डालने का भी प्रबंध था . इन सबके बारे में बाद में चर्चा करेंगे लेकिन पहले लिया कोरल देखने का मज़ा .स्नोर्केलिंग गियर और लाइफ जैकेट पहनकर  हम चार लोग ने एक दूसरे का हाथ थाम लिए और एक का हाथ गाइड ने पकड़ लिया . फिर वह हमें ले गया समुद्र में. सिर पानी के  नीचे किया और दिखाई पड़े पहले तो भूरे मूँगों की बस्ती. जैसे जैसे आगे बढे कुछ रंगीन भी दिखने लगे. कोरल जीवित सूक्ष्म प्राणी होते हैं जो पानी से केल्शियम की एक सतह बना लेते हैं और बहुत ही सुन्दर लगते हैं. यह तट के नज़दीक ही पाए जाते हैं. इनकी बस्ती को कहते हैं रीफ. यह बहुत नाज़ुक होते हैं और इनकी सतह पर ज़रा सी खरोंच लगने पर इन्हें संक्रमण लग जाता है. पर अफ़सोस मैंने पाया कि हमारे गाइड और अन्य तैराक भी इन पर रख रहे थे. शायद तट के पास के मूंगे मर चुके होंगे.थोडा  आगे जाने पर रंगीन मछलियाँ भी दिखीं. तरह तरह के कोरल,कोई पत्थर की शकल लिए,कोई मशरूम, कोई फूलगोभी. पर मैं तो तैराक नहीं हूँ,सो मुझे थकान भी लगने लगी और हाँ,स्नोर्कलिंग करने में भी मुंह से सांस लेनी पड़ती है जो कि आसान नहीं. वापस तट पर आकर आराम से समुद्र में ही मौज मस्ती होने लगी. निकल कर वही १० रुपये बाल्टी के पानी से खारापन हटाया गया और फिर टाट की कुटिया में किसी तरह गीले कपडे बदले गए. बालू के बीच में ही एक कतार से छोटी छोटी दुकानें थीं.जब तक वापस ले जाने वाली नाव नहीं आयी तब तक वहीं बैठकर आराम से समुद्र का मज़ा लिया गया.तस्वीरों से दिखता है वह कामचलाऊ सैलानी स्थल.पीछे अंडमान वन विभाग की ज़मीन थी जहां सुपारी,आम की अदरक, वेनीला  के पेड़ थे.यहाँ जाना मना था. पर वहां तख्ती लगी थी इन सबके दाम की, सो उत्सुकता वश अन्दर पहुंचे.एक छोटी सी दुकान या फिर आफिस कह लीजिये .वेनीला की कुछ डंडियाँ,और अदरक खरीदी. वहां बैठे शख्स ने बताया इसे सवेरे खाली पेट खाने से गठिया  का इलाज हो जाता है. मज़े की बात तो यह कि आबादी से दूर बैठकर भी उसने हमें एमवे की दवाई खरीदने  की सलाह दे डाली !
अच्छा लग रहा था,समुद्र की मस्ती के बाद वहां बैठना ,पर आसपास देखकर बहुत दुःख हुआ.अंडमान सरकार ने यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा बचाने के नाम पर ,सैलानोयों के लिए कोई भी सुविधा नहीं दी है. कम से कम कपडे बदलने के लिए दो तीन पोर्ट केबिन ही लगाए जा सकते थे. कपड़ों से छाये कमरे में असुविधा हुई और मज़ा आधा हो जाता है. यही हाल अन्य जगह का भी था चाहे वह ह्वालौक टापू हो या फिर बहुत ही सुंदर  ' जौली  बॉय '. सैलानियों से आखिर कमाई सरकार को भी और वहां के लोगों को भी होती है तो फिर कुछ बुनियादी सहूलियतें तो मुहैय्या कराने उनका फ़र्ज़ है. यह भी इस तरह से कि कुदरत को नुकसान भी न हो और सबका काम चल जाए.
अंडमान यात्रा में वहां के अन्य  समुद्र तटों को देख कर महसूस हुए कि नार्थ बे जाना व्यर्थ ही था और काफी महंगा भी .इससे अच्छा  हेवालोक  और जौली बॉय देखिये और इसे अपने दौरे में न शामिल किया जाए तो भी ठीक है.






1 टिप्पणी:

अभिषेक मिश्र ने कहा…

रोचक और महत्त्वपूर्ण अनुभव बांटने का धन्यवाद.