शुक्रवार, फ़रवरी 10, 2012

कहीं समान्तर

दिल का  एक कोना था बिलकुल सन्नाटे में, शांत। किसी को खबर नहीं, कभी कभी उसे भी नहीं.
 पढाई पूरी कर, पहली नौकरी   लगी थी। उत्साह था लगता  खजाना मिल गया।  पर अब तक घर के रुई के फाहों के बीच सिमटी दुनिया छोड़  दिल्ली पहंची तो वह  "मिडल टाउन  गर्ल"  बड़े शहर में गुमसुम सी हो गयी। लोगों के बात करने का तरीका अलहदा ,शहर की तेज़ी उसके छोटे शहर के नर्म भावों से कोसों दूर।  वह भी  अपनी हकबक छुपाते हुए , स्मार्ट दिखने की कोशिश में लगी थी।  अभी तो ट्रेनिंग का समय था।  वहां तो ठीक,काम से काम रख हर बात का संक्षिप्त जवाब दे लेक्चर पर ही तो ध्यान देना था।  तमाम जगह से सहकर्मी थे। थे तो सब उसी के हमउम्र,पर सब के मिज़ाज अलग।  देख कर पता चल जाता कौन कैसा है।  उसकी तरह और भी शांत थे,शायद छोटी जगह तो नहीं पर हाँ घर से पहली बार निकले हुए।  कुछ ने पहले भी कहीं नौकरी की थी,उनके लहजे में उसकी ठसक थी.
चाय का ब्रेक हुआ।  अब तो लाउंज में मिलना जुलना ही पडेगा।  हाय हेलो करते,मुसकराते,  फिर  आदतन   भीड़- भाड़ और स्माल टॉक की दुनिया में वह असहाय सी अकेले पड़ गयी। शुरुआती अभिवादन तक तो ठीक था पर उसके बाद  कुरेदती अपने आप को,अब कहें तो क्या कहें।  पहली बार मिल रहे लोगों को स्कूल,कालेज,पढाई के बाद क्या बताएँ।  हमेशा यही तो होता आया है अभी तक।   न जाने कहाँ से लोग करते  हैं इतनी बातें।  किस बारे में अपनी राय जग जाहिर करते हैं।  क्या पूछे दूसरों से ; लगता जैसे पूछताछ कर रही हो। 
चाय का कप,एक अदद  बिस्किट और इस भरे कमरे में वह खामोश, सोचती बाकी क्या सोच रहे होंगे  उसके बारे में। कोई नज़दीक आता तो एक मुस्कान से हैलो  और फिर अकेले। 
इधर उधर,सबको वह अपनी नज़र से परखने की कोशिश कर रही थी। " हैलो ,एक हाथ बढ़ा। एक मुस्कान दिखी. "मैं....हूँ .".सकपका कर उसने देखा। लम्बे गोरे चेहरे पर वही खोया हुआ भाव ,जो शायद उसके अपने चेहरे की शिकन में दिख रहा था। वह भी मुस्कराई। परिचय दिया, और फिर दोनों हमफितरत की तरह  चुप. "नाईस टू मीट यू", और आगे बढ़ गया। 
आफिस के ही  किसी दफ्तर में वह भी था ,पर दूर किसी शहर में. पोस्टिंग, काम,दोस्त सब बने ,पर उसका वह कोना कोइ नहीं देख पाया। न वह फिर मिली उससे। कभी किसी कागज़ पर नाम देखती तो सहम जाती। लगता कोई उसकी चोरी न पकड़ ले।  उसको तो याद भी नहीं होगा की वह उससे  कभी मिला भी था। वह भी तो कैसे निपट गंवार की तरह सिर्फ मुसकरा भर दी थी। 
१५ साल में प्यार किया,शादी,बच्चे ,ज़िंदगी का अपना चक्र चल रहा था.... १ साल हुए  तबादला  हेड आफिस हो गया।  मीटिंग है। उसी कान्फरेन्स रूम में चाय के कप और एक ग्रुप के साथ कुछ कामकाज की बातें।  और फिर पुरानी आदत से मजबूर।  " हेलो अब कैसी हैं आप ! " उसे  अपनी 40  साल की सारी परिपक्वता की मदद लेते हुए, चेहरा लाल होने से रोका.. ओह तो वही कोना वहाँ  भी !


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