जादू की पुड़िया है ,जीवन का यह खेला
जिसको भी देखो वह आया अकेला
फिर यह साथ दिखता कैसे यह रेला
लोगों की भीड़ है रिश्तों का एक मेला !
इस जादू की पुड़िया में होता कुछ गजब है
आते सब इंसान है जुड़ जाता एक मज़हब है
इंसानियत के मतलब हो जाते बेसबब हैं
दिल की दूरियों के सबब होते कुछ अजब हैं !
इस जादू की पुड़िया में न जाने कैसे राज हैं
कोई निकला भिखारी ,किसी के सिर पर ताज है
कोई काले रंग की दौलत पर भी करता बड़ा नाज़ है
कोई करता कड़ी मेहनत पर किस्मत नाराज़ है !
जादू की पुड़िया के करतब कर देते दंग हैं
माँ के पेट में सब के पलने का एक ही ढंग है
दुनिया में बेटा आये तो भर जाए सात रंग है
और बेटी होकर निकले तो सब रंग बेरंग हैं ?
जादू की पुड़िया यह जीवन कैसा तमाशा है
कहीं बदलते रिश्तों से आती हुई हताशा है
कहीं फैलता तिमिर लाता सिर्फ निराशा है
पर जादू तो जादू है ,दिखा सकता भोर सी आशा है !
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