शनिवार, फ़रवरी 17, 2007

दो कप चाय


मैँ सवेरे दो कप चय बनाती हूँ
और हर रोज़ तुम्हें नींद से उठाती हूं
जानती हूं तुम्हारा अभी जागने का मन नहीं
तुम कुनमुनाओगे, पेट के बल लेटोगे
पर फोन उठाओगे ज़रूर.
तुम "गुड मार्निंग" कहोगे
और मेरी चाय में चीनी घुल जायेगी.

और दूसरी चाय
मुझे नहीं पसंद यह 'टिवनिंग्स" की
लेमन टी
पर तुम वहाँ उठोगे कैसे
बिना चाय पिये

मेरी 'ढाबे वाली' चाय
पर तुम हँसते थे
और अदरक डालने पर झिडकते.
मैंने भी ज़िद में
तुम्हारी चाय नहीं पी कभी.
पर अब तुम्हें सवेरे जगाना तो है ही.

8 टिप्‍पणियां:

Upasthit ने कहा…

वाह, मुझे कोई अनुमान नहीं कि आपने क्या सोंच कर कविता लिखी, पर मेरे इतने पास से बस छू कर गुजर गयी...आयाम खडे करती है, नये, अनछुये, ..."मैंने भी ज़िद में
तुम्हारी चाय नहीं पी कभी.
पर अब तुम्हें सवेरे जगाना तो है ही." ...जगाना तो है ही..कितने अर्थ एक साथ । भावनायें नये परिधान में सामने लायीं आप.. नयेपन के साथ, पुरानी-मीठी अनुभूति...एक सुबह की नयी कोंपल की तरह नयी कविता के लिये बधाई...

Udan Tashtari ने कहा…

मन की उहापोह का सजीव चित्रण, बधाई. बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कहती रचना. :)

ghughutibasuti ने कहा…

थोड़े से शब्दों में लगभग कुछ न कहते हुए बहुत कुछ कह गईं आप । कुछ ऐसे मीठे रिश्ते को दर्शाया है आपने । बधाई हो आपको ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
miredmiragemusings.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

चाय पर कोई इतना भी लिख सकता है सोचा ना था, आज देख भी लिया, अब पीने को भी मिल जाती तो मजा ही आ जाता।

Jitendra Chaudhary ने कहा…

बहुत सुन्दर। बहुत प्यारी कविता।

अब मेरे को लगता है धीरे धीरे मै कविताएं समझने लगा हूँ। पहले तो कविता नाम सुनकर ही दूर भागता था।

दिल को छू लेनी वाली कविता।

Poonam Misra ने कहा…

धन्यवाद उपस्थित,बहुत ही सुन्दर टिप्पणी के लिये.आपको पढकर मैंने अपनी ही कविता को नये रूप में देखा.
समीरजी,आप किसी रचना के लिये कुछ कहते हैं तो रचना सार्थक हो जाती है.धन्यवाद.
शुक्रिया,miredmagic. मेरे चिट्ठे पर आपका स्वागत है.
तरुण ,चाय तुम्हें पिलाने में मुझे बहुत आनन्द आएगा.देखना यह है कि तुम कौन सी चाय चुनोगे!मेरी या मेरे पतिदेव की .
जीतेन्द्रजी,जिस कविता से आप भाग रहे हैं वो कोई और होगी,कम से कम नारदजी के चिट्ठो वाली तो नहीं.

अमित ने कहा…

मुझे नहीं पता था हिंदी चिट्ठा साल भर से ज्यादा समय से मौजूद है.. नया हूं तो आगे और आगे बढ़ता चला जा रहा हूं.. सारी पुरानी बातें मेरी लिए नई हैं... मेर मन का साहित्यिक कोना भी सिंचित हो जाता है.. शुक्रिया..

पर सोचता हूं मेरी बीबी क्या सोचती होगी .. क्योंकि मैं चाय तो पीता नहीं.. और जागता भी हूं उससे पहले .. वल्कि कहती वही है... अमित प्लीज 5 मिनट और सोने दो.. बेटे ने रात भर सोने नहीं दिया

बेनामी ने कहा…

पूनमजी, बहुत बधाइ हो आपको कि इतन अच्छा कविता आपने लिखा। लेकिन यह सब लिखना कि मंशा क्या थी? कुछ बताएंगी आप? आपकी कितने बच्चे हैं और पतिदेव क्या करते हैं, कुछ भी तो नहीं बताया आपने । क्यूं, जवाब जरूर दें ।