शुक्रवार, मई 25, 2007

सालगिरह पर

दिल द्वार दस्तक दी तुमने जब
ऊषा की स्निग्ध लाली जैसे
भोर-विभोर मैं डूब गयी
अर्ध्य देती मतवाली जैसे

शान्त अमित आकाश हो तुम
मैं समा गयी विस्तार में तेरे
निढाल पडी पा आलिगन तेरा
बरस पडी मैं अंक में तेरे

ओत प्रोत मैं प्रीत में तेरी
हर अंग लगे है नया नवेला
भावों के भँवर का मंथन
नहीं सभलता अब यह रेला

दहकते गुलमोहर सा रक्तिम
हो जाए यह तन मन मेरा
तेरी आँखों का स्पर्श पाऊँ
या तेरी खुश्बू का घेरा

नि:शब्द बैठे हम दोनों
डूबते सूरज से आमुख
सहपथ की निशानियों के
कारवाँ अब हैं सम्मुख

जीवन निशा की दहलीज पर
सान्निध्य तुम्हारा मेरा सहारा
पूनम की खामोश चांदनी
देगी तुम्हें सतत उजियारा

7 टिप्‍पणियां:

Vikash ने कहा…

sunder kavita.
pahli baar aapko padh raha hoon.
ab aata rahoonga. :)

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत दिनों बाद पुनः स्वागत है. थोड़ा नियमित किया जाये.

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

सुंदर भाव. लिखते रहिये

अभिनव ने कहा…

कविता अच्छी लगी। ये पंक्तियाँ विशेष रूप से,
नि:शब्द बैठे हम दोनों
डूबते सूरज से आमुख
सहपथ की निशानियों के
कारवाँ अब हैं सम्मुख

Poonam Misra ने कहा…

धन्यवाद राकेशजी आपका इस रचना पर टिप्पणी करना मेरे लिये किसी पारितोषिक के समान है.समीरजी आप हमेशा प्रेरित करते हैं.जी चाहता है आपको आश्वासन दूँ नियमित लिखने का.शायद समय की पाबंदियां हैं ओर सृजनशीलता की भी ! विकास स्वागत है आपका मेरे चिट्ठे पर.आपका "आता रहूँगा" कहना अच्छा लगा.अभिनवजी आपको पंक्तियां अच्छी लगीं शुक्रिया.

उमाशंकर सिंह ने कहा…

पूनम जी, आज पहली बार आपका ब्लाग देखा। अच्छा लगा साहित्यिक रुझान देख कर। तस्वीर देखा तो लगा कि पूछ लूं कहां की है। जवाब के इंतज़ार में

उमाशंकर सिंह
http://valleyoftruth.blogspot.com/

Poonam Misra ने कहा…

उमाशंकरजी,आपका मेरे चिट्ठे पर स्वागत है.यह तस्वीर नैनीताल की है.