रविवार, जुलाई 25, 2010

बीच वाले स्टेशन बोले रुक रुक रुक रुक...कालका से शिमला तक

अरे घुमंती बेन,क्या इतनी बार हवाई जहाज में उड़ने के बाद आपका तो ट्रेन में बैठने की आदत ही छूट गयी होगी ? है न ?"
"हवाई यात्रा का यह फायदा तो होता है कि दूर जगह हम कम समय में पहुँच जाते हैं,लेकिन रेल से सफ़र का मज़ा ही कुछ और है."
"अच्छा ,हम लोगों को लगता है कि छुक छुक कर धीरे धीरे चलती ट्रेन कितनी उबाऊ होती है."
"नहीं बिलकुल नहीं ,बल्कि रेल से सफ़र करना का यह भी फायदा होता है कि हम कितना कुछ देखते  जाते हैं.स्टेशन पर रुकी ट्रेन से उतरकर चाय पीना,भागते हुए खम्बों को गिनने की कोशिश करना,छोटे छोटे स्टेशन के नाम पढ़ना,मुझे बहुत अच्छा लगता है. रेल की बात चली है तो मैं तुम्हें ऐसी रेल यात्रा की कहानी बताऊंगी जो तुम्हें चकित कर देगी. "
क्या तुम सोच सकते  हो कि ट्रेन भी विश्व विरासत स्थल हो सकती हैं ? हमारे ही देश की कुछ रेल सफ़र हैं जो इस सूची में शामिल हैं.है न आश्चर्य   और गर्व की बात! भारत के कुछ रेल पथ हैं जो पहाडी इलाकों से हो कर जाते हैं. कालका से शिमला जाने वाली ट्रेन,दार्जिलिंग हिमालय रेल और नीलगिरी की पहाड़ रेल इन तीन रेल यात्राओं को इसमें शामिल किया गया है. तो सोचो  इनमें ऐसा कया ख़ास है जो कि दुनिया और किसी रेल यात्रा में नहीं है,और इतना ख़ास कि इन्हें विश्व विरासत माना जाता है?
वैसे तो मैं तुम लोगों किसी एक जगह की सैर करती हूँ पर इस बार मैं तुम्हें इन तीनों के बारे में थोडा थोडा बता दूंगी. 

मुझे इसके बारे में पता चला जब मैं शिमला घूमने गयी. कालका से मैं बैठ गयी नन्ही  सी प्यारी से ट्रेन "शिवालिक  एक्सप्रेस " पर और शुरू हुई मेरे लिए एक बहुत ही सुन्दर यादगार यात्रा. पता चला कि यह रेल लाइन अंग्रेजों ने बनवाई थी और वह भी १९०३ में ! सोचने लगी कि मैं जिस रास्ते से जा रही हूँ वह सौ साल से भी पुराना है .बाहर देखा तो कितना सुन्दर दृश्य था. कितने छोटे स्टेशन और कितने प्यारे से.लगता किसी कहानी से उठाकर यहाँ रख दिए गए हों. यह यात्रा तो करीब ९६ किमी लम्बी है और गाडी भी करीब २५-३० किमी  प्रति घंटे  की रफ्तार से चलती है तो हम हिमालय के मनोरम वादियों,नदियों और  चीड,देवदार हरियाली को भरपूर देख सकते हैं. पूरे रास्ते में ट्रेन १०२ सुरंगों से गुजरती है. १०२ सुरंगें .......! बाप रे.कैसे बनाया होगा यह रेल पथ? सोच कर लगता है कि वह  इंजीनियर  और कारीगर अपने काम में कितने माहिर रहे होंगे और उन्होंने कितनी मेहनत से इस रेलवे लाइन को बनाया होगा. रल चलती गयी और हम एक के बाद एक पुल पार कर रहे थे.अनुमान लगाओ कि हमने कितने पुल पार किये. ८६४ पुल.जिनको बनाना आसान काम नहीं रहा होगा वह भी उस ज़माने में जब आज की तरह की मशीनें नहीं थीं. सोलन पर आकर यह लाइन नीचे की ओर चलने लगी और मुझे लगा कि यह क्या शिमला जाने की बजाय क्या यह हमें वापस कालका उतार देगी. पर कंडाघाट तक उतरने के बाद इसने फिर ऊपर छाड़ना शुरू कर दिया.एक राज़ की बात  बताऊँ मुझे तो बहुत मिचली आने  लग  गयी थी ! आखिर इतने मोड़ भी तो थे . ९१९ मोड़ थे इस लाइन में.सुरंगों से अन्दर बाहर जाते समय कैसा कैसा लगता है. बरोग  स्टेशन पर ट्रेन रुकी  . मैंने पूछा कि यह बरोग  क्या यहाँ के गाँव का नाम है.पता चली  एक दुःख भरी कहानी .बरोग दरअसल बरोग वह इंजीनियर थे जो इस स्टेशन के पास की सुरन बनवा रहे थे.वह पहाड़ के दोनों तरफ से सुरंग खुदवाने लगे ,यह सोचकर की दोनों छोर मिल जायेंगे  .पर उन्होंने कुछ ऐसी गलती कर दी कि सुरंगें आपस में नहीं मिल पायीं. सरकार ने उनके ऊपर एक रुपये का ज़ुर्मान लगा दिया.बरोग साहब इतने शर्मसार हो गए कि उन्होंने  आत्महत्या कर ली .

बरहाल बाद में वहां के निवासी भाल्कू की मदद से सरकार ने वहां से १ किमी दूर ,दूसरी सुरंग बनवाई.यह सुरंग इस पूरे रास्ते की सबसे लम्बी सुरंग   है और इसको पार करने हमारी ट्रेन ने ३ मिनट लगाए. पुल भी तो कैसे बने हैं. आम पुलों की तरह स्टील के न होकर सारे पुल,एक को छोड़कर, ईंटों के बने हैं और इनको महराबदार  तरीके से ऐसे बनाया गया है कि यह पहाड़ की घाटियों,नदियों, छोटे बड़े खड्डे ,नाले सब  सुरक्षित तरीके से पार हो जाते हैं. शिमला पहुंचकर लगा कि तुरंत वापसी अ सफ़र शुरू कर एं जिससे कि यह रेल यात्रा मैं दुबारा कर सकूं. 

इस प्यारी सी खिलोने वाली ट्रेन पर इतना अद्भुत सफर करने क बाद मुझे लगा कि वाकई इसको विश्व विरासत स्थल में जगह मिलनी चाहिए .उस ज़माने में इतना कठिन काम इतनी कुशलता से करना आर इतना अच्छा  करना कि यह कालका शिमला रेल अभी तक चल रही है,यह हमारी धरोहर है . 



2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन जानकारीपूर्ण आलेख.

शिवालिक एक्सप्रेस में हम भी सफर कर चुके हैं.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

मेरी यादे भी ताजा हो गयी ये लेख देख कर तो