अफ्रीका के जंगलों, वहां के रहन सहन, वहां की दुनिया के बारे में उत्सुकता और कौतूहल हमेशा से था और जब युगांडा जाने का अवसर मिला तो जैसे कोई बड़ी मुराद पूरी हो गयी ऐसा महसूस हुआ .अफ्रीका के लगभग मध्य में स्थित यह देश उसका भौगोलिक दिल कहा जा सकता है .
दुबई से करीब 7 घंटे के हवाई सफ़र के बाद एन्टेबी हवाई अड्डे पहुंचे .पहली नज़र में सब तरफ हरा हरा दिखा . हवाई जहाज से नीचे झाँकने पर विक्टोरिया लेक का बहुत सुन्दर दर्शन पहले ही हो चुका था.दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की यह झील युगांडा के दक्षिण छोर पर है. एन्टेबी हवाई अड्डा इतिहास के पन्नों में जाना जाता है ,इजरायली कमांडो की एक बहुत जांबाज़ कार्यवाही के लिए.१९७६ में इजराईल के कमांडो दस्ते ने अपहरण किये हुए हवाई जहाज को मुक्त करवाया था. सड़क के रास्ते निकल पड़े फिर कम्पाला ,जहाँ पर ठहरने का इंतज़ाम था. यह भी कम्पाला के बाहर मुन्योंनयो नाम की जगह पर सुन्दर सा सैरगाह था स्पेक रेसोर्ट. उसी विक्टोरिया झील के तट पर बना यह होटल मन को भा गया. मुसकराते लोगों ने कमरे तक सामान पहुंचाया .सामान तो पहुँच गया पर खुद मैं पहुँची उसके काफी बाद. कारण था रिसेप्शन से कमरे तक का रास्ता भरा हुआ था सुन्दर ,कभी न देखे हुए फूलों और पौधों से. रुक रुक कर चल रही थी,कि याद आया ,यहाँ तो दो दिन का पड़ाव है,सो तसल्ली से इसका आनंद उठाया जा सकता है.
पांच सितारा की भौतिक सुख सुविधाएं और प्रकृति की सात सितारा विलासिता के संगम में रहना प्रफुल्लित , आनंदित कर रहा था. शाम को तो सैर की ही, सवेरे भोर में उठ गए और पहुंचे झील किनारे. देखा पक्षी का एक झुण्ड वहां पडी मेज कुर्सियों पर अपने सवेरे का सफ़र कर रहा है और साफ़ सफाई का काम भी . पूरब की तरफ सूरज चढ़ रहा था, और उसकी किरणें झील के पानी से मिलतीं, कण कण में चमकतीं, झिलमिल करतीं.तभी देखा एक नाव चली आ रही है,सूरज की उन किरणों की और , उनके बीच से गुज़रते कैमरे में कैद कर लिया .
मंत्रमुग्ध होकर मैं वहां फूलों और वनस्पति की विविधता देखती,छोटे बच्चे की तरह हर तरफ दौडती और आँखें फटी की फटी. .
यहाँ के नजारों के बाद चले कम्पाला की दिल्ली हाट नुमा जगह,नॅशनल थियेटर में बना क्राफ्ट्स विलेज . गजब के सुन्दर हस्तशिल्प के नमूने,दिखे.एक दूकान से दूसरी ,मोलभाव करते,टोपी,लकड़ी के मुखौटे,चप्पलें, कुछ बातें कीं ,कुछ हंसी मज़ाक ,कुछ ना नुकुर, थोड़ा लुट जाने की शिकायत और फिर सौदा तय कर हाथ जोड़ नमस्कार कर अगली अनोखी वस्तु की ओर.कम्पाला तो राजधानी है, हर बड़े शाहर की तरह सड़क पर जाम , सुन्दर घर ,माल ,डिस्को सब कुछ देखने को था.
पर मुझे तो इंतज़ार था उस घड़ी का जब हम अफ्रीका के जाने माने जंगलों को देखेंगे. दूसरे दिन हमारी मंजिल थी मर्चीसन फाल्स और इसी नाम का नॅशनल पार्क.कम्पाला से करीब ३०५ किमी की दूरे पर स्थित यह युगांडा का सबसे बड़ा वन विहार है. रास्ते में मासिन्दी के १९२३ में बने युगांडा के सबसे पुराने , मासिन्दी होटल में भोजन कर हम शाम ५ बजे पहुंचे "परा" सफारी लाज .नाईल नदी को पार कर "परा" पहुँचने का आनन्द , आने वाले अनुभवों की एक झलक था .दरियाई घोड़े का पहला दर्शन हुआ .अच्छा हुआ क्योंकि परा का मतलब है दरियाई घोड़ा ! नाईल नदी के किनारे बना यह विश्राम गृह, अफ्रीका के जंगल में घूमते,खोजी जांबाजों के रोमांच को सजीव करता है. सबकुछ उसी तर्ज़ पर . लेकिन सफ़र का सुनहरा क्षण था,सवेरे उठकर बस में उस नॅशनल पार्क में घूमना.अन्दर घुसते ही अफ्रीकी हाथी के परिवार ने सड़क के बीचों बीच खड़े होकर स्वागत किया ,पर हमने भी कहा कि दूर से ही दुआ सलाम हो जाए तो ठीक है ."आप सड़क पार कर लें ,हमें जल्दी नहीं है !"
वापस लौटना भी ज़रूरी था क्योंकि योजनानुसार दोपहर के बाद हम एक और विस्मयकारी यात्रा करने वाले थे. नाईल पर नौका सैर और साथ ही दुनिया के सुन्दरतम जलप्रपात में से एक का दर्शन . "अफ्रीका क्वीन" पर एक घंटे की नौका सैर से देखने को मिले हाथी के झुण्ड,हिप्पो ,मगरमच्छ और जंगलों में सबसे खतरनाक माने जाने वाले जंगली भैंस. नदी के किनारे पानी पीने आये जानवरों का भी एक वर्गीक्रम होता है.जब हाथी पानी पीने की इच्छा ज़ाहिर करता है तो अन्य जानवर पीछे हट जाते हैं. पर जब जंगली भैंस आती हा तो हाथी भी इस हठी,तुनकमिजाज जानवर से नहीं जूझता . यहाँ नदी के किनारों पर पेड़ कुछ अधिक थे ,और सब जानवर अपने अपने झुण्ड में दिखाई पड़े. पक्षी दल भी नज़र आये,ख़ास तौर से युगांडा का राष्ट्रीय पक्षी गोल्डेन क्रेस्टेड क्रेन.पक्षी प्रेमियों के लिए तो यह सुनहरा सफ़र था. हमारी यात्रा की मजिल थी एक ऐसी जगह जहां नाईल नदी की विस्तारता को ६ मीटर की तंग दरार ने सीमित किया तो वह ४३ मीटर की ऊँचाई से नीचे गिरी और बनाया शक्तिशाली , जलप्रपात ,मर्चिसन फाल्स ! हमारी नाव हमें उसके बेस तक ही पहुंचा पायी पर वहां से भी दृश्य इतना सुन्दर था कि उस झरने को पास से देखने की उतावली होने लगी. . चारों और जंगल और उनके बीच में ऊंची पहाड़ से गिरता पानी ,बहते बहते ही वह एक शांत नदी का रूप ले लेता है .अवर्णनीय !
लेक विक्टोरिया पर सुबह |
यहाँ के नजारों के बाद चले कम्पाला की दिल्ली हाट नुमा जगह,नॅशनल थियेटर में बना क्राफ्ट्स विलेज . गजब के सुन्दर हस्तशिल्प के नमूने,दिखे.एक दूकान से दूसरी ,मोलभाव करते,टोपी,लकड़ी के मुखौटे,चप्पलें, कुछ बातें कीं ,कुछ हंसी मज़ाक ,कुछ ना नुकुर, थोड़ा लुट जाने की शिकायत और फिर सौदा तय कर हाथ जोड़ नमस्कार कर अगली अनोखी वस्तु की ओर.कम्पाला तो राजधानी है, हर बड़े शाहर की तरह सड़क पर जाम , सुन्दर घर ,माल ,डिस्को सब कुछ देखने को था.
पर मुझे तो इंतज़ार था उस घड़ी का जब हम अफ्रीका के जाने माने जंगलों को देखेंगे. दूसरे दिन हमारी मंजिल थी मर्चीसन फाल्स और इसी नाम का नॅशनल पार्क.कम्पाला से करीब ३०५ किमी की दूरे पर स्थित यह युगांडा का सबसे बड़ा वन विहार है. रास्ते में मासिन्दी के १९२३ में बने युगांडा के सबसे पुराने , मासिन्दी होटल में भोजन कर हम शाम ५ बजे पहुंचे "परा" सफारी लाज .नाईल नदी को पार कर "परा" पहुँचने का आनन्द , आने वाले अनुभवों की एक झलक था .दरियाई घोड़े का पहला दर्शन हुआ .अच्छा हुआ क्योंकि परा का मतलब है दरियाई घोड़ा ! नाईल नदी के किनारे बना यह विश्राम गृह, अफ्रीका के जंगल में घूमते,खोजी जांबाजों के रोमांच को सजीव करता है. सबकुछ उसी तर्ज़ पर . लेकिन सफ़र का सुनहरा क्षण था,सवेरे उठकर बस में उस नॅशनल पार्क में घूमना.अन्दर घुसते ही अफ्रीकी हाथी के परिवार ने सड़क के बीचों बीच खड़े होकर स्वागत किया ,पर हमने भी कहा कि दूर से ही दुआ सलाम हो जाए तो ठीक है ."आप सड़क पार कर लें ,हमें जल्दी नहीं है !"
आगे बढे तो हिरन की प्रजाति के युगांडा कोब , हार्तबीस्त और वाटरबक दिखे. 'लायन किंग' की याद सबको आयी जब एक वोर्टहोग को देख अनायास ही पुम्बा का नाम निकल गया. हम बारबार बस रुकवा रहे थे और हमारे साथ के रेंजर और वाहन चालक चेतावनी देते जा रहे थे की यहाँ रुकने से हम सफारी की सबसे बड़ी विशेषता से वंचित रह सकते हैं. पर दिल कहाँ मानने वाला. एक जिराफ दिखा तो लगा फोटो खींचो. और जिराफ के झुण्ड दिखे तो बस क्यों आगे बढे. वो भी तो बेफिक्री से फोटो खींचने की मुद्रा में खड़े हो रहे थे. और फिर दुबारा ऐसे सुडौल,आसमान से बातें करते, पेड़ों के ऊपर से ताकझांक करते पशु को देखना इतनी जल्दी तो होने वाला नहीं था. पर हमें यह अनुमान नहीं था की यहाँ जितनी देर हम करते जा रहे थे ,जंगल के राजा को देखने की संभावना उतनी धूमिल होती जा रही थी. आगे बढे तो सूरज ऊपर चढ़ आया था और शेर अपना सवेरे का नाश्ता कर किसी झाडी में विश्राम करने चले गए थे.अब उनको ढूँढना काफी मुश्किल हो गया था. बावजूद इसके और थोडा नियमों का उल्लंघन करते हुए ,हमारे बस चालक और गाईड ने रास्ता छोड़,घास में गाडी घुमा दी . अफ्रीका के सवान्ना घास भूमि में घने जंगल नहीं दिखते,बस झाड़ियाँ और मध्यम आकार के पेड और दूर तक सपाट पीली पीली से घास. क्षितिज पर नज़र दौडाने पर एक पतली रेखानुमा नदी दिखाई पड़ने का एहसास होता है .
लेक एल्बर्ट |
यहाँ कहीं छुपा था वनराज |
हर झाडी के अन्दर झांक झांक कर देखते देखते हमें निराशा ही हाथ लग रही थे और हम मायूस वापस जाने की तैयारी कर रहे थे की एक लौटती बस ने हमें उस झाड़ी का पता ठिकाना बताया जहाँ शेर आराम फरमा रहा था. फिर क्या ,मुस्कराहटें, आहें और इंतज़ार में रुकी सांसें . सही पता बताया था उन लोगों,अन्दर झाडी में उस रोबदार , शाही सिंह को बस के अन्दर से खिड़की से कोण बदल बदल कर देखने लगे. कुछ जोश में जोर से बातें भी होने लगी की रेंजर ने हमें सावधान किया की हम उस राजा के आराम में खलल डाल रहे है सो शांत रहने में ही बेहतरी है ! .कुछ देर बाद हम आगे बढे, अगली सैलानियों की बस को " रिंगसाईड वियू " देने के लिये. पर हमारी किस्मत के ताले तो खुल चुके थे.कुछ दूर आगे ,एक शेरनी के ठिकाना का आभास हुआ. यहाँ तो सचमुच कमाल था. शेर तो पत्तों की झुरमुट में बहुत अन्दर था और उसके दर्शन थोड़े मुश्किल से हुए. पर यहाँ तो शेरनी अपने शयनागार के दरवाज़े पर ही बैठी थी. शरनी ने हमें राजोचित उपेक्षा दिखाते हुए अपना विश्राम जारी रखा , और हम उसे विस्मय से देखते रहे. सफारी के शिष्टाचार नियमों का पालन करते हुए हम अगले ग्रुप को देखने का मौक़ा देने के लिए आगे बढे.
ताल मिले नदी के जल से ,नदी मिले सागर में. लेकिन आगे चलकर देखा कि यहाँ तो नदी एक ताल में मिल रही थी .विक्टोरिया नाईल , लेक एलबर्ट में मिलती है और यहाँ से बनकर निकलती है एलबर्ट नाईल .यहाँ आखिरकार हमें बस से उतरने तो दिया गया पर हिदायत के साथ कि बहुत दूर नहीं जाना है. मगरमच्छ का खतरा है . ताल में दिखे फिर बहुत से दरियाई घोड़े ,गर्मी से बचते,नहाते,डुबकी लगाते , खेलते,आह क्या डाह से जल गए हम .
मर्चीसन फाल्स |
रात होने वाली थी,जंगल में निशाचर हैं,खतरनाक पशु हैं ,सो वापस मुड़ना ही था.पर इस अफ़सोस के साथ कि इस भव्य जलप्रपात को पास से देखने का संयोग नहीं बन पाया .शायद इस अधूरे काम को पूरा करने के लिए फिर युगांडा घूमने का मौका लगे. इंशाल्लाह !
1 टिप्पणी:
बहुत ही खूबसूरत वर्णन. हा,एं तो लगा हम भी कम्पाला पहुँच गए. मैंने कभी नहीं सोचा था की उगांडा इतना रोमांचक होगा. हमेशा ईदी अमिन ही दिमाग में आता है. आभार.
एक टिप्पणी भेजें