"ख़ामोशी में निहाँ खूँगश्तः लाखों आरजुएँ हैं,
चिराग़े-मुर्दः हूँ मैं बेज़बाँ गोरे गरीबाँ का ।"
"जिस प्रकार परदेसियों और पथिकों की क़ब्रों के बुझे हुए दीपक उनकी लाखों कामनाओं को अपने कलेजे में छिपाए होते हैं वैसे ही मेरे मौन में भी रक्तरंजित लाखों कामनाएँ निहित है !"
क्या सोचा होगा गालिब ने कि उनका यह शेर कभी उनकी दिल्ली की ही दास्तान बयान करेगा.दिल्ली का नाम लेते ही ,पर्यायवाची की सूची की तरह लाल किला,क़ुतुब मीनार, इण्डिया गेट तुरंत ज़हन में आ जाते हैं. पर क्या दिलवालों की दिल्ली का वजूद बस इन्हीं में सिमटा हुआ है.? यहाँ की सडकों पर चलते हुए यह एहसास सबको ज़रूर हुआ होगा जैसे इतिहास के पन्ने भी हम अपने वर्तमान के साथ साथ पलटते जा रहे हैं. तारीख के कितने ही मुकाम इस शहर पर अपने निशान छोड़ चुके हैं, हर मोड़ पर दिखते खँडहर से झांकती है कितने ही सुल्तानों, राजाओं, बादशाहों की रूहें.
सात शहरों के इतिहास को अपने दामन में समेटे आज की दिल्ली ज़माने के साथ बदलती भी है और पुराने जामे को पहने भी रहती है. कैसे बसी दिल्ली, कहाँ से आईं इसकी तहें दर तहें ? तुगलकाबाद, सिरी,शाहजहानाबाद , इनसे गुज़र कर दिल्ली यहाँ तक पहुँची कैसे?
वैसे तो दिल्ली के आसपास बस्ती बहुत पहले से थी लेकिन तोमर वंश के राजपूत राजा अनंगपाल ने लाल कोट नाम का किला बनवाया , और इसी किले का विस्तार पृथ्वीराज चौहान ने किया राय किला पिथौरा के रूप में किया. यहीं से शुरुआत हुई दिल्ली की. किला राय पिथौरा को माना जाता है पहला शहर .
वैसे दिल्ली का नाम कैसे पड़ा इसकी भी एक रोचक दास्तान है . तोमर राजा अनंगपाल अपने पोते के जन्म का जश्न मनाना चाहते थे . एक महात्मा से पूछा तो उन्होंने उसी वक्त को सबसे शुभ माना और यह भी कहा कि अगर अभी किया तो आपका राज बहुत मज़बूत होगा और ज़मीन के नीचे बैठे शेषनाग तक इसकी जडें जायेंगी.राजा ने अविश्वास प्रकट किया तो संत ने एक खम्बा ज़मीन में गाड़ा और निकाल लिया.निकालने पर खम्बा सांप के खून से लथपथ निकला. तोमर राज्य के लिए भविष्यवाणी हो गयी कि राजा के टाल मटोल करने के कारण उनका राज्य भी इसी खम्बे की तरह ढीला होगा. "किल्ली तो ढिल्ली भाई, तोमर भया मतिहीन". इसी से इस जगह का नाम दिल्ली पड़ा. वैसे तो इस लोहे के खम्बे को कई लोग उसी खम्बे से जोड़ते हैं जो सबने क़ुतुब मीनार के पास देखा होगा ! तो फिर देखिये क़ुतुब मीनार के पास पहली दिल्ली की यह निशानी ,
क़ुतुब मीनार को बनवाने वाले कुतुबदीन ऐबक ने ही चौहान वंश को मात देकर भारत में गुलाम वंश की स्थापना की. महरौली की आसपास घूमते हुए मिलेगी बलबन की कब्र ,जमाली कमाली की कब्रें और वहां की मशहूर फूलों की मंडी . इसी जगह पर बसी थी दूसरी दिल्ली , महरौली की .
आगे हौज़ ख़ास की ओर बढ़ते हुए आप पहुंचेगे तीसरी दिल्ली के पास. खिलजी सुलतान अला-उ-द्दीन खिलजी ने मंगोल आक्रमण से बचने के लिए एक शानदार किला और महल बनवाया .कहते हैं इसकी डेढ़ किमी लम्बी दीवार में दस हज़ार मंगोल सैनिकों के सिर काट कर दफ़न किये गए हैं .इसके कारण इसको नाम दिया सिरी . अब आप खेल गाँव और सिरी फोर्ट इलाके से गुज़रें तो इतिहास के इस खूनी पन्ने पर भी गौर करें . पर इन्हीं राजा ने अपनी प्रजा का ख्याल रखते हुए , निवासियों के लिए पानी का इंतज़ाम किया और बंवाया हौज़ ख़ास .
खिलजी वंश के बाद सत्ता पहुँची तुगलकों के हाथ में और गियासुद्दीन तुगलक ने बसाई चौथी दिल्ली . आज के महरौली बदरपुर मार्ग पर तुगलकाबाद किले के अवशेष हैं . बहुत ही ऊंची किले की दीवारों के अन्दर एक पूरा शहर बसा था . पर दिल्ली के प्रमुख रास्तों से थोडा अलग होने के कारण यहाँ देखने वाले कम आते हैं. तुगलाकाबाद में पानी की समस्या थी ,सो फिरोज़शाह तुगलक ने यमुना के पास अपने लिये एक शहर बसाया फिरोज़ाबाद. आज के आइ टी ओ और बहादरशाह ज़फर मार्ग के पास बसा यह था पांचवी दिल्ली,जिसका विस्तार पहले के शहरों से ज़्यादा था.क्रिकेट प्रेमी तो फिरोज़ शाह कोटला के नाम से परिचित होंगे.यह इन्हीं तुगलक की विरासत है.शानदार किले के अब खंडहर के नाम पर बचे हैं जामी मस्जिद,एक बाओली,और अशोक स्तम्भ जो फिरोज़शाह अम्बाला से ले आये थे .
खिलजी वंश के बाद सत्ता पहुँची तुगलकों के हाथ में और गियासुद्दीन तुगलक ने बसाई चौथी दिल्ली . आज के महरौली बदरपुर मार्ग पर तुगलकाबाद किले के अवशेष हैं . बहुत ही ऊंची किले की दीवारों के अन्दर एक पूरा शहर बसा था . पर दिल्ली के प्रमुख रास्तों से थोडा अलग होने के कारण यहाँ देखने वाले कम आते हैं. तुगलाकाबाद में पानी की समस्या थी ,सो फिरोज़शाह तुगलक ने यमुना के पास अपने लिये एक शहर बसाया फिरोज़ाबाद. आज के आइ टी ओ और बहादरशाह ज़फर मार्ग के पास बसा यह था पांचवी दिल्ली,जिसका विस्तार पहले के शहरों से ज़्यादा था.क्रिकेट प्रेमी तो फिरोज़ शाह कोटला के नाम से परिचित होंगे.यह इन्हीं तुगलक की विरासत है.शानदार किले के अब खंडहर के नाम पर बचे हैं जामी मस्जिद,एक बाओली,और अशोक स्तम्भ जो फिरोज़शाह अम्बाला से ले आये थे .
भारत के सबसे लम्बे समय तक राज करने वाले मुगल कैसे पीछे रह सकते थे . हुमायुँ ने बनायी अपनी रजधानी और नाम दिया दीनपनाह . शेरशाह सूरी ने सभी भवनों को नष्ट करके इसी जगह पर बनवाया था शेरगढ. आज के पुराना किला के इर्द गिर्द बसा यह शहर छठी दिल्ली था.पुराना किला तो आते जाते दिख जाता है ,पर अब यहाँ से गुज़रते हुए सोचियेगा कि इतिहास के किस मुकाम के आप रूबरू हैं .
अकबर ने दिल्ली में नया शहर न बनवाकार राजधानी ही आगरा पहुंचा दी ! पर शाहजहाँ वापस दिल्ली आये और इसको दिया इसका सातवाँ अवतार ,शाह्जाहाँबाद के रूप में . लाल किला ,जामा मस्जिद ,चांदनी चौक सब इस इमारतों के शौकीन बादशाह की देन हैं.
आज की दिल्ली अपनी इन पुरानी पीढीयों की विरासत तो है ही पर नयी दिल्ली के रूप में हम जिसे जानते हैं वह देन है अंग्रेज़ों की. लुटयेंस दिल्ली के नाम से जाने जाना वाला चौडी सडकों, भव्य कोठियों , कनाट प्लेस के अनोखे अन्दाज़ वाला यह आधुनिक शहर भारत का दिल है . आगे का रूप कैसा होग यह कह पाना मुश्किल है,पर इतना ज़रूर है कि दिल्ली है बडी निराली.
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