कम्युनिस्ट साम्राज्य का पश्चिमी छोर और अब केपिटलिस्ट यूरोप का पूर्वी किनारा कहा जाने वाला हंगरी दो अस्तित्वों के बीच अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद कर रहा है. हम दुबई से वियना और वहां से टिरोल एरलाईन के एक छोटे विमान से ४५ मिनट में बुडापेस्ट पहुँच गए . बूडा और पेश्त नाम के दो शहरों से बनी हंगरी की राजधानी ,बाकी यूरोपीय शहरों से भिन्न लगी .वियना जैसा कड़क अनुशासन यहाँ ज़रा लचीला हो गया और हवा भी यूरोपीय शीतलता से भिन्न ,थोड़ी एशियाई गर्मी का अंश लेने लगी.
डेन्यूब नदी के तट पर एक कतार में कई होटल बने हैं,उन्ही में एक इंटर कोंतिनेनेतल में ठहरने का इंतजाम था. पर ऐसा नहीं लगा कि उड़ान के बाद ,अब थोडा सुस्ताया जाये. नयी जगह के माहौल को महसूस करने की आतुरता खींच ले गयी हमें आसपास की चहल पहल तक. डेन्यूब का किनारा तो कमरे की खिड़की से दिख रहा था,और नदी के उस पार का राजसी महल.भी. गजब की रोशनी थी और गजब का दृश्य !नदी पर नाव और तट पर बने अनेक रेस्त्रों से चहल पहल थी. आसपास काफी महंगा सा बाज़ार था,लेकिन हर यूरोपीय शहर की तरह यहाँ भी छोट छोट केफे के बाहर कुर्सी मेज़ लगा कर सुन्दर खाने का इंतज़ाम. रात ग्यारह बारह बजे तक लोग सडकों पर दिखती हैं सो वहां उस समय घूमना भी सुरक्षित है और बहुत लुभावना भी.
करीब ढाई दिन के समय में इस शहर के साथ इन्साफ करना नामुमकिन है .इतना कुछ देखने को है और इतना कुछ करने को. पहले दिन हम शहर का 'पेस्त' वाला हिस्सा घूमने निकले ,जो नया है,आधुनिक है . शहर घूमने का मज़ा पैदल में ही है.यातायात बहुत अधिक नहीं था,सो चलने में मज़ा भी आ रहा था. पैदल के लिए गाड़ियां रुक जाती और हम कुचले जाने के डर से मुक्त थे. डेन्यूब के किनारे निकले और रुख किया इस्त्फान बासिलिका का.यह बुडापेस्ट का सबसे बड़ा चर्च है. अन्दर से बेहद खूबसूरत,इस चर्च में सेंत स्टीफन के दाए हाथ को परिरक्षित रखा हुआ है. यूरोप की सबसे बड़ी पार्लियामेंट बिल्डिंग की भव्य इमारत को देखते हुए हम आगे अन्द्रसी एवेन्यू पर चले.यह सड़क दूर तक जाते है औए बुडापेस्ट के मुख्य सड़क कही जा सकती है.विश्व विरासत स्थल की सूचे में इसका नाम है और कई मशहूर दुकानों और इमारतों को दखने का मौक़ा मिला. यह रास्ता ख़तम होता है हीरोस स्क्वेयर पर जहां हंगरी के राजाओं की प्रतिमाएं हैं . साथ ही आसपास है म्यूजियम ,ओपेरा हाऊस और कम्युनिस्ट समय के अत्याचओं की कहानी कहता हाऊस ऑफ़ टेरर . बुडापेस्ट की एक खासियत है यहाँ के गर्म पानी के स्रोत और स्पा जहां नहाने से बेहतरीन आराम मिलता है.इसी स्क्वेयर के पास है ज़ेचेन्यी बाथ. बुडापेस्ट का भूमिगत रेल ,दुनिया का सबसे पुराना है, और इसके स्टेशन को पूर्ववत रखने की कोशिश की गयी है.
किसी शहर की सैर खरीदारी के बिना अधूरे है. सो हम पहुंचे यहाँ के वाची उत्चा ,जो हमारे होटल के पीछे ही एक सड़क है जिसके दोनों तरफ बहुत सुन्दर दुकानें और बाज़ार है. ग्लोबलिज़ेशन के ज़माने में हर शहर की दुकानों में एकरसता सी आ गयी है. जो दिल्ली में दीखता है वही वियना में औए वही बुडापेस्ट में. सो इस बाज़ार को छोड़ हम पहुंचे ग्रेट मार्केट हॉल . यह एक तीन तलों में बना बाज़ार है,घुसते ही सब्जियों की अनेकों दुकानें और पहले ताल पर हंगरी की प्रसिद्ध कढाई और अन्य उपहार की चीज़ें दिखीं. मोल भाव तो हुआ ही पर सामान महँगा लगा. शायद इसलिए क्योंकि हम उससे एक दिन पहले,बुडापेस्ट के बाहर एक छोटे से गाँव ,सेंतेंद्रे घूम कर आये थे. यहाँ जेबकतरों से भी सावधान रहने की इदायत दी गयी थी सो आधा दिमाग तो अपना बटुआ और मोबाइल बचाने मैं ही लगा था.
रात होते होते हम वापस होटल पहुंचे और डेन्यूब किनारे के अद्भुत समाँ का आनंद लिया. यहाँ पर हर शाम बेंच पर बैठीं कुछ औरतें भी कढ़ाई के मेजपोश आदि बेचती हैं.बातें हुईं, खरीदारी हुई और पता चला कि जो नहीं खरीदा वह असल में चीन से आया था. भारत की तरह वहां भी चीन सस्ते माल भेज रहा है.यही बात हमें वेनिस में भी दिखी . मन में एक सवाल उठा कि जो हमने इया वह क्या वाकई उन औरतें के गाँव का है या फिर चीन का ?
किनारे बनी छोटे लडके की एक मूर्ती के पास बैठकर,यह सब भूल गए और मज़ा लिया ,नदी पर तैरती नौकाओं का, उस पार जगमगाते महल का, तोकाजी का और हर इमारत,हर कदम के पीछे छुपी एक कथा का.
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