तितलियों के पीछे पीछे
पेड़ों की छाँव के नीचे
मखमली घास के गलीचे
हम अपनी मस्ती से सींचे !
गुनगुनाते स्वरों की लहरी
गदगद हो जाए दोपहरी
मन में लहर उठे गहरी
यह घड़ी बस रहे ठहरी !
शारदीय सुबह की हौली ठंड
सब संगिनियों का हो संग
तो मन करे बस एक पुकार
आपसे आने का मनुहार !
1 टिप्पणी:
Ati-uttam
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