दीयों की जगमग से चौंधिया जाए जब आँगन मेरा
हंस कर बोले प्रतीक्षारत मैं कब से सूना
रंग रंगोली, दीप दीवाली
हर कोने की सुध बुध ले लो।
एक दिया हो या हो लाखों की हो झिलमिल
राह तकती घर की देहरी बोले मैं भी कब से यहीं
लीपी पुती सफेदी की चादर ओढ़े
लक्ष्मी पाँव निहारूं एकटक।
लड़ियों की माला पहने मुंडेर ने झाँक कर नीचे देखा
इतराती देहरी, मतवाले आँगन से बोला
ऊपर भी मुझे निहारो
जगम ,मगन आज सूनी माँग !
चारों दिशाओं में फैले ज्योति,
हंस कर बोले प्रतीक्षारत मैं कब से सूना
रंग रंगोली, दीप दीवाली
हर कोने की सुध बुध ले लो।
एक दिया हो या हो लाखों की हो झिलमिल
राह तकती घर की देहरी बोले मैं भी कब से यहीं
लीपी पुती सफेदी की चादर ओढ़े
लक्ष्मी पाँव निहारूं एकटक।
लड़ियों की माला पहने मुंडेर ने झाँक कर नीचे देखा
इतराती देहरी, मतवाले आँगन से बोला
ऊपर भी मुझे निहारो
जगम ,मगन आज सूनी माँग !
चारों दिशाओं में फैले ज्योति,
पथ हो जाएँ आलोकित
हर घ ,हर ह्रदय में हो ऐसा उजियारा
निराश आँखों में चमक
हताश सांसों में आशा
शुभ दीपावली की अभिलाषा !
हर घ ,हर ह्रदय में हो ऐसा उजियारा
निराश आँखों में चमक
हताश सांसों में आशा
शुभ दीपावली की अभिलाषा !
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