गुरुवार, नवंबर 01, 2012

दीपावली

दीयों की जगमग से चौंधिया जाए जब आँगन मेरा
हंस कर बोले प्रतीक्षारत मैं कब से सूना
रंग रंगोली, दीप दीवाली
हर कोने की सुध बुध ले लो। 

एक दिया हो या हो लाखों  की हो  झिलमिल
राह तकती  घर की देहरी बोले मैं भी कब से यहीं
लीपी पुती सफेदी की चादर ओढ़े 
लक्ष्मी पाँव निहारूं एकटक। 

लड़ियों की माला पहने मुंडेर ने झाँक कर नीचे देखा
इतराती देहरी, मतवाले आँगन  से बोला
ऊपर भी मुझे निहारो
जगम ,मगन आज  सूनी माँग !

चारों दिशाओं में  फैले ज्योति, 
पथ  हो जाएँ आलोकित
हर घ ,हर ह्रदय  में हो ऐसा उजियारा
निराश आँखों में  चमक  
हताश सांसों में आशा
शुभ दीपावली  की अभिलाषा !      

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