आम आदमी की पार्टी बनी है। 'आप' सब उसके सदस्य हैं .जानकर एक आशा जागी है कि शायद कुछ बदले या फिर आसपास के वातावरण को बदलने की एक शुरुआत तो हुई।वरना हम सब तो सिर्फ दोष देना जानते हैं कुछ करना नहीं। बहस चलती रहती है कि अरविन्द केजरीवाल जो कर रहे हैं उससे स्थिति में कुछ बदलाव आ सकता है या नहीं। लोकपाल बिल के अनशन की तरह हमारे देश की जटिल और कुटिल होती व्यवस्था एवं राजनीति में कुछ बदलेगा ?
पर मेरे ज़हन में एक सवाल उठता है कि अरविन्द केजरीवाल तो जो उन्हें करना था वह कर रहे हैं पर जो आम आदमी को करना चाहिए वो क्या हम करेंगें।2014 में अगला संसदीय चुनाव होना है। अभी तक हमारा यह रोना था कि हमारे पास विकल्प नहीं है।सब पार्टियां एक ही तरह की हैं . सिर्फ ऊपर के लिबास अलग हैं ,पर अन्दर सबकी फितरत समान है .वही सत्ता का नशा, राजा प्रजा की भावना ,चोर ,अपराधियों को टिकट ,भ्रष्टाचार और अनैतिकता को बढ़ावा . हम या तो वोट देने जाते ही नहीं या फिर हताश हो उस पार्टी को देते हैं जो सत्ता में नहीं थी और कह देते हैं एंटी इनकम्बेंसी वोट !तभी देखिये ये कौन लोग सत्ता में बार बार आते हैं। इस पार्टी के हों या उस पार्टी के ...सब का अंजाम एक ही होता है .एक घोटाला या दूसरा। राष्ट्र में बढ़ते ज़ुल्म,बच्चों, स्त्रियों,निर्बल का शोषण ,स्विस अकाउंट के बढ़ते जमा खाते और देश में बढ़ता काला धन, कोमेनवेल्थ गेम्स से लेकर छोटी सी कोतवाली तक व्याप्त घूसखोरी की आदत , सूची लम्बी है .
पर अब हमारे सामने भी एक विकल्प आया है . निराशावाद स्वर में हम कह सकते हैं कि यह मुट्ठी भर लोग सालों से सड़ती व्यवस्था से क्या लड़ पायेंगे .यह भी सोच सकते हैं कि क्या इनके इरादे भी इमानदार हैं या यह भी अन्दर से वही हैं ,बस अब लिबास और सफ़ेद हो गया है . लेकिन ज़िम्मेदारी अब आम आदमी की है . अगर हम इस सड़ी व्यवस्था से निजात चाहते हैं ,कुछ परिवर्तन लाना चाहते हैं तो अब गेंद हमारे पाले में है . अगले चुनाव में क्या आम आदमी पार्टी यह उम्मीद कर सकती है कि हम उसके उम्मीदवारों को विजयी बनाएं ? उनके साथ प्रदर्शन पर नहीं गए,केंडल मार्च नहीं कर पाए,तो क्या चुनाव के समय तो परिवर्तन की आस को तो वोट के ज़रिये व्यक्त कर ही सकते हैं। या फिर जो इमानदार ,देश के हित के बारे में सोचने वाले लोग हैं वह सामने आयें और इस पार्टी की ओर से प्रत्याशी बनें। अगर वह बिना ज़्यादा धन खर्च किये चुनाव लड़ते हैं तो फिर यह हमारी यानिआम आदमी की ज़िम्मेदारी बनती है कि वोट डालते समय प्रत्याशियों की सूची को गौर से देखें और मुहर एक इमानदा व्यक्ति के सामने लगायें। चोर,उचक्कों,अपराधिक गतिविधियों में लिप्त लोगों को जिताने से तो हम यही सन्देश दे रहे हैं की हम व्यवस्था के सामने असहाय हैं . बया छोटे शहर,गाँव हो या कस्बा ,हमें एक विकल्प मिला है और हमें इसे आजमाना चाहिए। यह हम अपने लिए,अपने देश के लिए और समाज के भविष्य के लिए योगदान कर सकते हैं .
पर मेरे ज़हन में एक सवाल उठता है कि अरविन्द केजरीवाल तो जो उन्हें करना था वह कर रहे हैं पर जो आम आदमी को करना चाहिए वो क्या हम करेंगें।2014 में अगला संसदीय चुनाव होना है। अभी तक हमारा यह रोना था कि हमारे पास विकल्प नहीं है।सब पार्टियां एक ही तरह की हैं . सिर्फ ऊपर के लिबास अलग हैं ,पर अन्दर सबकी फितरत समान है .वही सत्ता का नशा, राजा प्रजा की भावना ,चोर ,अपराधियों को टिकट ,भ्रष्टाचार और अनैतिकता को बढ़ावा . हम या तो वोट देने जाते ही नहीं या फिर हताश हो उस पार्टी को देते हैं जो सत्ता में नहीं थी और कह देते हैं एंटी इनकम्बेंसी वोट !तभी देखिये ये कौन लोग सत्ता में बार बार आते हैं। इस पार्टी के हों या उस पार्टी के ...सब का अंजाम एक ही होता है .एक घोटाला या दूसरा। राष्ट्र में बढ़ते ज़ुल्म,बच्चों, स्त्रियों,निर्बल का शोषण ,स्विस अकाउंट के बढ़ते जमा खाते और देश में बढ़ता काला धन, कोमेनवेल्थ गेम्स से लेकर छोटी सी कोतवाली तक व्याप्त घूसखोरी की आदत , सूची लम्बी है .
पर अब हमारे सामने भी एक विकल्प आया है . निराशावाद स्वर में हम कह सकते हैं कि यह मुट्ठी भर लोग सालों से सड़ती व्यवस्था से क्या लड़ पायेंगे .यह भी सोच सकते हैं कि क्या इनके इरादे भी इमानदार हैं या यह भी अन्दर से वही हैं ,बस अब लिबास और सफ़ेद हो गया है . लेकिन ज़िम्मेदारी अब आम आदमी की है . अगर हम इस सड़ी व्यवस्था से निजात चाहते हैं ,कुछ परिवर्तन लाना चाहते हैं तो अब गेंद हमारे पाले में है . अगले चुनाव में क्या आम आदमी पार्टी यह उम्मीद कर सकती है कि हम उसके उम्मीदवारों को विजयी बनाएं ? उनके साथ प्रदर्शन पर नहीं गए,केंडल मार्च नहीं कर पाए,तो क्या चुनाव के समय तो परिवर्तन की आस को तो वोट के ज़रिये व्यक्त कर ही सकते हैं। या फिर जो इमानदार ,देश के हित के बारे में सोचने वाले लोग हैं वह सामने आयें और इस पार्टी की ओर से प्रत्याशी बनें। अगर वह बिना ज़्यादा धन खर्च किये चुनाव लड़ते हैं तो फिर यह हमारी यानिआम आदमी की ज़िम्मेदारी बनती है कि वोट डालते समय प्रत्याशियों की सूची को गौर से देखें और मुहर एक इमानदा व्यक्ति के सामने लगायें। चोर,उचक्कों,अपराधिक गतिविधियों में लिप्त लोगों को जिताने से तो हम यही सन्देश दे रहे हैं की हम व्यवस्था के सामने असहाय हैं . बया छोटे शहर,गाँव हो या कस्बा ,हमें एक विकल्प मिला है और हमें इसे आजमाना चाहिए। यह हम अपने लिए,अपने देश के लिए और समाज के भविष्य के लिए योगदान कर सकते हैं .
1 टिप्पणी:
बढ़िया यथार्थ संजोये प्रस्तुति है हमारे वक्त की .ईमानदार ,बनता (इमानदार ,बंटा )के स्थान पर कर लें .
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