पेटूनिया |
गृह मग वन में आया वसंत।
सुलगा फागुन का सूनापन
सौंदर्य शिखाओं में अनंत।
सौरभ की शीतल ज्वाला से
फैला उर-उर में मधुर दाह
आया वसंत भर पृथ्वी पर
स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह।
(सुमित्रानन्दान पंत )
वसन्त ऋतु क्या आयी हवा में एक स्निग्धता सी फ़ैल गयी । फागुन की बहार जैसे शिशिर की ठण्ड से थोड़ी सिहरन लेती है ,आगत ग्रीष्म से थोड़ी नरमी उधार ले लेती है ,और उसमें फूलों के रस की मादकता डाल कर ऐसी बयार बन जाती है कि ह्रदय में एक हूक सी उठती है ,एक प्रीतमयी व्याकुलता सी छा जाती है ।
ऐसे में फूलों ,बगीचों में घूमना एक स्वर्गिक आनंद देता है। नीम के पेड़ से पत्तियां झड़ रही हैं ,पीपल का विशाल वृक्ष सूना हो गया है ,पर बसन्ती हवा के आवेश में आम तो बौरा ही गया । सब अपने अपने तरीके से नवजीवन के लिए तैयार हो रहे हैं। मैं देख रही हूँ घर में नीम्बू और मौसमी पेड़ है उसमें भी चिकने नए पत्ते और छोटे छोटे फूल निकले हैं।
वसंत का जादू जब छाया तो अपने बगीचे में घूम घूम कर आँखों से उसका रस पीना ,उसे अपने भावों में समाना ,इस मधुमास का मदिर पान करना ,यही तो मादकता की पराकाष्ठा है।
इस बार जनवरी और फरवरी में हो रही बेमौसम बारिश ने लाख प्रयत्न किया , बसंत के रंग में भंग डालने का ,पर उन्मादित फाल्गुनी पवन को रोक नहीं पाया । वह तो हर विपरीत स्थिति से निकल कर अपना सौंदर्य बिखेरने पर आमदा है।
मधुमक्खी और डाहलिया |
बस अभी कली फूल बनने को है |
मै अग-जग का प्यारा वसंत।
मेरी पगध्वनि सुन जग जागा
कण-कण ने छवि मधुरस माँगा।
नव जीवन का संगीत बहा
पुलकों से भर आया दिगंत।
मेरी स्वप्नों की निधि अनंत
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत।
(महादेवी वर्मा )
आइस प्लांट |
3 टिप्पणियां:
सुन्दर इस नौसम में बागीचे में प्रातःकालीन भ्रमण बड़ा ही सुहाना होता है
मन बासंती हो गया।
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सुन्दर चित्रों से सजा लेख |उम्दा है |
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