हमें बहुत बातों पर बहुत लोगों से जलन होती है। एक जलन की बात तो हो चुकी
है। एक और राज की बात है जिससे मुझे लोगों से जलन होती है। उन लोगों से जो कैमरा
देखते ही झट से एक सुंदर सी मुद्रा बना लेते हैं। जिनको कैमरे से इश्क है,जिनसे
कैमरा मुहब्बत करता है,जिनकी हर अदा पर वह फिदा है और जो कैमरे के साथ एक सहज
संवाद स्थापित कर लेते हैं। जिनकी बातचीत होती है उससे और बड़ी सहजता से वह एक
दूसरे को समझते हैं।
यह भी एक हुनर है जो हमे न आया। न बचपन में न अब बुढ़ापे और न ही युवावस्था
में। मेरी बहपन की एक स्वीर है जहां एक बहुत सुंदर से बाग में हम कुछ भाई बहन को
फ़ोटो खींचने के लिए इकट्ठा किया गया था। सभी बच्चों को सजाया-संवारा गया। उस जमाने
में बाकायदा फोटोग्राफर को घर बुलाया जाता था। लेकिन जब फ़ोटो निकला तो बाकी सब तो
बहुत सलीके से खड़े हैं और हम हैं कि चेहरे पर दहशत का भाव लिए भागे जा रहे हैं।
उसी में अब देखती हूँ तो एक दो बड़े भाई बहनों के चेहरे पर गुस्सा भी छलकता दिख रहा
है। और सही भी है। उस समय आज की तरह तो था नहीं की सकड़ों फ़ोटो लेते रहो और delete करते
रहो।
मुझे तो जैसे ही फोटग्राफर की आवाज सुनाई पड़ी,”सब लोग सामने देखो, इसमें देखो
अभी चिड़िया उड़ेगी” और मैं फुर्र से उढ़ने
को तैयार हो जाती। अच्छा यह चिड़िया वाला फंडा भी अब बदल चुका है। पहले चिड़िया उड़ती
थी और हम सावधान हो जाते । फिर आया smile please का ज़माना। यही वह जादुई शब्द
जिनसे हम समझ जाते कि फोटोग्राफर तैयार है आप भी मुस्कराहट के साथ तैयार रहें। उसके
बाद तबदीली हुई, पश्चिम खान पान से वास्ता हुआ और “smile,please” की जगह ली,”say cheese” ने। और अभी हाल भी हमने
सुना 123 go! यह गो क्या है!बात जाम नहीं रही। आजकल के बच्चे
go कहते हैं पर उसमें कोई दम नहीं है। चीज़ या स्माइल प्लीज
वाली झटक नहीं है। और चिड़िया तो खैर अलग ही level था।
चाहे चिड़िया देखो या चीस कहो हम हमेशा ही कैमरे के सामने भगोड़े रहे हैं। फिर
किसी ने समझाया कि यह फोटो नहीं ली जा रही हैं यह तो memories create की जा रही हैं। यह उन पलों को को भविष्य के लिए सँजोने का तरीका है । बात
न तो आप की है,न कैमरे की,न आप कैसे लगते हैं फ़ोटो में। बात खास पलों की यादें
बनाने की है। खास पल भी नहीं किसी भी समय को समेट कर रखने की है । बस यही सोचकर आप
फ़ोटो खिंचवाने में झिझकना छोड़ दें। यहाँ वहाँ जहाँ त्यहाँ,ऐसे वैसे,कैसे कैसे बस क्लिक
क्लिक का साथ दें। आगे चलकर इन्हें देखना बहुत खुशी देगा । बात में दम था । वाजिब
लगी। तब से हमने भी कैमरे से दुश्मनी छोड़ थोड़ी सी दोस्ती कर ली। दोस्ती बहुत अधिक
नहीं है,क्योंकि कैमरा सामने आते ही मुस्कान कुछ अजीब सी चिपकाई हुई सी हो जाती है
। सहज होना क्या होता है अभी तक न आया। पर हाँ मेमोरीस क्रीऐट हो रही हैँ, आज से
दो चार साल बाद पुनः इन पलों को जीने के लिए। तस्वीर के पीछे छुपी कहानियाँ भी याद
करने के लिए।
हर तस्वीर वो नहीं होती जो दिखती है। एक विडिओ कुछ दिन पहले देखा था जिसमें एक
छोटी बच्ची रो रही है। शायद किसी बात की जिद कर रही थी। जैसे ही कैमरे को देखा
रोना छोड़ मुस्करा दी। ऐसी ही कई मुसकराहटें कैद हो जाती हैँ कैमरे में जो सिर्फ
कैमरे के लिए हैँ। हमारी भी की ऐसी फ़ोटो हैँ जो तब खींची गई जब हम बिल्कुल एक
दूसरे से नाराज हैँ। पर फ़ोटो में क्या
प्यार छलक रहा है! बातचीन बंद है इसकी एक शिकन भी फ़ोटो पर नहीं पड़ी और क्या
तारीफ़ों के पुल बांधे गए लवली जोड़ी पर! यही सब कहानियाँ होती हैँ स्मृतियों की। कुछ
हंसी के क्षण,कुछ प्रसन्नता को कैद करना,कभी दुखते हृदय के बावजूद मुस्कराना। कभी
यह भी लगता है कि आजकल खुश दिखाना खुश रहने से ज्यादा ज़रूरी हो गया है।
खैर पलों को कैद कर लिया गया है तो मुड़कर देखने का भी एक खास मज़ा है। यह सब कई
बार साझा होते थे अल्बम के पन्ने पलटने पर। यह भी एक बड़ा ही आनंददायक और मजेदार
कार्यक्रम होता । जब भी कोई रिश्तेदार या मित्र घर आए तो अल्बम निकाले जाते और
फ़ोटो के पीछे की कहानियाँ सुनाई जातीं। कब घूमने गए क्या-क्या हुआ, क्या हो रहा था
जब फलां फ़ोटो ली गई। अब डिजिटल फोटो हैँ तो साथ बैठकर एलबम के पन्ने पलटने का सुख
लुप्त हो गया है। हाँ तुरत-फुरत कोई भी तस्वीर मिल तो जाती है पर एक साथ बैठकर चाय
की चुस्की की तरह उनका लुत्फ उठाना अब एक गायब होता एहसास है।
अब memories
क्रीऐट हो जाती हैँ,मोमेंट्स capture हो जाते
हैँ,छोटे-छोटे पल,नन्हीं सी एक हंसी,कुछ क्षण की मुलाकातें या फिर जीवन के बेहद
महत्त्वपूर्ण मौके,शादी-ब्याह,जन्मदिन,बैठकें,सैर सपाटे,.. सब लेखा जोखा मिल जाएगा
अनंत अनंत तक। पर अगर किसी को ऐसा लग रहा है कि इतनी फ़ोटो खींचने पर फोटोग्राफर की
बड़ी पूछ होती है तो भूल जाइए जनाब। यह ज़माना है मोबाईल फोटोग्राफी। यहाँ हर कोई बेजोड़
कैमरामैन है, हर कोई बेहतरीन तस्वीरें लेने में माहिर और कोई नहीं है तो सेल्फ़ी तो
है ही। हाथ लंबा करें और सेल्फ़ी खींचे । यह भी एक कला है। और अब तो उन लोगों से भी
बड़ी ईर्ष्या होती है जो सेल्फ़ी लेने में माहिर हैँ। सोचिए मुझे डाह होती है उनसे
जो चटपट फ़ोटो खिंचवाने के लिए राजी हो जाते हैँ,जिनकी तस्वीर सुंदर उतरती है, और
अब तो मेरी ईर्ष्या का एक विशेष वर्ग है उन लोगों का जो फटाफट सेल्फ़ी ले लेते हैँ।
स्व प्रेम की पराकाष्ठा है। हम अपने ही सनम हैँ। अब तो की कई सेल्फ़ी समूह में
दिखाई देते हैँ हम पर अपनी सेल्फ़ी न बाबा। जो मुस्कान कैमरे के सामने वैसे भी तनावयुक्त,
बेढंगी होती थी वह सेल्फ़ी में तो तीनों लोकों के सारे दुखों का भार कंधों पर लादे रहने
के भाव से ओतप्रोत होती है।
यह डाह कथा है जहाँ एक ईर्ष्या पर काबू पाया तो दूसरी उपजने लगी। फिर भी
तस्वीरें लेना न छोड़ें। वर्तमान को भविष्य तक ले जाने का यह सुगम पथ है ।
डाह की आह !
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