सोमवार, मार्च 17, 2025

हमने भी देखी है ऋतु बसंत की

देखी है बगिया फूलो से लदी 

देखी है होली कई रंग से भरी 

देखी हैं महबूबा बड़े नखरों वाली

देखी है गालों पर फैलती लाली 

अबीर देखा गुलाल देखा,देखे बहुत धमाल भी 

उसने  जो हाँ कर दी, देखा ऐसा कमाल भी।


देखी है शामों की रौनक

देखी है जीवन ऋतु  बड़ी मोहक

देखी है झूमते आँगन की छटा 

देखी रसोई के खटपट की अदा 

सपनों देखे ढेरों-ढेरों,सच होते भी देखा है 

पतझड़ के मौसम में अब तो खाली हाथ भी देखा है।

क्या खोया क्या पाया है,क्या हिसाब लगाना है

जो याद रहा सो याद रहा, क्या भूलना क्या भुलाना है।

वो भी दिन थे अपने दिन थे,अपना एक रंगीला संसार 

अपनी कूची अपने रंग थे, मेरी अपनी बसंत बहार!



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