करवटें बदलते अकेले तुम
जूझ रहे होगे तन्हाई से
पुरानी यादों से
आज के विरह से
चाह्ती हूँ कि सहारा दूँ तुम्हें
अपनी बाँहों का
अपने प्यार का
अपने विश्वास का
कुछ यादों के घेरों में
मेरा प्रवेश नहीं
वहाँ तुम हो
और तुम्हारी आह .
पर अकेले तुम नहीं
एक पीडा सबकी अपनी होती है
नितांत निज.
तुम्हारे पास तो
दो अमानत हैं और मैं
कुछ ऐसे भी हैं
जो घुलते हैं
अव्यक्त भावों में
कल के दर्द हैं
कल का आसरा नहीं
12 टिप्पणियां:
एक गहरी सोंच है इस कविता में...
जो आप ही इक आकृति बनाती जाती
है...सुंदर बहुत व्यापाकता है विचारों में.
सुंदर भाव और बहुत भावुक कविता के लिये बधाई.
कुछ ऐसे भी हैं
जो घुलते हैं
अव्यक्त भावों में
दिल की आवाज़ दिल को छू गई!!
कुछ ऐसे भी हैं
जो घुलते हैं
अव्यक्त भावों में
कल के दर्द हैं
कल का आसरा नहीं
पूनम जी,
ह्रदय के भावों को बहुत सरलता से कविता में प्रस्तुत किया है आपने ...बधाई
बहुत अच्छा लिखा। अंसार कंबरी की एक कविता शायद आपको अच्छी लगे-
फिर उदासी तुम्हे घेर बैठी न हो
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना
चित्र उभरे कई किंतु गुम हो गये
मैं जहां था वहां तुम ही तुम हो गये
लौट आने की कोशिश बहुत की मगर
याद से हो गया आमना -सामना!
फिर उदासी तुम्हे घेर बैठी न हो ..
सुन्दर कविता है ...
मानव ह्र्दय की पीडा का सुन्दर चित्रण किया है आप ने.. बढिया रचना के लिये बधाई स्वीकारें
कोमल और उदास !
अब इसे अमित को भी पढा देना ।
Please log my violent protest for the last line. It is not good for my morale also.
अच्छी भावाभियक्ति है ।
कविता तो अच्छी लग रही है, कुछ रहस्यात्मक व संकेतात्मक। इस गूढ़ अर्थ को समझने का प्रयास करना तो शायद अतिक्रमण जैसा हो।
सच है , कुछ दर्द सब की पहुंच से दूर होते हैं..... हम करीब होकर भी कुछ दूरियां रह ही जाती है दरमियाँ
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