मंगलवार, अप्रैल 17, 2007

साथ है पर फिर भी नहीं

करवटें बदलते अकेले तुम
जूझ रहे होगे तन्हाई से
पुरानी यादों से
आज के विरह से

चाह्ती हूँ कि सहारा दूँ तुम्हें
अपनी बाँहों का
अपने प्यार का
अपने विश्वास का

कुछ यादों के घेरों में
मेरा प्रवेश नहीं
वहाँ तुम हो
और तुम्हारी आह .

पर अकेले तुम नहीं
एक पीडा सबकी अपनी होती है
नितांत निज.
तुम्हारे पास तो
दो अमानत हैं और मैं

कुछ ऐसे भी हैं
जो घुलते हैं
अव्यक्त भावों में
कल के दर्द हैं
कल का आसरा नहीं

12 टिप्‍पणियां:

Divine India ने कहा…

एक गहरी सोंच है इस कविता में...
जो आप ही इक आकृति बनाती जाती
है...सुंदर बहुत व्यापाकता है विचारों में.

Udan Tashtari ने कहा…

सुंदर भाव और बहुत भावुक कविता के लिये बधाई.

Unknown ने कहा…

कुछ ऐसे भी हैं
जो घुलते हैं
अव्यक्त भावों में
दिल की आवाज़ दिल को छू गई!!

Reetesh Gupta ने कहा…

कुछ ऐसे भी हैं
जो घुलते हैं
अव्यक्त भावों में
कल के दर्द हैं
कल का आसरा नहीं

पूनम जी,
ह्रदय के भावों को बहुत सरलता से कविता में प्रस्तुत किया है आपने ...बधाई

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा। अंसार कंबरी की एक कविता शायद आपको अच्छी लगे-
फिर उदासी तुम्हे घेर बैठी न हो
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना
चित्र उभरे कई किंतु गुम हो गये
मैं जहां था वहां तुम ही तुम हो गये
लौट आने की कोशिश बहुत की मगर
याद से हो गया आमना -सामना!

फिर उदासी तुम्हे घेर बैठी न हो ..

अनूप भार्गव ने कहा…

सुन्दर कविता है ...

Mohinder56 ने कहा…

मानव ह्र्दय की पीडा का सुन्दर चित्रण किया है आप ने.. बढिया रचना के लिये बधाई स्वीकारें

Pratyaksha ने कहा…

कोमल और उदास !
अब इसे अमित को भी पढा देना ।

Amit ने कहा…

Please log my violent protest for the last line. It is not good for my morale also.

Manish Kumar ने कहा…

अच्छी भावाभियक्ति है ।

Rajeev (राजीव) ने कहा…

कविता तो अच्छी लग रही है, कुछ रहस्यात्मक व संकेतात्मक। इस गूढ़ अर्थ को समझने का प्रयास करना तो शायद अतिक्रमण जैसा हो।

Sajeev ने कहा…

सच है , कुछ दर्द सब की पहुंच से दूर होते हैं..... हम करीब होकर भी कुछ दूरियां रह ही जाती है दरमियाँ