कई चिट्ठे पढे जिनमें सौंवी पोस्ट या दो सौंवी पोस्ट का ज़िक्र हुआ और जश्न मना। बधाई उन सबको जो यह मील के पत्थर गाड़ पाये। कई तो घर से निकले मेरे काफी बाद पर इन स्टेशनों पर उनकी रेलगाडी पहुँच गई बहुत पहले । यहाँ तो ट्रेन मालगाडी की तरह रुक रुक कर आगे बढ़ रही है.सुस्ताती ज़्यादा समय है ,चलती कम । और अन्य तेज़ रफ्तार वाली गाड़ियों के लिए रुक जाती है.कई बार तो पटरी से उतरी हुई लगी। पर यह ऐसा ट्रैक है की वापस पटरी पर लाना मुश्किल नहीं।
सोचती हूँ ऐसा क्या है की औरों के शतक , दुहरे शतक बन गए और अपना अर्ध शतक भी न बना.बाक़ी खेल रहे हैं एक दिवसीय मैच और मैं अभी भी वही पुराने लहजे में टेस्ट मैच! और टेस्ट मैच में भी कुछ श्रीकांत की तरह बैटिंग कर रहे है और मैं हूँ गावस्करनुमा या फ़िर रवि शास्त्रीनुमा। गावस्कर ने कमसेकम शतक तो बनाए।
कछुआ चाल है ,खरामा खरामा बढ़ रही है। बीच बीच में अपने कवच के अन्दर घुस कर फ़िर हौले से बाहर कि दुनिया देखी । आगे पीछे कोई ख़तरा तो नहीं और फिर बढे आगे।
सोचिये मैंने पहली पोस्ट लिखी थी फरवरी २००६ में .तब से दो साल के अंतराल पर लिख पायी कुल ४० पोस्ट्स । सोचती हूँ क्या कारण है।
समयाभाव तो सबसे पहले नंबर पर है ।फुरसत कम , काम ज्यादा ...किसी काम को न करने का सबसे सस्ता टिकाऊ बहाना!! लेकिन समयाभाव के साथ साथ अभाव है उत्प्रेणन का.एक जूनून का कि न सिर्फ़ कुछ लिखूं बल्कि बहुत उत्कृष्ट लिखूं। आलस का घर है यह मन मेरा.कौन इतनी मेहनत करे ,इस बारे में सोचने का कि अब किसा विषय पर लिखा जाए ,एक रूपरेखा तैयार की जाए और फ़िर टंकण .तौबा करो.वैसे भी मुझे कौन सा गोल्ड मेडल लाना है चिट्ठा लेखन में। और यह जो सब सर्वश्रेष्ट चिट्ठे आदि के अभियान है.....उहूँ यहाँ भी वही ऑफिस जैसी रेटरेस .न बाबा मुझे नही पसंद .अपना चिट्ठा बनाया अपनी रफ़्तार से लिखेंगे। नायाब तरीके है अपनी अकर्मण्यता को उचित ठहराने के लिए ।
सृजनात्मक आलस भी है.बुद्धि लगानी पड़ेगी सोचने में कि क्या लिखें कैसे लिखें । रचनात्मकता की अंतर्जात सीमाएं है जिससे बंधी हूँ कि बस इतना ही सोच सकती हूँ, इतना ही लिख सकती हूँ.अभिव्यक्ति की परिधि है छोटी और कई बार विचार ,कल्पना और भाव को व्यक्त करने में असमर्थ हो जाती हूँ .ऐसे समय न सिर्फ़ अपने सीमित भाषा ज्ञान पर क्रोध आता है बल्कि असहाय महसूस करती हूँ। विषय असीमित हैं,रुचियाँ भी कम नहीं ,ज्ञान का विस्तार है शायद औरों की अपेक्षा कम पर फ़िर भी कामलायक,उम्र के चालीस से ज्यादा बसंत देखने के बाद अनुभव भी विविध है.फ़िर क्या हो सकता है?
चिट्ठा जगत में आए दो साल हो गए अभी तक टिकी हूँ शायद यह भी एक उपलब्धि ही है.दो साल पूरे करने पर "थ्री चियर्स "!!!
सोचती हूँ ऐसा क्या है की औरों के शतक , दुहरे शतक बन गए और अपना अर्ध शतक भी न बना.बाक़ी खेल रहे हैं एक दिवसीय मैच और मैं अभी भी वही पुराने लहजे में टेस्ट मैच! और टेस्ट मैच में भी कुछ श्रीकांत की तरह बैटिंग कर रहे है और मैं हूँ गावस्करनुमा या फ़िर रवि शास्त्रीनुमा। गावस्कर ने कमसेकम शतक तो बनाए।
कछुआ चाल है ,खरामा खरामा बढ़ रही है। बीच बीच में अपने कवच के अन्दर घुस कर फ़िर हौले से बाहर कि दुनिया देखी । आगे पीछे कोई ख़तरा तो नहीं और फिर बढे आगे।
सोचिये मैंने पहली पोस्ट लिखी थी फरवरी २००६ में .तब से दो साल के अंतराल पर लिख पायी कुल ४० पोस्ट्स । सोचती हूँ क्या कारण है।
समयाभाव तो सबसे पहले नंबर पर है ।फुरसत कम , काम ज्यादा ...किसी काम को न करने का सबसे सस्ता टिकाऊ बहाना!! लेकिन समयाभाव के साथ साथ अभाव है उत्प्रेणन का.एक जूनून का कि न सिर्फ़ कुछ लिखूं बल्कि बहुत उत्कृष्ट लिखूं। आलस का घर है यह मन मेरा.कौन इतनी मेहनत करे ,इस बारे में सोचने का कि अब किसा विषय पर लिखा जाए ,एक रूपरेखा तैयार की जाए और फ़िर टंकण .तौबा करो.वैसे भी मुझे कौन सा गोल्ड मेडल लाना है चिट्ठा लेखन में। और यह जो सब सर्वश्रेष्ट चिट्ठे आदि के अभियान है.....उहूँ यहाँ भी वही ऑफिस जैसी रेटरेस .न बाबा मुझे नही पसंद .अपना चिट्ठा बनाया अपनी रफ़्तार से लिखेंगे। नायाब तरीके है अपनी अकर्मण्यता को उचित ठहराने के लिए ।
सृजनात्मक आलस भी है.बुद्धि लगानी पड़ेगी सोचने में कि क्या लिखें कैसे लिखें । रचनात्मकता की अंतर्जात सीमाएं है जिससे बंधी हूँ कि बस इतना ही सोच सकती हूँ, इतना ही लिख सकती हूँ.अभिव्यक्ति की परिधि है छोटी और कई बार विचार ,कल्पना और भाव को व्यक्त करने में असमर्थ हो जाती हूँ .ऐसे समय न सिर्फ़ अपने सीमित भाषा ज्ञान पर क्रोध आता है बल्कि असहाय महसूस करती हूँ। विषय असीमित हैं,रुचियाँ भी कम नहीं ,ज्ञान का विस्तार है शायद औरों की अपेक्षा कम पर फ़िर भी कामलायक,उम्र के चालीस से ज्यादा बसंत देखने के बाद अनुभव भी विविध है.फ़िर क्या हो सकता है?
चिट्ठा जगत में आए दो साल हो गए अभी तक टिकी हूँ शायद यह भी एक उपलब्धि ही है.दो साल पूरे करने पर "थ्री चियर्स "!!!
10 टिप्पणियां:
सही, टिके रहना भी एक उपलब्धि ही है!!
चियर्स!!!
बधाई व शुभकामनाएं कि लेखन आवृत्ति बढ़े आपकी!!
:)
प्रसुप्ति बहुत बुरी चीज़ नहीं है,जागने की संभावना बनी रहती है . इसलिए 'हाइबरनेशन' बहुत आदर्श स्थिति न भी हो तो भी जागृति की आशा बनी रहती है .
लगे रहिये, टिके रहिये..२ साल पूर्ण करने की हार्दिक बधाई बाकी के अंक भी समय समय पर पूरे होते रहेंगे तब भी उत्सव मना लिया जायेगा. बधाई.
दो साल पूरे करने पर बधाई, आप अकेली नहीं हैं हम भी आप की जमात में हैं आलस के मारे, चलिए अच्छा लगा कि कोई तो साथी है
दो साल टिके रहना कम नहीं है - बधाई
दो साल पूरे करने पर बधाई.........
अब आलस का बहाना छोडिये कुछ अच्छा सा लिख डालिये हम सभी के लिये।
लीजिये दो साल टिके रहने की उपलब्धि कोई छोटी-मोटी उपलब्धि है।
बहुत-बहुत बधाई और ढेरों शुभकामनाएं !!
तो बस अब शुरू कर दीजिये लिखना।
कल मैं भी यही सोच रहा था. बीच में दो साल तो नियमित लिखा पर जाने क्यों अचानक लिखने का मन नहीं करता, केवल फोटोब्लोग में तस्वीरें लगा पाता हूँ. आप की तरह ही रेटरेस वाली बात मन में आई, अपने लिए लिखना है तो फ़िर चिता कैसी कि लिखा या नहीं लिखा!
सुनील
.किसी काम को न करने का सबसे सस्ता टिकाऊ बहाना!!
Very correct. Congratulations.:)
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