कितने रिश्ते बनाते हैं हम
और न जाने कितने रिश्ते निभाते हैं हम
पर अपने से कोई रिश्ता बनाया है क्या हमने
कभी ख़ुद से कुछ निभाया है हमने ?
सब रिश्ते बेमानी हैं अगर
ख़ुद को नहीं पहचाना है हमने
भाई बहन ,माँ बाप,पति, पत्नी,
पिता,पुत्र, पुत्री,मित्र,सहेली
दोस्त
सबका वजूद तभी है
जब हम हैं ।
अगर अपनी पहचान झूठी है
तों रिश्तों की सच्च्चाई क्या है ?
9 टिप्पणियां:
jo jindagee hai wahee rishte hain aur sach to ye hai ki dono hee ke baare mein hum nahin jaante ya jo jaante hain wo sabke liye alag alag hai.
सही है. और ख़ुद को पहचानने की ज़रूरत महसूस करना सही दिशा में सही क़दम. अच्छा ख़याल. अच्छी रचना.
बहुत सुन्दर पूनम जी। सच कहा आपने स्वंय से बनाया रिश्ता ही सच्चा रिश्ता है। बहुत खूब।
रमेश
खोजिये...खोजिये..हम बैठे हैं सुनने को. :)
लिखते रहिए
it sounds cool...
rishton ke bina jeevan bemani hai .rishten hai to nij hriday machalta hai
रिश्ते किसी के साथ भी बनें, निभाएं जाएं ईमानदारी से!
लिखती रहिये!
सबका वजूद तभी है
जब हम हैं । --- इस बात ने तो दिल मोह लिया.
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