बुज़काशी अफगानिस्तान का पारम्परिक राष्ट्रीय खेल है । यह घोडों पर सवार होकर खेला जाता है। घुड़सवारों की टीमें होती हैं और बीच में सफ़ेद रंग से एक गोला (दायरे- हलाल) बना दिया जाता है । एक बकरी को मारकर धड़ अलग कर उसके शरीर को बीच में रख देते हैं.घुड़सवार उस मृत बकरे, वजन १०० किग्र के आसपास होता है , को उठा कर उस गोले में डाल देते हैं। जाहिर है दूसरी टीम इस कार्य में उनका विरोध करती है और बकरा छीनने की कोशिश करते हैं। गोल करने वाले सवार की टीम को हर गोल पर इनाम मिलता है । इनाम वहाँ मौजूद विशिष्ट व्यक्ति देते हैं। इस खेल में कौशल है उन घोडों का जिनको खासतौर से बुज़कशी के लिए तैयार किया जाता है और सवारों का.यह काफी रफ खेल होता है जिस में घुड़सवार चाबुक चलने में कोई संकोच नही करते।
पुनश्च: बकरे १०० किग्रा का होता है यह पढ़कर अमित खूब हँसे और बोले बकरा है या हाथी। और वहाँ पर कोई भीम नही है की घोडे पर चढ़कर दौड़ते हुए १०० किग्र उठा ले .पर मैंने कहीं पढा था की यह १०० किग्र तक हो सकता है .सो लिख दिया.बरहाल बकरा कितना भी मोटा किया गया हो २५,३०,५० किग्रा का होगा।
10 टिप्पणियां:
जी फिल्म खुदा गवाह में देखा था.. विस्तार में आपने बता दिया.. बढ़िया
फोटो अच्छा पर खेल विभत्स ...
काबुल यात्रा जारी रखिये अच्छा है
पहली बार आपके ब्लाग पर आना हुआ. अफगानिस्तान की दुनिया को जानना अच्छा लगा. एक अच्छा काम कर रही हैं आप. हिन्दी में इतर विषयों पर कम लिखा गया है. इन अर्थों में आपका काम मह्त्वपूर्ण है.
ऐसे भी विभत्स खेल हो सकते हैं !
घुघूती बासूती
फ़िल्म काबुल एक्सप्रेस में ये खेल देखा था और पता चला था की तालिबान ने बंद करवा दिया था. लिखती रहे काबुल के बारे में.
यह खेल कुछ अजीब सा है खैर हर देश के अपने रिवाज़ है ...और जानने की उत्सुकता रहेगी
अच्छी और रोचक जानकारी.
पर खेल सही मे वीभत्स है.
आप तो बस जारी रखें जी.
इस खेल का जिक्र किसी किताब में दो दिन पहले ही आया था.
और बतायें काबुल के बारे में. इन्तजार है.
-तशाकोर (आभार को शायद यही कहते हैं अफगानिस्तान में) :)
इन दिनों आप जानकारी की दृष्टि से बहुत अच्छा लिख रही हैं। खूब पढ़ा जा रहा है।
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