शनिवार, फ़रवरी 16, 2013

चलो मन गंगा जमुना तीर

            इलाहाबाद में महाकुम्भ के मौके पर होना एक दुआ कबूल होने जैसा है। हर बारह साल में होने वाला यह पर्व  श्रद्धालुओं को खींचकर ले आता है। मकर संक्रान्ति  के दिन से  इस पर्व का आरम्भ होता है और करीब दो महीने तक संगम तट पर अपना विशवास,अपनी आस्था लिए लोग यहाँ रहते हैं, स्नान करते  हैं और आत्मा की शुद्धि  की कामना करते हैं।
                        समुद्र मंथन के बाद अमृत निकलते ही देवों  और दानवों में उसे पाने के लिए लड़ाई छिड़ गयी .इंद्र के पुत्र ,जयंत,  ने गौरय्या का रूप धारण किया और अमृत वाले कुम्भ को राक्षसों से बचाने के लिए  भागे .12 साल तक वह उसे बचाकर भागते रहे .पर इस दौरान चार बार वह कलश छलका और अमृत की एक एक बूँद , प्रयाग,उज्जैन,हरिद्वार और नासिक में गिरी . ऐसा विशवास है कि हर बारह साल पर अमृत की वह बूँद इन स्थानों पर फिर से प्रकट होती है। और तब यहाँ होता है कुम्भ का पर्व,जब श्रद्धालु पावन नदियों में स्नान कर उस  अमृत बूँद से स्वयं को शुद्ध करते हैं .इसके अलावा हर 144 साल पर महाकुम्भ का आयोजन होता है और इस बार का  मेला महाकुम्भ का पर्व है। उसपर प्रयाग तो गंगा,यमुना,सरस्वती का संगम स्थल है , इसलिए तीर्थराज है।सो यहाँ के महाकुम्भ की महत्ता अधिक है।
           संगम किनारे यहाँ कुम्भ नगरी बन गयी है। क्षेत्र को कई सेक्टर में बाँट दिया गया है . गंगा के दूसरे तट को जोड़ने के लिए  पोंटून पुल बने हैं। 'इसकोन ' हो या शंकराचार्य का मठ ,उत्तरप्रदेश पर्यटन हो या फिर कोई निजी यात्रा कंपनी अनेकों शिविर लगे हैं और रहने की व्यवस्था है . पुलिस स्टेशन है,डाकघर है ,अस्पताल हैं , ट्रेन टिकट खरीदने की सुविधा है। देश भर से आये साधू संतों ने अपने आश्रम यहीं बना लिए। 13 अखाड़ों  के ध्वज लहराते दिख रहे हैं। सब तरफ बस गेरुआ रंग दिखाई देता है।सबके चेहरे पर वही श्रद्धा ,इश्वर के  प्रति भक्ति की चमक है। 14 जनवरी को जब सूर्य उत्तरायण होकर  मकर राशि में प्रवेश  करते हैं तब से आरम्भ होता है कुम्भ पर्व और  यह समाप्त होता है शिवरात्री को।करीब दो महीने तक चलने वाले इस मेले में कुछ ख़ास तिथियाँ  ऐसी होती हैं जो बहुत शुभ होती हैं और उन दिनों महा स्नान होता है। इनमें भी जो सबसे बड़ा स्नान है वह है मौनी अमावस्या का .कहते हैं इसी दिन सृष्टि की रचना हुयी थी . इस बार करोड़ लोगों ने स्नान किया।  शाही स्नान की शुरुआत   साधू संतों  के अखाड़ों  से होती  .घाट  तक पहुँचने के लिए इनका जुलूस भव्य होता है . हाँ, दिगम्बरधारी  नागा साधू तो वैसे भी सर्वाधिक  कौतूहल का विषय होते ही हैं। संगम के पानी में एक तरफ होती है इन विशेष भक्तों  की भक्ति तो दूसरी तरफ साधारण जनमानस की आस्था भी कम अटूट है। एक तरफ गेरुआ वस्त्रधारी, चन्दन तिलक लगाए ,जटाधारी , सन्यासी हैं ,जिनकी पेशवाई और रंग ढंग धार्मिक तो है ही साथ ही भव्य भी . दूसरी तरफ है जन मानस  की श्रद्धा जो उसे मीलों पैदल चल कर ,ठण्ड में, बिना सुख सुविधा के भी यहाँ आने को विवश करती है। छत्तीसगढ़ से आयी रामरती देवी हों ,  राजस्थान से भैरों सिंह या फिर नज़दीक ही वाराणसी के पांडेपुर के समस्त निवासी  .सभी की आस्था में वह बल है जो उन्हें  संगम तक पहुचने  की शक्ति देता है। बसें तो शहर के बाहर ही रोक दी गयी  हैं .अपने सर पर गठरी उठाये ,कंधे पर बैग टाँगे ,गाँव के गाँव ,उमड़  पड़े हैं। बूढ़े भी हैं,बच्चे भी हैं,युवा भी हैं  .सब गंगा मैया की जयगान करते,हाथ थामे  बढे जा रहे हैं। यहाँ तक की अमेरिका से आये जार्ज और न्यूजीलैंड से आयीं रिबेका भी यहाँ पहुंचकर  इसी भावना में सराबोर हो रहे हैं। फिर यहाँ ठन्डे पानी में नहाकर सब धन्य हो जाते हैं। माँ अपने छोटे साल भर के बच्चे को भी डुबकी  लगा कर पुण्य का भागी बना देती है .बुज़ुर्ग भी स्नान करते हुए सोचते हैं जन्म   सार्थक  हो   गया .
             नदी  का किनारा हो, सवेरे उठें तो गंगा यमुना   की  लहरों पर सूरज की किरणों   की लाली दिखे , ठन्डे बहते पानी में नहाकर  , उसी नदी में खड़े होकर सूरज को अर्ध्य दें  ,दिन में सन्त  ,महात्माओं के प्रवचन सुनें और एक कुटी में सो जाएँ।  संगम  किनारे रेत पर मडई डाल  कर माघ की शीत में  एक महीने तक कुछ   लोग   कल्पवास करते हैं।   संयम ,तप और गंगा की सेवा से आत्मा शुद्ध हो और मोक्ष मिले यह आस लिए हर साल श्रद्धालु आते हैं।बाकी मेले की चकाचौंध से अप्रभावित यह उनकी बेहद निजी,अपार विशवास लिए  साधना है। 

          महाकुम्भ में श्रद्धा,भक्ति,धर्म कई रूप में दिखाई पड़ी . शान्ति ,शुद्धि और समृद्धि  की कामना लिए संगम स्नान कर जब लाखों , करोड़ों लोग  निहाल हो जाते हैं , तो यह सृष्टि , यह प्रकृति भी उनके संकल्प और समर्पण से तेजमय  हो जाती है।

2 टिप्‍पणियां:

शिवा ने कहा…

ज्ञानवर्धक लेख ....

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी आभार