कुछ दिन पहले एक मौक़ा मिला . इलाहाबाद के एक प्रतिष्ठित स्कूल में भौतिक विज्ञान के शिक्षक पद के लिए इंटरव्यू था. एक पद कक्षा दस के लिए और एक पद ,कक्षा ११ और 1२ के लए खाली था. साक्षात्कार के लिए ४ -४ अभ्यर्थी .सभी भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर थे. अनेक सवाल पूछे गये. शुरुआत हुई ,१५ तक किसी मनचाहे विषय परपढ़ाने का एक छोटा डेमोंस्त्रेशन से. पढ़ाने का कोई भी तरीका वह अपना सकते थे , हर तरह की मदद स्कूल उपलब्ध करा देता . पर अफसोस , ४ में से किसी ने भी ऐसे तरीका नहीं अपनाया जिससे विषय रूचिकर हो जाए .एक उम्मीदवार ,जो कक्षा बारह को पढ़ाते भी हैं ,ने वही पुराने तरीके से , अपनी प्रदर्शन शुरू किया. उनका विषय था न्यूटन के तीन नियम . उन्होंने ने घिसे पिटे तरीके से बिना ब्लेक्बोर्ड से सर उठाये पढ़ाना शुरू कर दिया . हम ऊंघने लग गए . बच्चों को, जिनके लिए सब बिलकुल नया होगा , क्या समझ में आता होगा . बड़ा खेद हुआ कि विज्ञान की पढ़ाई क्या बिना उदाहरण दिए , सिर्फ समीकरण लिखकर हो सकती है ?
एक निवेदक से पूछा गया की आप बाहर देखें और कोई भी एक ऐसी चीज़ ,क्रिया बताएं जिसमें भौतिकी का कोई भी नियम लग रहा है. उनका जवाब था ,उनको ऐसा कुछ नहीं दिख रहा . हाथ उठाने से लेकर दरवाज़ा खोलने,सूरज के प्रकाश की गति से लेकर ,कण कण के ब्रॊनियन मोशन ,कुछ भी कहा जा सकता था . यह क्या विज्ञान पढाएंगे ? और जो पढाएंगे तो उसमें कितने विद्यार्थियों में रुचि उत्पन्न होगी और कितनों को मूल नियमों की महत्ता समझ आयेगी .उनका ज्ञान सिर्फ रट कर,इम्तिहान पास करने भर तक सिमट जाएगा ?कोई बच्चा सवेरे शीशे में अपना प्रतिबिम्ब देखेगा और उत्साह से बोलेगा कि आज यही तो हमें पढ़ाया गया था ? रात आसमान में तारे देखकर कोई विद्यार्थी सवेरे आकर पूछे की तारों का रहस्य क्या है? इस अनंत आकाश की सीमाएं क्या हैं? और अगर पूछेगा तो क्या कोई शिक्षक उसे उत्तर देंगे , कौतूहल को बढ़ावा देंगे? क्या समझाने की बजाए उससे बोलेंगे ,आओ हम एक साथ मिलकर इसका पता लगायें .एक रात सब बाहर आसमान के नीचे बैठें और ऊपर चलते हुए तारों के साथ दोस्ती करें ?
एक और मोहतर्मा से हाल में रूस में हुए उल्का पात की जानकारी चाही ,तो वह इस घटना से अनभिज्ञ थीं . पर यह सिर्फ विज्ञान के अध्यापकों की समस्या नहीं है।अन्य विषयों के लिए आये पदाभिलाषी भी इसी तरह से अपने विषय वस्तु को सामन्य जनजीवन से जोड़ने में असमर्थ दिखे. सिर्फ किताब से देखते हुए पढ़ाना , ब्लेक्बोर्ड एक दो महत्त्वपूर्ण तथ्य लिख देना भर पढ़ाना नहीं होता .
अगर शिक्षक अपने काम के प्रति इमानदार है तो वह कोशिश करेगा की उसके कक्षा का कम से कम एक विद्यार्थी बाद में कह सके की फलां अध्यापक की वजह से उसमें इस विषय को आगे पढ़ने की लालसा जागी ,या उसकी अरूचि रुचि में बदल गयी .
एक निवेदक से पूछा गया की आप बाहर देखें और कोई भी एक ऐसी चीज़ ,क्रिया बताएं जिसमें भौतिकी का कोई भी नियम लग रहा है. उनका जवाब था ,उनको ऐसा कुछ नहीं दिख रहा . हाथ उठाने से लेकर दरवाज़ा खोलने,सूरज के प्रकाश की गति से लेकर ,कण कण के ब्रॊनियन मोशन ,कुछ भी कहा जा सकता था . यह क्या विज्ञान पढाएंगे ? और जो पढाएंगे तो उसमें कितने विद्यार्थियों में रुचि उत्पन्न होगी और कितनों को मूल नियमों की महत्ता समझ आयेगी .उनका ज्ञान सिर्फ रट कर,इम्तिहान पास करने भर तक सिमट जाएगा ?कोई बच्चा सवेरे शीशे में अपना प्रतिबिम्ब देखेगा और उत्साह से बोलेगा कि आज यही तो हमें पढ़ाया गया था ? रात आसमान में तारे देखकर कोई विद्यार्थी सवेरे आकर पूछे की तारों का रहस्य क्या है? इस अनंत आकाश की सीमाएं क्या हैं? और अगर पूछेगा तो क्या कोई शिक्षक उसे उत्तर देंगे , कौतूहल को बढ़ावा देंगे? क्या समझाने की बजाए उससे बोलेंगे ,आओ हम एक साथ मिलकर इसका पता लगायें .एक रात सब बाहर आसमान के नीचे बैठें और ऊपर चलते हुए तारों के साथ दोस्ती करें ?
एक और मोहतर्मा से हाल में रूस में हुए उल्का पात की जानकारी चाही ,तो वह इस घटना से अनभिज्ञ थीं . पर यह सिर्फ विज्ञान के अध्यापकों की समस्या नहीं है।अन्य विषयों के लिए आये पदाभिलाषी भी इसी तरह से अपने विषय वस्तु को सामन्य जनजीवन से जोड़ने में असमर्थ दिखे. सिर्फ किताब से देखते हुए पढ़ाना , ब्लेक्बोर्ड एक दो महत्त्वपूर्ण तथ्य लिख देना भर पढ़ाना नहीं होता .
अगर शिक्षक अपने काम के प्रति इमानदार है तो वह कोशिश करेगा की उसके कक्षा का कम से कम एक विद्यार्थी बाद में कह सके की फलां अध्यापक की वजह से उसमें इस विषय को आगे पढ़ने की लालसा जागी ,या उसकी अरूचि रुचि में बदल गयी .
2 टिप्पणियां:
सही एवं व्यवहारिक सोच।
बिलकुल सही परिप्रेक्ष्य सन्दर्भ आपने प्रस्तुत किया .भला आदमी कमसे कम यही बताता -त्वरण (acceleration ) से हमारा परिचय एक धक्के के रूप में होता है .बच्चों आप कभी स्कूटर पर बैठें हैं ?क्या होता है जब क्लिच छोड़ी जाती है या चलते हुए स्कूटर की ब्रेक लगाईं जाती है .धक्का लगता है पीछे या आगे की और हम ठेले जाते हैं तो क्यों ?
त्वरण से हमारा वास्ता तब पड़ता है जब गति में बदलाव आता है .
न्यूटन का गति का पहला नियम बल की उपस्तिथि की नहीं अनुपस्थिति की बता करता है .बल न लगने पर ,बल की अनुपस्थिति में पीड या तो एक समान सरल रेखीय गति बनाए रहता है या अपनी विराम की जड़ स्थिति .
बल जोड़ों के रहता है .अकेले बल का प्रकृति में अस्तित्व नहीं है .वह तो असंतुलित बल है जो दो बालों का परीम होता है आगे की और या पीछे की .
ॐ शान्ति
बहुत बढ़िया पोस्ट लिखी है आपने पूनम मिश्रा जी .
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