बुधवार, फ़रवरी 19, 2014

बेकरारी

बसंत की दोपहरी कुछ  अलग सी है
जब हवा छूकर कहती है 
किसी के  साथ की आस हो 
दिल  कुछ गुनगुनाए 
कभी ठंडी एक बयार ,
कभी  गर्म हवा का  झोंका
न करार दे,
 न बेकरारी  ही बने  रहने दे। 
 पैरों तले घास की नमी
और दिल में घुसती
 हवा के साथ आयी
प्यार की गर्मी।
करार भी देती है
और बेकरारी भी। 
  
 

4 टिप्‍पणियां:

Kavita ने कहा…

हवा के साथ आई प्यार की गर्मी करार भी देती है और बेकरारी भी --बहुत सुंदर

Bella ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Nice poem, Congrats.

Mr-Saleem Resume ने कहा…

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