बसंत की दोपहरी कुछ अलग सी है
जब हवा छूकर कहती है
किसी के साथ की आस हो
दिल कुछ गुनगुनाए
कभी ठंडी एक बयार ,
कभी गर्म हवा का झोंका
न करार दे,
न बेकरारी ही बने रहने दे।
पैरों तले घास की नमी
और दिल में घुसती
हवा के साथ आयी
प्यार की गर्मी।
करार भी देती है
और बेकरारी भी।
जब हवा छूकर कहती है
किसी के साथ की आस हो
दिल कुछ गुनगुनाए
कभी ठंडी एक बयार ,
कभी गर्म हवा का झोंका
न करार दे,
न बेकरारी ही बने रहने दे।
पैरों तले घास की नमी
और दिल में घुसती
हवा के साथ आयी
प्यार की गर्मी।
करार भी देती है
और बेकरारी भी।
4 टिप्पणियां:
हवा के साथ आई प्यार की गर्मी करार भी देती है और बेकरारी भी --बहुत सुंदर
Nice poem, Congrats.
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