शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2016

DELHI 6

किसी भी शहर के बारे में शायद ही हममें से किसी को पूरी जानकारी नहीं होती है। और अगर वह शहर दिल्ली हो जिसके परत दर परत खोलते जानते कई ज़माने गुज़र जायेंगे तो आप जितना जानेंग उससे कहीं अधिक अनजान रह जाएंगे।दिल्ली को जानने पहचानने के एक मुहिम चल रही है "डेल्ही वॉक फेस्टिवल "  के रूप में। एक हफ्ते में इस शानदार शहर के अलग अलग पहलुओं को जानने पहचानने का अवसर है।  चुनाव करना मुश्किल था कि कहाँ का रुख करें?   दिन भर आप चलते तो नहीं रह सकते !
मैंने चुना चांदनी चौक की राह को । "ट्रेडस ऐंड ट्रेज़रस ऑफ़ चाँदनी चौक " के ज़रिये हमें पुरानी दिल्ली की इस धरोहर से परिचित करा रहे थे युवा वास्तुविद रोहन पाटणकर। वैसे मुझे भीड़भाड़ से काफ़ी  बेचैनी होती है खासतौर से बाज़ार की भीड़ से। चुनाव करने में यह भी एक विचार था कि वैसे तो मैं यहां जाऊँगी नहीं ,चलो एक ग्रूप में ही इसके दर्शन हो जाएं। करीब पौने चार बजे जब हम चांदनी चौक मेट्रो क गेट नंबर ५ पर उनसे मिले तो उनके उत्साह ने हमें भी जोश से भर दिया। भीड़ तो थी ही पर हम उसमें भी अपने झुण्ड के साथ आगे बढ़ते गए। 
चांदनी चौक व्यावसायिक लहज़े से दिल्ली का प्रमुख केंद्र है। थोक व्यापार के लिया विशेष जाना जाता है। इसकी मुख्य सड़क के एक सिरे पर है फतेहपुरी मस्जिद और दूसरे पर लाल किला।  किसी ज़माने पर यहाँ सड़कके बीच एक नहर थी और कहते हैं इसमें पड़ती चांदनी की चमक से ही इस जगह का नाम पड़ा।वह भी क्या दृश्य रहा होगा। दिल्ली की यही विशेषता है। जगह जगह आपकी कल्पना को अतीत में जाने के लिए बाध्य कर देती है। वह भी बहुत ही शानदार इमारतों के ज़रिये । पर इस बार हमारा ध्यान इन इमारतों पर नहीं बल्कि यहां के कारोबार पर है। फतेहपुरी मस्जिद की ओर  चलते हुए हम एक जगह रुक कर सड़क के उस पार देखते हैं।  इलाहाबाद बैंक की इमारत दिखी। आसपास दुकानों से घिरी यह ईमारत बड़े अकेली सी अपनी कुछ कहानी कहती दिखी । रोहन ने वादा किया यहां की सबसे पुरानी और बड़ी हवेली दिखाने का।  हवेली थी लाला चूनामल की। एक साधारण से दिखनेवाले दरवाज़े से इसका प्रवेश है ,पर अंदर इसमें १२० कमरे हैं।नीचे दुकानें और ऊपर लम्बाई में फैले कमरे होंगे शायद। एक पुरानी घड़ी भी दिखी।  क्या वह १८५७ का समय दिखा रही है जब लाला चुनामल ने अंग्रेज़ों का साथ दे कर दौलत कमाई।  उनके वंशज अब भी यहाँ रहते हैं। 
लाला चूनामल की हवेली


आगे  था कटरा नील जहाँ नाम के अनुरूप पहले तो रंगन का काम होता था पर अब वह बन गया है कपड़ों की दुकानों केंद्र। यहां हमने सड़क पार की और पहुँच " गांधी क्लॉथ मार्केट " . यहां थान के थान कपडे बिकते हैं। रोहन हमें यहां कि गलियों में ले जाते हैं। दोनों तरफ कपड़ों के थान हैं। गलियों से गुज़रते अचानक ही एक चबूतरे क पास आकर रुकते हैं।  रोहन इस चबूतरे को लेकर उत्तेजित हो जाते हैं। बताते हैं कि बेतरतीब ढंग से हुए निर्माण की वजह से यह चबूतरा इतना छोटा रह गया है। वरना यह काफी बड़ा होना चाहिय। वैसे हम मुख्य सड़क से सिर्फ ५० मेटर ही अंदर हैं ,पर गलियों के जाल और अनियमित इमारतों की वजह से काफी दूरी।  यहां के नगर नियोजन और सरचना के बारे कुछ जानकारी मिली। आगे बढे फतेहपुरी मस्जिद के ओर। जूते चप्पल उत्तर कर हाथ में पकड़ लिए और अंदर आकर इस मस्जिद की भव्यता देखी। बाहर के शोरगुल के बिलकुल बगल में पर लगता है जैसे कोसों दूर-एकदम

शांत !  पता चला कि कभी इस मस्जिद को अंग्रेज़ों ने लाला चूनामल को उन्नीस हज़ार रुपये में बेच दिया था। बाद में सरकार ने उन्हें चार गाँव देकर मस्जिद वापस खरीद ली  और मुसलमानों को दे दी। उस ज़माना के किस्से विचित्र थे। 


फतहपुरी मस्जिद और चांदनी चौक
  फतेहपुरी मस्जिद के उत्तर मैं भी एक दरवाज़ा है जो निकलता है खरी बाउली के ओर। गली बताशा और पान की कुछ थोक दुकानों को पार करते हुए हम से एक छोटे दरवाज़े से हम अंदर गलियों क जाल में घुस गए।  इन्हीं तंग गलियों में दिखीं हर तरह के मसलों की बोरियां। चांदनी चौक की प्रसिद्धि  का यह भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है.एशिया का सबस बड़ा "स्पाईस मार्केट "  जहाँ हर किस्म के मसाले ,सूखे मेवे और न जाने क्या क्या मिलते हैं। तरह तरह के मसालों के गंध ने हमें नाक पर रूमाल रखने पर मजबूर कर दिया . खांसते खांसते , ठेलों और बोरियों के बीच से बचते बचते हम बढे सीढ़ियां की ओर . अँधेरे में ,पतली सीढ़ियाँ हम चढ़ते गए .सांस फूलने लगे  इससे पहले ही हम पहुँचे हैरान कर देने वाली छत पर.हमें विश्वान नहीं हुआ कि हम अब फतेहपुरी मस्जिद के पीछे कीओर चुके थे। खुली छत पर सामने देखा तो संध्या वेला का आसमान था। लज्जारूणिमा लिए गगन और बल्ब की रोशनी से जगमाती एक सड़क जो दूर क्षितिज पर  एक धुंधले लाल किले  से लहराते बलखाते हुए जा कर मिल जाती है। इस "वॉक " का चरम अनुभव था यह दृश्य।  नीचे मार्कट की चहल पहल ,एक ओर  मस्जिद का आँगन ,बगल में खरी बाउली की सड़क और साथ में एक विशेषज्ञ की रोचक टिप्पणियाँ . भीड़-भाड़ और कई धक्कों के बाबजूद एक दिलचस्प दिन का बिलकुल माकूल अंत . और जो सबसे बड़ी बात हुई वह यह कि चांदनी चौक दुबारा देखने की लालसा और हिम्मत दोनों आ गयी।  लालसा उसके अन्य पहलुओं को जानने की और हिम्मत यहाँ आकर खरीदारी करनी की . आभार   दिल्ली घुमाने वालों का !

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