आज शाम बहुत सी मुस्कराहटें
इधर उधर से उड़ती हुईं
मेरी बगिया में आईं।
कुछ हंसती चहकती अंदर आईं
कुछ सकुचाती मुस्कराहट थी ,कुछ खामोश
कुछ में सहमा सा डर था,कुछ में दिल्लगी
पर मुस्कराहटें सब थीं।
फूलों,कलियों,पेड़ के दरख्तों ,वो वहां टिकी साईकिल,उधर
रखा एक छाता
एक एक कर सब पर बैठ गयी थीं मुस्कानें।
धीरे धीरे खुशबू की तरह सब और फ़ैल गयी मुस्कानें।
बगिया तो चहक उठी,महक उठी
चंचल हो उठी,बावरी हो गयी
देख सब मुस्कानें।
किसी मुस्कान में पीताम्बर बसा
किसी ने ओढी थी हरी चुनरिया
उन्मुक्त हंसी में बदली एक मुस्कान ,एक ने खिलखिला कर दिया जवाब।
लिहाज़ के बंधन में बंधी पर फूटने को बेताब एक मुस्कान दिखी
कुछ हरी घास पर बिखरी मुस्कानें थीं,कुछ उत्सुक निहारती मुस्कानें थीं।
हाथ थामें मुस्कानें थीं,कुछ भागती मुस्कानें थीं,
दिल का दरवाज़ा खोल झांकती मुस्कानें थीं।
मेरी,उसकी,इसकी,किसकी सबकी आँखों से झलकती मुस्कानें थीं।
आज शाम इधर उधर से
बहुत सी मुस्कानें मेरी बगिया में आईं
बगिया मदहोश है
और मेरी मुस्कान
सब मुस्कानों का रंग चुरा
हो गयी है उमंग से लबरेज़ मुस्कान ।
इधर उधर से उड़ती हुईं
मेरी बगिया में आईं।
कुछ हंसती चहकती अंदर आईं
कुछ सकुचाती मुस्कराहट थी ,कुछ खामोश
कुछ में सहमा सा डर था,कुछ में दिल्लगी
पर मुस्कराहटें सब थीं।
फूलों,कलियों,पेड़ के दरख्तों ,वो वहां टिकी साईकिल,उधर
रखा एक छाता
एक एक कर सब पर बैठ गयी थीं मुस्कानें।
धीरे धीरे खुशबू की तरह सब और फ़ैल गयी मुस्कानें।
बगिया तो चहक उठी,महक उठी
चंचल हो उठी,बावरी हो गयी
देख सब मुस्कानें।
किसी मुस्कान में पीताम्बर बसा
किसी ने ओढी थी हरी चुनरिया
उन्मुक्त हंसी में बदली एक मुस्कान ,एक ने खिलखिला कर दिया जवाब।
लिहाज़ के बंधन में बंधी पर फूटने को बेताब एक मुस्कान दिखी
कुछ हरी घास पर बिखरी मुस्कानें थीं,कुछ उत्सुक निहारती मुस्कानें थीं।
हाथ थामें मुस्कानें थीं,कुछ भागती मुस्कानें थीं,
दिल का दरवाज़ा खोल झांकती मुस्कानें थीं।
मेरी,उसकी,इसकी,किसकी सबकी आँखों से झलकती मुस्कानें थीं।
आज शाम इधर उधर से
बहुत सी मुस्कानें मेरी बगिया में आईं
बगिया मदहोश है
और मेरी मुस्कान
सब मुस्कानों का रंग चुरा
हो गयी है उमंग से लबरेज़ मुस्कान ।
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