तुम ऊपर से देख रहे होगे न
इन काले बादलों के बीच से कहीं
नीचे फैले शांत कोलाहल को
रुई से बादलों में स्थिर अडिग
नीचे सब डगमग डगमग
उस फीकी रोशनी की लकीर के बीच से कहीं
नीचे स्याह,मलिन तुम्हारी दुनिया
पेड़ तुम्हारे,हवा तुम्हारी
नीचे एक काला साया?
कितना ठहरा कितना अविचल
नीचे कितना विचलित, बोझिल।
शाम को एक बहुत सुन्दर फोटो खींची थी। वैसे भी केरल में आप कैमरा कहीं भी घुमा दीजिये,एक अप्रतिम तस्वीर उतर जायेगी। उस पर किसी के अनुरोध पर कुछ पंक्तियाँ लिखने पर,इस परेशान समय में यही निराशाजनक विचार आये। पर चित्र इतना सुन्दर और प्रकृति इतनी अनुपम है कि इस पर कुछ positive लिखने का भी खुद से वादा है।
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